कफ सिरप कांड: 34 दिन तक मासूम मरते रहे, सरकार और सिस्टम तमाशा देखता रहा — एक प्रशासनिक अपराध की पूरी कहानी

By
On:
Follow Us

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में “कोल्ड्रिफ कफ सिरप” से मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला 34 दिन तक जारी रहा, लेकिन राज्य सरकार, स्वास्थ्य मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री तक ने पहले दिन से आंखें मूंदे रखीं। पहले मौतों से इनकार, फिर जांच का वादा, और आखिर में सच्चाई स्वीकारना — यह कहानी बताती है कि कैसे एक सिस्टमेटिक फेलियर ने 20 से ज़्यादा मासूमों की जान ले ली, और जिम्मेदारी आज भी हवा में झूल रही है।

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सितंबर की शुरुआत से लेकर अक्टूबर के पहले हफ्ते तक जो कुछ भी हुआ, वो किसी डरावनी कहानी से कम नहीं। 5 सितंबर से 7 अक्टूबर 2025 के बीच, पूरे 34 दिन तक मासूम बच्चे जहरीले कोल्ड्रिफ कफ सिरप की वजह से अपनी जान गंवाते रहे। मुझे याद है, जब पहली बार ये खबरें आईं, तो पहले तो लगा कोई मौसमी बीमारी होगी, पर जब नागपुर के अस्पताल से बच्चों के मरने की खबर आने लगी, तब समझ आया कि कुछ बहुत गलत हो रहा है। एमपी की सरकार और उनका पूरा सिस्टम इस दौरान क्या कर रहा था, यह बड़ा सवाल है।

मुख्य बातें:

  • छिंदवाड़ा में 5 सितंबर से 7 अक्टूबर तक जहरीले कोल्ड्रिफ कफ सिरप से 20 बच्चों की मौत हो गई।
  • 34 दिन तक मौतों का सिलसिला चलता रहा, पर सरकार और प्रशासन चुप रहा।
  • स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने 9 सितंबर को बयान दिया कि सिरप में कुछ भी विषाक्त नहीं मिला, बाद में तमिलनाडु लैब रिपोर्ट आने पर उन्होंने बयान बदला।
  • मृत बच्चों का पोस्टमार्टम शुरुआत में नहीं कराया गया, शवों को जल्दी दफनाने की अनुमति दी गई।
  • तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी और इंदौर की सप्लायर कंपनी में गंदगी, फंगस और नियमों का उल्लंघन पाया गया।
  • डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा सिरप में 486 गुना ज्यादा थी, जो जानलेवा है।
  • परासिया के एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया और कुछ ड्रग इंस्पेक्टर सस्पेंड हुए हैं।
  • पीड़ित परिवार आज भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं, सरकार से मदद की आस में हैं।
  • मीडिया ने पहले खबर दबाई, फिर सरकार का “सब ठीक है” वाला नैरेटिव फैलाया।
  • मानवाधिकार संगठन इस पूरे मामले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग कर रहे हैं।

त्रासदी की शुरुआत — सर्दी-खांसी की दवा बनी मौत की वजह

यह बात सितंबर 2025 के पहले हफ्ते की है। छिंदवाड़ा में कई बच्चों को सर्दी-खांसी हुई, और डॉक्टरों ने उन्हें कोल्ड्रिफ कफ सिरप दिया। ये सिरप तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्युटिकल्स ने बनाई थी। शुरुआत में तो किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। बच्चों को पेशाब बंद होने लगा, उल्टी-दस्त हुए, और वो बेसुध होने लगे। रिधोरा, परासिया, चौरई और छिंदवाड़ा शहर में ये लक्षण दिख रहे थे। मुझे याद है, एक माँ ने बताया था कि उनके बच्चे को सिर्फ सर्दी-खांसी थी, पता नहीं ये कैसे हो गया।

मौत के आंकड़े: 20 मासूम, 5 जिलों में फैला मातम

जिलामौतेंअस्पतालकारण
छिंदवाड़ा14नागपुर GMCH / कलर्स हॉस्पिटलकिडनी फेलियर
बैतूल2नागपुरमल्टी-ऑर्गन डैमेज
पंधुर्ना1नागपुरटॉक्सिन रिएक्शन
चौरई2छिंदवाड़ाकिडनी फेलियर
परासिया1नागपुरविषाक्त सिरप

The death toll in Madhya Pradesh linked to the toxic cough syrup has risen to 20.

