इंदौर कलेक्टर कार्यालय का भृष्टाचारी बाबू डकार गया 5.68 करोड़, पुलिस को बोला- सबको देता था हिस्सा

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इंदौर: शहर का कलेक्टर कार्यालय एक बड़े घोटाले का गवाह बन गया। वो भी करीब 6 करोड़ का। घोटाला भी कलेक्टर कार्यालय के बाबू ने किया।मौजूदा कलेक्टर की नाक के नीचे। ये राशि सरकारी योजनाओं के पात्र लोगो की थी। घोटाला 2020 से चल रहा हैं। यानी इंदौर कलेक्टोरेट का ” स्वर्णिम काल”। एक ऐसा टाइम पीरियड, जिसमे शहर में हर उस अच्छे अच्छे की मुश्के कस दी गई थी जो स्वयम को सिस्टम से ऊपर समझता था। हर गड़बड़झाले पर सख्त निगरानी थी और काला पीला करने वाले भी थर्राते थे।  बंद कमरे के खेल भी उजागर होने वाले कार्यकाल में नाक के नीचे इतना बड़ा घोटाला-गबन किसी कलंक से कम नही। कलंक की ये कालिख़ तब ही साफ हो सकेगी जब भृष्टाचारी बाबू के पीछे के हाथ-पैर और दिमाग उजागर नही होते।

“साहब बहादुर” के जिस दफ्तर से शहर थर्राता था। उसी दफ्तर में साहब बहादुर की मौजूदगी में करीब 6 करोड़ का घोटाला हो गया। पैसा भी सरकारी योजनाओं का जिसकी निगरानी की जिम्मेदारी ” साहब बहादुर ” पर ही रहती हैं। साहब की ठसक और रुतबा ही ऐसा था उनकी नजरो से शहर के किसी भी हिस्से का ‘ काला पीला ‘ छुप नही पाता था। बाहर तो बाहर, बन्द कमरों का लेनदेन भी उन तक पहुंच जाता था।

बड़ी बारीक नजर के धनी थे साहब लेकिन ये नजरें इस गड़बड़झाले को देख नही पाई। साहब की नाक सबसे ऊँची थी। गुस्सा उसी पर टिका रहता था लेकिन ये नाक भी, नाक के नीचे के इस खेल को सूंघ नही पाई। मामला लाख, दस लाख का भी नही था। करोड़ो का था और उसी दफ्तर में हो रहा था जिसे आमजन कलेक्टर कार्यालय कहते हैं। उसी कलेक्टोरेट में बेठकर एक बाबू 5.68 करोड़ जैसी भारी भरकम राशि हजम कर गया। पुलिसिया बयान में बाबू डंके की चोट कह रहा हैं कि वो तो सबको हिस्सा देता था। इसलिए पकड़े जाने का कोई डर नही था। मलाल तो उसे अब भी नही। न जाने क्यो? तभी तो वो कह रहा है कि तीन-साढे तीन करोड़ तो में दे दूंगा। शेष उनसे वसूलना, जो इस सरकारी पैसे का हिस्सा पाते थे। ऐसे 29 लोगो के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज भी किया जो इस सरकारी लूट का हिस्सा थे।

बाबू का नाम मिलाप चौहान हैं। अनुकम्पा नियुक्ति के जरिये वो “साहब बहादु”  के दफ्तर में पदस्थ हुआ था। पुलिस जांच में अब तक 5 करोड़ 67 लाख 96 हजार का गबन सामने आ चुका है। ये वो राशि है जो सरकारी योजनाओ के हितग्राहियों को मिलना थी। भृष्टाचारी बाबू दफ्तर के अन्य लोगो की मिलीभगत से ये राशि अपने और पत्नी व साथियों के खाते में ट्रांसफर कर रहा था। जमकर गुलछर्रे उड़ा रहा था और तबियत से अय्याशी कर रहा था। 

मिलाप 2020 से अब तक इस काम मे लगा हुआ था। ये वो कार्यकाल हैं, जिसमे कलेक्टर कार्यालय की तूती समूचे शहर में ही नही, सिस्टम और सरकार में भी बोलती थी। अच्छे अच्छे की बोलती बंद कर देने वाले कार्यकाल में ही बाबू मिलाप ये बोलता रहता था कि कुछ नही होगा, सबको हिस्सा दे रहा हूं। है न हैरत की बात? साहब बहादुर के कार्यकाल में इस तरह की हिमाकत? कई सवाल खड़े कर रही हैं।

 इस मामले में बाबू और उसके सहयोगी तो गिरफ्त में है लेकिन वे अफसर उजागर नही हुए जिन्होंने मिलाप को इतनी अहम जवाबदारी देकर उसे ” छुट्टा छोड़ ” दिया। सरकारी योजनाओं की भारी भरकम राशि के आदान प्रदान से जुड़े विषय मे अफ़सरो की ये “अंटाग़ाफ़िली” नाकाबिल ए बर्दाश्त हैं। वो भी उस समय, जिस समय इंदौर का कलेक्टोरेट और उसकी सख्त और तुरत फुरत फैसले वाली कार्यप्रणाली भोपाल, दिल्ली तक छाई हुई थी।

अपने अधीनस्थों को काम सौपकर अफ़सरो की बेफिक्री का ये दुर्लभ मामला हैं। बताते है कि ऐसा कलेक्टोरेट में होना आम बात हैं। मिलाप के इतने बड़े घोटाले को अंजाम देने के हौसले अफ़सरो की इसी मक्कारी का नतीजा है जो स्वयम काम करना नही चाहते और जिसे अपने हिस्से का काम दे देते है, उस पर भी नजर रखने की इन अफसरो को फुर्सत नहीं। नतीजतन भृष्टाचारी बाबू ने अपने इस काम मे एक दो नही, 29 लोगो को जोड़ लिया। जो राशि हितग्राहियों के खाते में जाना थी, वो कॉलगर्ल के अकाउंट में जमा हो रही थी। जो पैसा पात्र व्यक्ति को देना था, उससे फार्म हाउस व प्लॉट खरीदे जा रहे थे। जो रकम बड़े साहब की निगरानी में दी गई थी, उससे मेक माय ट्रिप से फ्लाइट की टिकटें बुक हो रही थी। 

 “मोतीतबेले” का निजाम बदला तो ये कारस्तानी सामने आई। भला हो नवागत कलेक्टर महोदय का जिन्होंने इस घोटाले को आते ही सूंघ लिया और नतीजा सामने हैं। अब इस मामले के दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए। पूरी पड़ताल हो कि मिलाप को किसकी शह थी? क्योकि बगेर किसी बड़े साहब के पीठ पर हाथ रखे वो ये हिमाकत नही कर सकता था। मिलाप का पॉलिटिकल कनेक्शन भी तलाशा जाना चाहिए ताकि पता चले कि गबन की राशि में किसी नेता का हिस्सा भी था या नही। निलंबन जैसी करवाई, मिलाप जैसे लोगो की पेशानी पर रत्तीभर भी परेशानी नही ला पाएगी। जब तक कि पूरे मामले में पुलिसिया रिमांड न हो। केवल मिलाप की ही नही, पत्नी और उन सहयोगियों की भी जिनके खाते में गबन की राशि जमा हो रही थी। जवाबदेही उनकी भी तय हो और बर्खास्तगी भी जो अपने हिस्से का काम, मिलाप जैसे को सौपकर चादर तानकर सो गए।जब तक ऐसा नही होता, “मोतीतबेले” का ‘स्वर्णिम काल’ कलंकित कहलायेगा।

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