छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेती का काम जोरों पर चल रहा है. ज़्यादातर किसान धान की खेती करते हैं, लेकिन आप धान के साथ-साथ दूसरी फसलें उगाकर भी अच्छी कमाई कर सकते हैं. रोजमर्रा के खाने में पौष्टिक तत्वों का होना कितना जरूरी है, ये हम सब जानते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ के किसान धान की खेती के साथ अरहर की खेती करके न सिर्फ अपनी आय बढ़ा सकते हैं बल्कि अपने खाने में भी पोषण की कमी को दूर कर सकते हैं.
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अरहर की खेती के लिए विशेषज्ञ का advice
अरहर परियोजना की पौधा विशेषज्ञ डॉ मयूरी साहू का कहना है कि छत्तीसगढ़ में इन दिनों धान की खेती के अलावा अरहर की खेती के लिए भी सही समय है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के शोध विभाग द्वारा अरहर की नई किस्मों को विकसित किया जा रहा है. इनमें से छत्तीसगढ़ अरहर 1, छत्तीसगढ़ अरहर 2 और राजीवलोचन ऐसी तीन किस्में हैं जिनकी खेती किसानों को करनी चाहिए. ये किस्में खासकर छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी के अनुसार तैयार की गई हैं. अरहर की इन किस्मों की खेती करके किसान 18 से 25 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
अरहर की फसल तैयार होने में 180 दिन लगते हैं. 180 दिन में फसल पूरी तरह से परिपक्व होकर तैयार हो जाती है. इन किस्मों को किसान धान के खेतों की मेढ़ों पर भी लगा सकते हैं. धान के साथ अब अरहर की खेती करने का यही सही समय है. किसानों को इन शोधित और अधिक पैदावार वाली किस्मों को ही लगाना चाहिए. इसके अलावा अरहर की इन किस्मों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी ज्यादा होती है.
अरहर की खेती करते समय इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी जमीन पर इसकी खेती न करें जहां पानी जम जाता हो. बीजों का उपचार हमेशा करवाना चाहिए. इसके अलावा अच्छी पैदावार हो, इस बात पर भी किसानों को ध्यान देने की जरूरत है.
अरहर जब फलने की अवस्था में आ जाए, जब फूल खिलने वाले हों, तब किसान जिबरेलिक एसिड का उपचार कर सकते हैं. इससे फूल झड़ने की समस्या कम हो जाती है और उत्पादन की संभावना ज्यादा बनती है.
अभी छत्तीसगढ़ में दलहनों का उत्पादन और क्षेत्रफल काफी कम हो रहा है. ऐसे में अच्छी क्वालिटी की दाल के लिए किसानों को अरहर की खेती करनी चाहिए. फसल चक्र के अलावा अरहर की खेती करने से जमीन में गहरे तक नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है और पौष्टिक तत्व मिलते हैं.