पीड़ित परिवारों का दर्द — लाखों खर्च, पर लौटकर नहीं आई हंसी

  • वेदांश पवार (2.5 वर्ष) — इलाज में ₹12 लाख खर्च, फिर भी मौत।
  • भाव्या अडसरे (15 माह) — नागपुर में 18 दिन वेंटिलेटर पर रही, फिर चली गई।
  • जुनैद यदुवंशी (7 वर्ष) — परासिया का पहला बच्चा, डॉक्टर ने वही सिरप लिखी थी।
  • वेदांश काकोडिया (4 वर्ष) — “बच्चा ठीक हो जाएगा” कहकर घर भेजा गया, रास्ते में दम तोड़ा।

नागपुर के अस्पतालों में मची अफरा-तफरी

जब छिंदवाड़ा में बात नहीं बनी, तो कई बच्चों को नागपुर के कलर्स हॉस्पिटल और सरकारी मेडिकल कॉलेज (GMCH) ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने देखा कि सभी बच्चों की किडनी फेल हो रही थी। ब्लड रिपोर्ट देखकर डॉक्टरों ने कहा, “ये कोई मामूली संक्रमण नहीं, किसी जहरीले केमिकल का असर है।” सोचिए, वेदांश पवार, जो सिर्फ ढाई साल का था, या 7 साल का जुनैद यदुवंशी। ये बच्चे 21 से 27 दिन तक वेंटिलेटर पर लड़े, पर हार गए। वेदांश के पिता कपिल पवार ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे को बचाने में 10-12 लाख रुपए खर्च कर दिए, पर सरकार की तरफ से मदद नहीं मिली। उनका बेटा चला गया, तब तक प्रशासन जागा भी नहीं था। क्या बात है!

बढ़ती मौतें और सरकारी चुप्पी

पहली मौत 10 सितंबर को हुई। 14 सितंबर तक 10 बच्चे मर चुके थे, और 7 अक्टूबर आते-आते ये आंकड़ा 20 पर पहुंच गया। छिंदवाड़ा जिले के 17, बैतूल के 2 और पंधुर्ना का 1 बच्चा इस जहर का शिकार हुआ। 34 दिन तक बच्चे मरते रहे, और मुझे याद है, स्थानीय लोग परेशान थे। पर सरकार, मंत्री या प्रशासन की तरफ से कोई बड़ा नेता अस्पताल नहीं आया, कोई तत्काल राहत नहीं मिली। एक बयान आता रहा कि “रिपोर्ट आने तक कुछ नहीं कहा जा सकता।” ये चुप्पी बहुत भारी थी।

मंत्री बयानों का विरोधाभास — पहले इनकार, बाद में ‘एक्शन’

9 सितंबर को, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल का वीडियो बयान आया। उन्होंने कहा, “कोल्ड्रिफ सिरप से मौत की बात निराधार है, जांच में कोई जहर नहीं मिला।” यह बयान तब आया जब लैब की रिपोर्ट पूरी नहीं थी। इस बयान से सब कन्फ्यूज हो गए, और सिरप की बिक्री बंद नहीं हुई। सोचिए, 10 बच्चे और मर गए इसी दौरान!

लेकिन 4 अक्टूबर को जब तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल लैब की पूरी रिपोर्ट आई, तब पता चला कि सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) की मात्रा 486 गुना ज्यादा थी। ये वही रसायन हैं जो एंटीफ्रीज में डालते हैं। उसके बाद मंत्री जी का बयान बदला। उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, दोषियों पर कार्रवाई होगी।” मतलब, जब तक पुख्ता सबूत नहीं मिले, तब तक सरकार बच्चों की मौत को “अफवाह” बताकर टालती रही।

पहले इनकार, बाद में स्वीकार — मंत्री बयानों में विरोधाभास

मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने एक वीडियो बयान में कहा था —

“कोल्ड्रिफ कफ सिरप से किसी की मौत होना निराधार है।”

यह बयान तब दिया गया जब प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में दवा में कोई विषाक्त तत्व नहीं मिला था।
सरकार ने न तो फोरेंसिक जांच कराई, न ही तत्काल सिरप के सैंपल सीज़ किए।

