सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को सशक्त तो किया है, लेकिन वहीं इस परदें पर कुछ स्वघोषित “पत्रकार” दलाली और ब्लैकमेल का धंधा चला रहे हैं. कई शहरों में ऐसे गिरोह सक्रिय पाए गए हैं जो बिना किसी वैध पहचान या संपादकीय कंटेंट के वीडियो बनाते हैं और प्रशासन या व्यापारियों से पैसे वसूलते हैं। पुणे में तो एक कथित पत्रकार ने YouTube चैनल चलाकर पशुचिकित्सक की क्लिनिक में घुसकर वीडियो बनाया और रुपये न मिलने पर उसे सार्वजनिक करने की धमकी दी। राष्ट्रीय स्तर पर पिछले कुछ वर्षों में कम से कम 10 पत्रकारों को ब्लैकमेल/वसूली के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जिनमें अधिकांश छोटे सोशल मीडिया पोर्टल या फेसबुक/यूट्यूब चैनल चलाते थे। दैनिक कार्यवाही के बजाए ये दलाल पत्रकार अक्सर कैमरा, मोबाइल से वीडियो या फर्जी समाचार बना कर लोगों को डराते हैं।
Also Read: सांसद दुबे ने फिर किया विवादित ट्वीट, पत्रकार के बैंक खातों का किया खुलासा
- यूट्यूब/सोशल मीडिया चैनल: कई दलाल पत्रकार अपने नाम पर गैर-पंजीकृत YouTube चैनल या वेबसाइट चलाते हैं और उसी मंच से कथित “समाचार” प्रसारित करते हैं. द न्यूज़लॉन्ड्री के मुताबिक, ये दलाल केवल अपने चैनल पर वीडियो डालने के लिए माइक्रोफोन उठाते हैं और असल खबरों की बजाय स्थानीय लोगों को पैसे के लिए निशाना बनाते हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने भी माना है कि ऐसे लोग बगैर जांच-पड़ताल के पुलिस महकमे तक पहुंच जाते हैं, जिसके चलते असली पत्रकारों की छवि धूमिल होती जा रही है. आम तौर पर वे कोई भी संस्थागत प्रमाणपत्र नहीं दिखाते; न तो कोई नौकरी-सलारी का वेतन पाते हैं और न ही पत्रकारिता की औपचारिक डिग्री रखते हैं, इसलिए उनकी वैधता का कोई आधार ही नहीं होता।
- ब्लैकमेल और धमकी: दलाल पत्रकारों की प्रमुख रणनीति धमकी देना और ब्लैकमेल करना है. उदाहरण के लिए, पुणे में एक गिरोह ने एक फैक्ट्री और व्यवसायियों के खिलाफ वीडियो बनाकर तीन से पांच लाख रूपये मांग डाले; वहीं यूपी के हापुड़ में दो फर्जी पत्रकारों ने होटल, अस्पताल और दुकानों से रंगदारी वसूली. इन मामलों में उनके पास फर्जी मीडिया संगठन के प्रेस कार्ड और पहचान पत्र भी मिले. कुछ दलाल स्मार्टफोन से वीडियो बनाते और उसे सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देते हैं. बताया जाता है कि भुगतान करने पर ये वीडियो या रिपोर्ट सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से हटा दिए जाते हैं, अन्यथा सार्वजनिक कर दिए जाते हैं (पुणे वाले उदाहरण में डॉक्टर का वीडियो पैसे न देने पर अपलोड करने की धमकी दी गई)।
