नई दिल्ली — देश में 17 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। इस बार यह प्रक्रिया 1 मार्च 2027 से शुरू होगी और इसे “जनगणना 2027” नाम दिया गया है। इस बार की जनगणना खास इसलिए है क्योंकि इसमें पहली बार सभी जातियों और धर्मों से संबंधित डेटा भी इकट्ठा किया जाएगा।
अधिसूचना कब?
गृह मंत्रालय की योजना के अनुसार, 16 जून 2025 को जनगणना अधिसूचना जारी की जा सकती है, जिससे औपचारिक रूप से जनगणना की शुरुआत होगी।
जनगणना किस कानून के तहत होती है?
जनगणना भारत में जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत कराई जाती है। इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार को अधिकार प्राप्त होता है कि वह जनता से आवश्यक विवरण मांग सके। अधिनियम की धारा 8 जनगणना अधिकारियों को विशेष प्रश्न पूछने की अनुमति देती है।
यह पूरा काम गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के माध्यम से किया जाता है।
जनगणना का इतिहास क्या कहता है?
- 1881 से 1931 तक ब्रिटिश सरकार ने सभी जातियों की गिनती की।
- 1951 में स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना हुई, लेकिन सामान्य व ओबीसी जातियों की गणना नहीं की गई।
- 1961 में राज्यों को ओबीसी सूची तैयार करने का अधिकार दिया गया।
इस बार क्या-क्या पूछा जाएगा?
2027 की जनगणना में निम्नलिखित जानकारियां अनिवार्य रूप से ली जाएंगी:
- नाम, पता, आयु, लिंग
- शिक्षा, रोजगार की स्थिति
- धर्म और जाति
- सामाजिक-आर्थिक स्थिति
जातिगत जनगणना क्यों महत्वपूर्ण?
जातिगत जनगणना से सरकार को सामाजिक न्याय और आरक्षण की योजनाओं के लिए सही आंकड़े मिलते हैं। अब तक केवल SC/ST वर्ग की गिनती होती थी, लेकिन इस बार OBC और सामान्य वर्ग की भी जाति पूछी जाएगी। इससे नीति-निर्माण में पारदर्शिता और संतुलन आएगा।
अब तक क्यों नहीं हुई जातिगत गिनती?
1951 के बाद सरकार ने जातिगत गिनती को सामाजिक विभाजन के डर से बंद कर दिया था। लेकिन 2011 की SECC (सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना) के बाद मांग फिर से तेज हो गई।
राज्यों की पहल
- बिहार: जातिगत सर्वेक्षण 2023 में किया गया।
- कर्नाटक और राजस्थान: राज्य स्तर पर ओबीसी सर्वे कराए गए।
इन आंकड़ों से केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना करने का दबाव बढ़ा।
निष्कर्ष
जनगणना 2027 केवल संख्या का खेल नहीं, बल्कि यह भारत की सामाजिक संरचना को समझने और सुधारने का माध्यम बनेगी। नाम, पता, धर्म और जाति जैसी संवेदनशील जानकारियाँ जुटाकर सरकार भविष्य की योजनाओं को ज़मीनी हकीकत पर आधारित बना सकेगी।
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