लेकिन जब नागपुर के अस्पतालों में बच्चों की किडनी फेलियर और मल्टी-ऑर्गन डैमेज के प्रमाण सामने आए,
तब वही मंत्री कहने लगे —

“यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”

राजनीतिक दबाव और मीडिया शोर के बाद ही सरकार हरकत में आई —
लेकिन तब तक 14 बच्चों की जान जा चुकी थी।

राजस्थान के मंत्री ने तो पीड़ितों को ही दोषी ठहराया

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने तो इस त्रासदी को पूरी तरह नकार दिया।
उन्होंने कहा —

“दवा में कोई मिलावट नहीं हुई, बच्चों को दवा देना माता-पिता की जिम्मेदारी थी।”

इस बयान ने न केवल पीड़ित परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़का,
बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे सत्ता में बैठे लोग दोषियों की ढाल बन जाते हैं।
वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और जनता में ग़ुस्सा फूट पड़ा।

पोस्टमार्टम में देरी — दबाने की कोशिश या जांच से डर?

सबसे बड़ा सवाल यही है —

“अगर मौतें 10 सितंबर से शुरू हो गई थीं, तो पहले पोस्टमार्टम क्यों नहीं हुआ?”

रिपोर्टों से पता चलता है कि शुरू में प्रशासन ने मृत बच्चों के शव जल्दबाज़ी में दफनाने या अंतिम संस्कार की अनुमति दे दी,
और पोस्टमार्टम से परहेज किया गया। परिवारों का कहना है कि सरकार केस को दबाना चाहती थी, इसलिए पहले बच्चों को दफनाया गया, बाद में शव खोदकर निकाले गए

इस पूरे मामले में एक बहुत बड़ी गड़बड़ हुई। शुरुआत में मृत बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। परिजनों को बोला गया कि “बच्चे पहले से बीमार थे, मौत सामान्य है।” इसलिए शव जल्दी दफना दिए गए। पर जब मीडिया में खबर फैली और जहरीले सिरप की बात सामने आई, तब प्रशासन जागा और दफनाए हुए शवों को खोदकर दोबारा पोस्टमार्टम करवाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्टों में फिर वही बात निकली – बच्चों की किडनी और लीवर में जहरीले केमिकल मिले। ये सवाल तो बनता है, पोस्टमार्टम पहले क्यों नहीं हुआ? क्या कुछ छिपाने की कोशिश थी?

Also Read: छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड: 34 दिन की त्रासदी का तारीखवार पूरा घटनाक्रम

तमिलनाडु फैक्ट्री में भयावह खुलासे

जब डीसीजीआई (DCGI) और तमिलनाडु एफडीए की टीम कांचीपुरम में श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी पहुंची, तो वहां का हाल देखकर उनके भी होश उड़ गए। रिपोर्ट में बताया गया कि सिरप बनाने में फंगस वाला पानी इस्तेमाल हो रहा था। टैंकों और ड्रमों में गंदगी, बदबू और फफूंदी जमी हुई थी। प्रोपलीन ग्लाइकॉल बिना किसी लाइसेंस के खरीदा गया। कंपनी ने 364 नियमों का उल्लंघन किया था। 2023 से 2025 तक कंपनी बिना अपडेटेड लाइसेंस के ही काम कर रही थी। कई ड्रमों पर लिखा था “सिर्फ औद्योगिक उपयोग के लिए”। क्या बात है! ये सब देखकर तो गुस्सा आता है।

इंदौर में सप्लाई करने वाली कंपनी में भी मिला फंगस

दैनिक भास्कर की खास रिपोर्ट के अनुसार, जहरीले सिरप में जो कच्चा रसायन (प्रोपलीन ग्लाइकॉल) इस्तेमाल हुआ था, वो इंदौर की एक कंपनी से खरीदा गया था। जब ड्रग इंस्पेक्टर वहां छापा मारने गए, तो पाया कि पानी के टैंक में फफूंदी और गंदगी भरी थी। मतलब, ये जहर सिर्फ एक जगह से नहीं, बल्कि इंदौर और तमिलनाडु दोनों जगह की लापरवाही का नतीजा था।