- फर्जी पहचान-पत्र और मीडिया संगठन: गिरोह नकली मीडिया संस्थान और पत्रकार संगठन बना लेते हैं और “PRESS” लिखे ID कार्ड जारी करते हैं. मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में भी कहा कि अपराधी गिरोह लग्ज़री वाहनों पर ‘प्रेस’ का स्टिकर लगाकर कानून की आँखे मूंदते हैं, और झूठे पत्रकार संगठन बनाकर अपराधियों को प्रेस कार्ड बांटते हैं, जिसे बाद में वसूली का हथियार बनाया जाता है. दक्षिण भारत से लेकर यूपी तक की खबरें दर्शाती हैं कि गिरफ्तार किए गए फर्जी पत्रकारों के पास नकली प्रेस आईडी मिले हैं, जिनसे वे अधिकारियों और नागरिकों को ब्लैकमेल करते हैं. सूत्रों के अनुसार कभी-कभी ये पहचान-पत्र मात्र पाँच सौ से एक हज़ार रुपये में दूसरे पत्रकारों या संगठनों से खरीदे–बेचे भी जाते हैं, जिससे इस अवैध धंधे को और खतरनाक विस्तार मिल रहा है।
- देशभर में फैलता ग्राफ: यह समस्या केवल नोएडा-गाजियाबाद तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारत में रिपोर्टें आ रही हैं. उत्तर प्रदेश में गिरोहों के गिरफ्तार होने के उदाहरण तो मिल चुके हैं, वहीं महाराष्ट्र के पुणे में छह महीने में दस से अधिक पत्रकारों को ब्लैकमेल के आरोपों में नामजद किया जा चुका है. तमिलनाडु उच्च न्यायालय ने तो राज्य सरकार को तीन महीने में झूठे पत्रकारों को रोकने के लिए प्रेस काउंसिल बनाने का निर्देश ही दे दिया है. ये सुझाव बताता है कि नोटबंदी पत्रकारिता या सोशल मीडिया सिर्फ पक्षपातपूर्ण और अवैध तरीकों के लिए बाला मंच नहीं बना रहनी चाहिए।
Also Read: सांसद ने पत्रकार का टैक्स रिटर्न ट्वीट कर बनाया विवाद, अब FIR की तैयारी
दलाली पत्रकारिता से निपटने की चुनौतियाँ और समाधान
दलाल पत्रकारों की बढ़ती समस्या के कारण असली पत्रकारिता की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लग रहा है. पुणे के पुलिस आयुक्त ने चेतावनी दी है कि ये ग़ैर-पंजीकृत और लालायित गिरोह नकली पत्रकार बनकर पुलिस महकमे में घुसपैठ कर लेते हैं, और इससे असली पत्रकारों का मान-सम्मान गिरता जा रहा है. उन्होंने ऐसे फर्जी पत्रकारों की पहचान के लिए सत्यापन प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है। वरिष्ठ पत्रकारों और समाजसेवियों का कहना है कि अपराधियों के साथ मिली भगत करके काम करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए. जैसे पत्रकारिता संघठनों की सक्रियता बढ़ने की ज़रूरत है, वैसे ही सरकार और पुलिस को भी स्थायी रूप से इन गिरोहों की जनकारी एवं निगरानी बढ़ानी होगी।
संक्षेप में, देश के पत्रकारिता जगत और प्रशासन को मिलकर कदम उठाने होंगे: फर्जी पत्रकारों के खिलाफ मामलों की जांच तेज करनी होगी, नकली प्रेस आईडी चलाने वाले गिरोह पकड़े जाने चाहिए, और आम नागरिकों को जागरूक किया जाना चाहिए। केवल इस तरह ही अवैध दलाली के खेल को रोककर पत्रकारिता के पवित्र पेशे को बचाया जा सकता है.
बहुउद्देशीय सोशल मीडिया चैनलों पर बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे स्वघोषित ‘पत्रकार’ घातक ब्लैकमेलिंग करते हैं। ये फर्जी पत्रकार नकली प्रेस कार्ड और YouTube/फेसबुक पेज से धमकियाँ देते हैं। महाराष्ट्र, यूपी से लेकर तमिलनाडु तक में ऐसे गिरोह पकड़े जा चुके हैं। पुलिस जांच और पत्रकार संगठनों की मुस्तैदी ही इन अपराधी पत्रकारों को बेनक़ाब कर सकती है।
