न्यूरोलॉजिस्ट डॉ मनोरंजन बरनवाल ने एग्जाम प्रेशर पर चर्चा की – MP Jankranti News

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फेलियर एक्सेप्ट करना बच्चो को सिखाएं बच्चो को समझाए फेलियर का मतलब “द एंड “ नही होता , सिर्फ एक स्पीड ब्रेकर होता है
परीक्षा के कुछ दिनों पहले से अपनी दिनचर्या ऐसी बनाइये जो एग्जाम में हो जैसे उस वक्त ज़रूर लिखे जब एग्जाम टाइम में लिखने का समय हो
जनक्रांति न्यूज इंदौर (दीपक शर्मा) :
एग्जाम का प्रेशर कहीं ना कहीं स्टूडेंट्स को चिडचिडा बना देता है और कॉन्फिडेंस भी लूज़ करता है और सर दर्द या माइग्रेन जैसी  समस्या से घिरने लगता है ,  इसी के मद्देनज़र     क्रिएट स्टोरीज सोशल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा विजय नगर शासकीय माध्यमिक विद्यालय में आयोजन किया गया जिसमे न्यूरोलॉजिस्ट डॉ मनोरंजन बरनवाल ने एग्जाम प्रेशर पर परिचर्चा की । इस मौके पर प्रधानाचार्य विजय यादव मौजूद थे ।
डॉ मनोरंजन बरनवाल ने बताया की परीक्षा के समय स्ट्रेस एक लिमिट तक स्ट्रेस अच्छा है क्यूंकि तभी हम मेहनत करते है एग्जाम के लिए , पर एक लेवल के बाद हमारा परफॉरमेंस खराब हो जाता है अगर स्ट्रेस बढे तो, इसलिए स्ट्रेस बैलेंस होना चाहिए ।
इसके लिए सबसे पहले परीक्षा के कुछ दिनों पहले से अपनी दिनचर्या ऐसी बनाइये जो एग्जाम में हो जैसे उस वक्त ज़रूर लिखे जब एग्जाम टाइम में लिखने का समय हो , उठने , सोने , पढ़ने और खाने की दिनचर्या भी उसी हिसाब से बनायें और बैलेंस्ड बनाएं ।
परीक्षा का समय बच्चों के लिए सबसे ज्यादा तनाव वाला होता है। कोर्स कंप्लीट करने और बेहतर प्रदर्शन के दबाव में कुछ बच्चे बहुत अधिक प्रेशर लेने लगते हैं। इस कारण से बच्चे अक्सर तनाव का शिकार हो जाते हैं। परिवार और शिक्षकों की उम्मीदें भी कई बार बच्चों में तनाव का कारण बन जाती है।
बच्चो को पता होता है की उनकी तैयारी कैसी है और क्या परिणाम आएगा लेकिन कई बार सोसाइटी , पैरेंट्स , टीचर्स के डर के कारण वे नही बता पाते क्योंकि याद रखे जब हम असफलता स्वीकार नही करते , तब हमे तो सच्चाई पता होती है और ये सच्चाई हमे सबसे छुपानी होती है  हमारा पूरा वक्त सच्चाई छुपाने में और ये दिखाने में निकल जाता है की हम बहुत स्ट्रांग है | इससे हमारा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ता है और साथ ही कोर्टिसोल भी , जिससे तमाम सर दर्द या न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर शुरू होने की संभावना होती है ।
फेलियर एक्सेप्ट करना बच्चो को सिखाएं बच्चो को समझाए की फेलियर मतलब है की आपने कोशिश करी है यानी हिम्मत है आपमें एवं रिस्क लेने की क्षमता है । फेलियर का मतलब “द एंड “ नही होता , सिर्फ एक स्पीड ब्रेकर होता है जिसको आप शांत और पॉजिटिव रहकर और खुद पर भरोसा रखकर पार कर सकते है ।
यह बात सही है कि मोबाइल और कंप्यूटर का देर तक इस्तेमाल करने से दिनचर्या गड़बड़ हो जाती है। इससे माइग्रेन के मामले बढ़े हैं। कोशिश करें कि सोने से दो घंटे पहले मोबाइल का इस्तेमाल बंद कर दें। मोबाइल देखने के बजाय पत्र-पत्रिका पढ़े। बच्चों के साथ खेलें। इससे नींद अच्छे से आएगी। 
स्ट्रेस के कारण भी हर उम्र में आजकल सर दर्द और माइग्रेन आम समस्या हो चुकी है यहां तक की बच्चो में भी । यह जानलेवा बीमारी भले ही न हो लेकिन तकलीफदायक जरूर है। माइग्रेन अनुवांशिक भी होता है। यानी अगर आपके माता या पिता में से किसी को माइग्रेन की समस्या है तो आपको भी यह बीमारी हो इसकी संभावना सामान्य से 30 प्रतिशत अधिक रहती है। अच्छी बात यह है कि अगर माइग्रेन से पीड़ित व्यक्ति दिनचर्या में सुधार कर ले तो यह बीमारी पूरी तरह से नियंत्रित हो सकती है। 
सर दर्द या माइग्रेन की वजह–
-नींद पूरी नहीं होना।
-समय पर खाना नहीं खाना, अत्याधिक उपवास रखना।
-मानसिक तनाव एवं पढ़ाई या अन्य काम का प्रेशर।
-बुखार बार-बार आना।
-अत्याधिक खट्टी चीजों का सेवन करना।
-अत्याधिक चाकलेट का सेवन।
-चाइनीज खाने में अजीनोमोटो होता है जो माइग्रेन की वजह हो सकता है ।
पैरेंट्स भी एक बात याद रखे की बच्चो में रिजल्ट या पढ़ाई का प्रेशर क्रिएट ना करें क्योंकि आपको नही पता की प्रेशर से बच्चो को आगे चलकर क्या मानसिक या शारीरिक बीमारी हो सकती है । पेरेंट्स को समझना चाहिए की परीक्षा उनके बच्चों की साल भर की मेहनत का प्रूफ नहीं है और यही बात उन्हें बच्चों को समझानी होगी । अच्छे मार्क्स का मतलब जॉब और अच्छी ज़िन्दगी नहीं होती  । पेरेंट्स बच्चो को किसी से क्म्पेयर ना करे । बच्चो को बार बार टोकना बंद करे । बच्चो को टोकने की बजाये उनके अच्छे मित्र बन उनकी परेशानी को समझे एवं बच्चो को सपोर्ट करें । एक बात का पेरेंट्स ज़रूर ध्यान दे की हम आज जो  करेंगे वो बच्चे फॉलो करते है जब तक वो 18  साल के नहीं हो जाते वे हर वो गतिविदी करना चाहेंगे जो हम करते है क्यूंकि उनके आइडियल पेरेंट्स ही है , इसलिए हमे उन्हें सामने एक अच्छा उदहारण खड़ा करना होगा ।
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