जावर। खंडवा जिले के ग्राम जावर में क्रांतिकारी जननायक टंट्या मामा भील की मूर्ति स्थापना की जा रही है। ग्राम पंचायत जावर सरपंच श्री अमित मालवीय जी के सहयोग से 4 अप्रैल को मूर्ति स्थापना की जा रही है। जितने समस्त संगठनों एवं समाज सेवकों से अपील की है कि अधिक से अधिक संख्या में पधार कर इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ावे आयोजक सभी ग्रामीण जन एवं आदिवासी समाज संगठन जावर आपका हार्दिक हार्दिक अभिनंदन करता है।
आपको बता दे की स्वतंत्रता के लिए भारत को बड़ा लंबा संघर्ष करना पड़ा है। इस संघर्ष यात्रा में भारत माता के अनगिनत वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दें कर शौर्य की एक स्वर्णिम गाथा लिखी। उनमें से कई का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया। परंतु कई ऐसे भी रहे जिनके साथ इतिहास ने पर्याप्त न्याय नहीं किया। गरीबों के मसीहा टंट्या मामा भील ऐसे ही एक सिपाही थे। जिन्हें इतिहास ने अपेक्षित स्थान नहीं दिया। हालांकि आदिवासी वर्गो में उनकी पूजा की जाती है। उनकी गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें ‘इंडियन राबिन हुड’ कहा था। क्रांतिकारी टंट्या भील की वीरता और अदम्य साहस से प्रभावित होकर तात्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध में पारंगत बनाया था। वह भील जनजाति के ऐसे योद्धा थे, जो अंग्रेजों को लूटकर गरीबों की भूख मिटाने का काम करते थे।
आलौलिक शक्तियों के धनी थे टंट्या मामा
क्रांतिकारी टंट्या भील के बारे में कहा जाता है कि उन्हें आलौकिक शक्तियां प्राप्त थीं। इन्हीं शक्तियों के सहारे टंट्या मामा एक ही समय में एक साथ सैकड़ों गांवों में सभाएं करते थे। टंट्या मामा की इन शक्तियों के कारण अंग्रेजों के दो हजार सैनिक भी उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। देखते ही देखते वह अंग्रेजों की आंखों के सामने से ओझल हो जाते। आखिरकार अपने ही बीच के कुछ लोगों की मिलीभगत के कारण वह अंग्रेजों की पकड़ में आ गए और चार दिसंबर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई। फांसी के बाद अंग्रेजों ने उनके शव को इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया। इसी जगह को टंट्या मामा की समाधि स्थल माना जाता है। आज भी रेलवे के तमाम लोको पायलट पातालपानी स्टेशन से गुजरते हुए टंट्या मामा को याद करते हैं। इतिहास को भी उन्हें याद करना चाहिए।
– अनवर मंसूरी खंडवा मध्य प्रदेश मो.7999974923






