बहराइच में 7 साल से मानदेय के लिए तरस रही गरीब महिला, सार्वजनिक शौचालय की सफाई का नहीं मिला मेहनताना

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Bahraich Gandara Panchayat News: Public Toilet पर 6 साल से सफ़ाई करने वाली महिला को नहीं मिला वेतन, प्रशासन चुप। उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले के जरवल ब्लॉक की गण्डारा पंचायत से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहाँ की रहने वाली सायदा बेगम पिछले 6–7 साल से मजरा खालेपुरवा स्थित सार्वजनिक शौचालय पर रोज़ाना ड्यूटी कर रही हैं, लेकिन अब तक उन्हें एक पैसा मानदेय नहीं मिला। यह मामला सामने आने के बाद गाँव में आक्रोश है और प्रशासन पर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं।

संवाददाता: मुहम्मद आरिफ, गण्डारा, बहराइच

गण्डारा, बहराइच, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में एक ऐसा मामला सामने आया है, जो सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जरवल ब्लॉक की ग्राम पंचायत गण्डारा के मजरा खाले पुरवा में, पिछले सात सालों से सार्वजनिक शौचालय की देखरेख और साफ़-सफाई कर रही सायदा बेगम को आज तक उनका मेहनताना नहीं मिला है। एक ओर जहाँ सरकार ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को सफल बनाने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है, वहीं ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों की यह हालत प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है।

साफ़-सफाई का काम, पर नहीं मिला मानदेय सायदा बेगम एक बेहद गरीब परिवार से आती हैं, जिनके दो भाई विकलांग हैं और पिता भी कमज़ोर हैं। उन्हें अपनी बूढ़ी माँ के साथ काम पर आना पड़ता है, जो उनकी मजबूरी को दिखाता है। स्थानीय पत्रकार ने जब गाँव के लोगों से बात की, तो पता चला कि सायदा बेगम पिछले 6-7 सालों से बिना किसी रुकावट के यह काम कर रही हैं। यह जानकर हैरानी हुई कि सालों से इस गरीब महिला को उसके काम के बदले एक भी रुपया नहीं मिला है। यह मामला सिर्फ़ एक महिला के मानदेय का नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की उस अनदेखी का है, जो ज़रूरतमंदों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर करती है।

मीडिया में खबर आने के बाद भी नहीं मिली राहत जब इस मामले को मीडिया में प्रकाशित किया गया, तो अगले ही दिन ग्राम पंचायत के सेक्रेटरी और प्रधान प्रतिनिधि मौक़े पर पहुंचे। हालांकि, वे सायदा बेगम की समस्या का समाधान करने के बजाय, सिर्फ़ सार्वजनिक शौचालय की मरम्मत की बात करके चले गए। उन्होंने सायदा के बकाया मानदेय पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकारी अधिकारी सिर्फ़ लीपापोती करने आते हैं? स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक सायदा बेगम को उसका पूरा मानदेय नहीं मिल जाता, तब तक यह मुद्दा जारी रहना चाहिए।

क्या कहते हैं नियम? सरकार ने सार्वजनिक शौचालयों के रखरखाव के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति का इंतज़ाम किया है और उन्हें मासिक मानदेय देने का प्रावधान है। ऐसे में, सालों तक किसी कर्मचारी को वेतन न देना साफ़ तौर पर नियम का उल्लंघन है और यह सीधे तौर पर अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल उठाता है। यह घटना दर्शाती है कि सिर्फ़ योजनाएँ बनाना काफ़ी नहीं है, उनका सही ढंग से क्रियान्वयन भी उतना ही ज़रूरी है।

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