Leh Violence: क्या Sonam Wangchuk के ‘भड़काऊ भाषणों’ ने भड़काई हिंसा? सरकार ने सीधे Activist को ठहराया ज़िम्मेदार

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लेह, लद्दाख में हाल ही में भड़की हिंसा और पुलिस गोलीबारी में चार लोगों की मौत के बाद, केंद्र सरकार ने सीधे तौर पर पर्यावरण एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को इसका ज़िम्मेदार ठहराया है. गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि वांगचुक के “भ्रामक और उत्तेजक भाषणों” ने भीड़ को उकसाया, जिसके चलते सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचा और हिंसक झड़पें हुईं. दूसरी ओर, लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर रहे वांगचुक ने हिंसा की निंदा करते हुए इसे अपने आंदोलन की विफलता बताया है और युवाओं से शांति की अपील की है. यह पूरा मामला अब लद्दाख के भविष्य और राजनीतिक गतिरोध को दर्शाता है.


Quick Highlights

  • केंद्र सरकार ने लेह हिंसा के लिए सीधे तौर पर एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को ज़िम्मेदार ठहराया.
  • गृह मंत्रालय का दावा है कि वांगचुक ने अरब स्प्रिंग और नेपाल के जेन-जेड आंदोलनों का ज़िक्र कर भीड़ को भड़काया.
  • हिंसा में चार लोगों की मौत हुई; बीजेपी कार्यालय और मुख्य कार्यकारी पार्षद के कार्यालय में आगज़नी हुई.
  • वांगचुक ने हिंसा पर दुःख जताते हुए तुरंत अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की.
  • वांगचुक ने हिंसा का अप्रत्यक्ष कारण बेरोज़गार युवाओं में पिछले पाँच साल से जमा कुंठा (Frustration) को बताया.

श्रीनगर/नई दिल्ली: लद्दाख की राजधानी लेह में बुधवार को हुई हिंसक झड़पों के बाद राजनीतिक और सामाजिक तनाव चरम पर है. केंद्र सरकार ने इन घटनाओं के लिए पर्यावरण एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को सीधे तौर पर कटघरे में खड़ा कर दिया है.

हिंसा का भड़कना और सरकारी आरोप

लेह में लंबे अरसे से राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण की मांग को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के बैनर तले आंदोलन चल रहा है. इस 35 दिवसीय भूख हड़ताल में सोनम वांगचुक भी शामिल थे.

हिंसा की शुरुआत तब हुई जब मंगलवार को दो बुज़ुर्ग प्रदर्शनकारियों की तबीयत गंभीर होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. इस घटना ने युवाओं के सब्र का बाँध तोड़ दिया और बुधवार को लेह में बंद का आवाहन किया गया.

सुबह क़रीब 11:30 बजे एक गुस्साई भीड़ ने बीजेपी कार्यालय और मुख्य कार्यकारी पार्षद के कार्यालय पर हमला कर दिया. आगज़नी हुई, एक पुलिस वाहन जलाया गया, जिससे सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचा. सरकार के अनुसार, इस दौरान पुलिस और CRPF के 22 जवानों समेत 45 लोग घायल हुए. स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए पुलिस को आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा. कुछ रिपोर्टों में आत्मरक्षा में गोलीबारी की बात भी सामने आई है, जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत की ख़बर है. इसके तुरंत बाद लेह (पिनकोड 194101) में धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई.

गृह मंत्रालय का गंभीर दावा

हिंसा के बाद, केंद्र सरकार की ओर से देर शाम जारी एक बयान में क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को सीधे ज़िम्मेदार ठहराया गया. गृह मंत्रालय ने दावा किया कि वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल के दौरान अरब स्प्रिंग और नेपाल के जेन-जेड आंदोलनों का जान-बूझकर ज़िक्र किया, और उनके इन उत्तेजक भाषणों ने भीड़ को तोड़फोड़ और आगज़नी के लिए उकसाया.

उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने भी इस हिंसा को एक षड्यंत्र बताते हुए आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों ने CRPF जवानों को जिंदा जलाने की कोशिश की और डीजीपी लद्दाख के वाहन पर पथराव किया. उन्होंने सख़्त कार्रवाई की चेतावनी दी है.

राजनीतिक बयानबाज़ी और वांगचुक का जवाब

बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय और सांसद संबित पात्रा ने इस घटना में कांग्रेस पर भी निशाना साधा, यह दावा करते हुए कि यह राहुल गांधी की उकसावे की रणनीति का हिस्सा थी. उन्होंने कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टैनजिन त्सेपाग पर भीड़ को भड़काने का आरोप लगाया.

इसके जवाब में, सोनम वांगचुक ने हिंसा पर गहरा दुःख व्यक्त किया और शांतिपूर्ण आंदोलन की विफलता बताते हुए अपनी हड़ताल खत्म करने की घोषणा की. उन्होंने युवाओं से हिंसा रोकने की पुरज़ोर अपील की.

वांगचुक ने बीजेपी के आरोपों को खारिज़ करते हुए कहा कि कांग्रेस का लद्दाख में इतना प्रभाव नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंसा का तात्कालिक कारण दो बुजुर्ग प्रदर्शनकारियों का अस्पताल में भर्ती होना था, लेकिन असल कारण लद्दाख के युवाओं में पिछले पाँच साल से जमा बेरोज़गारी और लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी से उत्पन्न कुंठा है.

लेह में इस इमरजेंसी जैसी स्थिति के बाद स्थानीय लोग अफ़रा-तफ़री और बेयक़ीनी के माहौल में हैं. कई परिवारों ने अपने बच्चों को घरों से बाहर न निकलने की एहतियात बरती है. स्थानीय युवा सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं, जहाँ एक बड़ा वर्ग मानता है कि उनकी शांतिपूर्ण माँगों को नज़रअंदाज़ करना ही इस दुखद मौक़े का कारण बना. वांगचुक ने केंद्र सरकार से 6 अक्टूबर को प्रस्तावित वार्ता को जल्द आयोजित करने और लद्दाख की मांगों पर गंभीरता से विचार करने की मांग की है.

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