5वी व 8वी कक्षा के प्रथम पेपर होने के उपरांत में लिखी गई एक कविता बच्चों को कैसा लगता हें जब परीक्षा होती हें
Il परीक्षा ll
नाम लेते ही डर लगता है
मन भी धक-धक करता है
समय भी कम लगता है
सुख चैन दूर भागता है
शब्दों से कैसे करें समीक्षा
जब भी आती है परीक्षा
रात छोटी लगती है
किताब मोटी लगती है
घर वाले बोलते खाने को
लेकिन डर से भूख नहीं लगती है
खुलकर व्यक्त नहीं होती इच्छा
जब भी आती परीक्षा
क्या कैसे कौन सा आएगा सवाल
दोस्त भी करते हैं खूब बवाल
तारीख पास आती रही
मन के हो रहे बुरे हाल
ऐसे में याद करें गुरु की शिक्षा
जब भी आती है परीक्षा
डरे नहीं ,रुके नहीं
उत्तरों को देने में चुके नहीं
क्यों सोचते हो परिणाम के बारे में
परीक्षा कक्ष में आपके हाथ रुके नहीं
जो भी होगा हरि इच्छा
जब भी आती है परीक्षा
जब भी आती है परीक्षा
– रिपोर्टर, मंगल धुर्वे, खंडवा 9575428312






