भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी का सपना देख रहे लाखों बेरोजगार युवाओं पर कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) ने अतिरिक्त आर्थिक भार डाल दिया है। पुलिस आरक्षक भर्ती 2025 के 7,500 पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया में पहली बार शारीरिक दक्षता परीक्षा (फिजिकल टेस्ट) के लिए अलग से ₹200 (सामान्य वर्ग) और ₹100 (आरक्षित वर्ग) का विभागीय शुल्क अनिवार्य किया गया है। यह शुल्क सभी आवेदकों से लिया जा रहा है, भले ही वे फिजिकल टेस्ट के लिए चुने जाएं या नहीं। इस नई नीति ने युवाओं में व्यापक आक्रोश पैदा कर दिया है, जो इसे “बेरोजगारों का शोषण” और “लूट” बता रहे हैं।
Quick Highlights
- पुलिस आरक्षक भर्ती 2025 में फिजिकल टेस्ट के लिए पहली बार अतिरिक्त विभागीय शुल्क लागू।
- सामान्य वर्ग से ₹200 और आरक्षित वर्ग से ₹100 अतिरिक्त शुल्क अनिवार्य।
- यह फीस लिखित परीक्षा से पहले सभी 10 लाख आवेदकों से ली जा रही है।
- अनुमान है कि इस अतिरिक्त शुल्क से सरकार को ₹15 करोड़ से अधिक की आय होगी, जबकि फिजिकल टेस्ट के लिए केवल 35,000 अभ्यर्थी ही चुने जाएंगे।
- कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने इसे धांधली का संकेत बताया; युवाओं ने भोपाल और इंदौर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है।
मध्यप्रदेश में बेरोजगार युवा पहले ही नौकरियों की कमी और परीक्षा की धांधली के आरोपों से जूझ रहे हैं। ऐसे में पुलिस आरक्षक भर्ती के लिए यह अतिरिक्त शुल्क लागू होना, युवाओं के लिए एक बड़ा झटका है। खासकर तब जब सरकार ने वन टाइम एग्जाम फीस का वादा किया था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर युवाओं का गुस्सा खुलकर सामने आ रहा है, जहाँ #NoFeeForPhysicalTest जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
फीस संरचना और ‘लूट’ का गणित
पुलिस आरक्षक भर्ती 2025 के लिए आवेदन की अंतिम तिथि (6 अक्टूबर) तक 8.87 लाख से 10 लाख आवेदन आने की उम्मीद है। ईएसबी ने पहले ही परीक्षा शुल्क के रूप में सामान्य वर्ग से ₹500 और आरक्षित वर्ग से ₹250 तय किए थे। अब फिजिकल टेस्ट के लिए जोड़े गए अतिरिक्त शुल्क से फीस संरचना कुछ यूं हो गई है:
श्रेणी | ईएसबी शुल्क (लिखित परीक्षा) | नया विभागीय शुल्क (फिजिकल टेस्ट) | कुल शुल्क |
सामान्य वर्ग | ₹500 | ₹200 | ₹700 |
आरक्षित वर्ग | ₹250 | ₹100 | ₹350 |
आंकड़ों के अनुसार, अगर 10 लाख युवा आवेदन करते हैं, तो केवल इस विभागीय शुल्क से ही सरकार को ₹15 करोड़ से अधिक की आय होगी। लेकिन सबसे बड़ी विसंगति यह है कि फिजिकल टेस्ट के लिए केवल 35,000 अभ्यर्थियों को ही बुलाया जाएगा, यानी बाकी सभी लाखों अभ्यर्थियों से यह शुल्क बिना सेवा दिए वसूला जा रहा है।
युवा संगठनों का कहना है कि पिछली भर्तियों में फिजिकल टेस्ट हमेशा निःशुल्क होता था, तो फिर अब अचानक यह शुल्क क्यों? सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा, “हम गरीब किसान के बेटे हैं, 7,500 पदों के लिए 10 लाख लोगों से ₹15 करोड़ बटोरना सरासर नौकरी के नाम पर लूट है।”
विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं। कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने इसे “बेरोजगारों से पैसे ऐंठने” की नीति बताया है और कहा है कि यह शुल्क भर्ती प्रक्रिया में पहले से मौजूद धांधली के आरोपों को और गंभीर बनाता है। युवा संगठनों ने इस शुल्क को तुरंत वापस लेने की मांग को लेकर भोपाल और इंदौर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है।
पुलिस विभाग ने इस शुल्क को जायज ठहराने के लिए उन्नत तकनीकी उपकरणों के उपयोग का हवाला दिया है। उनका कहना है कि दौड़, लंबी कूद और ऊंची कूद की निगरानी के लिए डिजिटल टाइमर और सेंसर का उपयोग किया जा रहा है, जिसके रखरखाव और संचालन का खर्च अधिक है।
हालांकि, युवाओं का सवाल है कि यदि यह तकनीक सरकारी संसाधनों से पहले ही खरीदी जा चुकी है, तो हर भर्ती में इसका खर्च बेरोजगारों पर क्यों थोपा जा रहा है?
यह विवाद न केवल आरक्षक भर्ती की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि यह भी आशंका है कि दिसंबर 2025 में प्रस्तावित सब-इंस्पेक्टर (एसआई) भर्ती में भी इसी तरह के अतिरिक्त शुल्क लागू किए जा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति सरकार के प्रति युवाओं के विश्वास को कमजोर कर रही है और भर्ती प्रक्रियाओं में अविश्वास को बढ़ा रही है।
पुलिस आरक्षक भर्ती में अतिरिक्त शुल्क का यह विवाद मध्यप्रदेश में रोजगार और पारदर्शिता के मुद्दे पर तनाव बढ़ा रहा है। सरकार को जल्द से जल्द इस शुल्क नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भर्ती प्रक्रिया आर्थिक शोषण का माध्यम न बने।
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