डॉक्टर और प्रशासन दोनों जिम्मेदार

परासिया के सरकारी अस्पताल में एक डॉक्टर प्रवीन सोनी ने बच्चों को यही सिरप लिखा था। 5 अक्टूबर को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप है कि उन्होंने बिना जांच सिरप लिख दी और सरकारी नौकरी में रहते हुए भी प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे। राज्य सरकार ने दो ड्रग इंस्पेक्टर और एक डिप्टी डायरेक्टर को सस्पेंड किया है। एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाई गई है, जिसमें मध्य प्रदेश और तमिलनाडु पुलिस के अधिकारी हैं।

Also Read: 2 घंटे में 200 सिलेंडर क्यों फटे? RTO चेकिंग से बचने के चक्कर में ड्राइवर ने क्या बड़ी गलती कर दी?

पीड़ित परिवारों का दर्द — लाखों खर्च, एक माफी तक नहीं

छिंदवाड़ा, परासिया, बैतूल और पंधुर्ना के परिवार आज भी सदमे में हैं। कई परिवारों ने मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश की, पर अधिकारियों ने उन्हें रोक दिया। उन्हें बताया गया कि “आपका नाम सूची में नहीं है।” एक माँ, जिसने अपना बच्चा खोया, सीएम के काफिले का इंतजार करती रही, पर मिल नहीं पाई। ये परिवार कहते हैं, “हमारे बच्चों के नाम सिर्फ सरकारी फाइलों में हैं, न्याय कहीं नहीं दिख रहा।”

मीडिया की भूमिका — पहले चुप, बाद में ‘संतुलन’

मुझे कहना पड़ेगा, पहले 10 दिनों तक तो किसी बड़े राष्ट्रीय चैनल या अखबार ने इस खबर को ज्यादा नहीं दिखाया। लेकिन जब सोशल मीडिया पर #ColdrifTragedy और #CoughSyrupDeaths ट्रेंड करने लगा, तब जाकर मीडिया सक्रिय हुआ। फिर खबरों का तरीका बदल गया। हेडलाइनें ऐसी आने लगीं कि “सरकार ने SIT बनाई, कार्रवाई जारी है।” इससे जनता को लगा कि सरकार काम कर रही है, जबकि असली बात ये थी कि 34 दिन तक सिस्टम सोया हुआ था।

राजस्थान मंत्री का बयान — “माता-पिता जिम्मेदार हैं”

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने तो एक कदम और आगे बढ़कर कह दिया, “सिरप सुरक्षित है, कुछ बच्चे पहले से बीमार थे। इसमें माता-पिता जिम्मेदार हैं।” ये बात सोशल मीडिया पर वायरल हुई और जनता का गुस्सा बढ़ गया। परिवारों ने कहा, “हमने डॉक्टर पर भरोसा किया, सरकार ने वो भरोसा छीन लिया।” ये बात सुनकर मैं भी हैरान था।

सुप्रीम कोर्ट निगरानी में जांच की मांग

अब मानवाधिकार संगठन और कई लोग सुप्रीम कोर्ट से मांग कर रहे हैं कि इस पूरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो। उनका तर्क है कि ये सिर्फ एक राज्य की नहीं, बल्कि देश की दवा निगरानी व्यवस्था की असफलता है। कानूनी विशेषज्ञ तो इसे हत्या के समान अपराध (धारा 304 IPC) बता रहे हैं, क्योंकि अगर सरकारें समय पर जाग जातीं, तो इतनी जानें नहीं जातीं।

WHO ने दूषित दवाओं के उत्पादन और बिक्री के संबंध में चिंता जताई है।

 विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को दूषित दवाओं की घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए, भारत सरकार से जवाब मांगा है और इस तरह के मामलों को रोकने के लिए सख्त उत्पादन और बिक्री नियंत्रण की आवश्यकता पर जोर दिया है।

यह त्रासदी नहीं, सत्तात्मक अपराध है

छिंदवाड़ा की यह घटना हमें एक सबक सिखाती है। जब सरकारें सच्चाई को बचाने के बजाय अपनी इमेज बचाने में लग जाती हैं, तो सिस्टम जनता के खिलाफ खड़ा हो जाता है। 34 दिन तक मौतें होती रहीं, मंत्री बयानबाजी में लगे रहे, प्रशासन कागजों में उलझा रहा और मीडिया “संतुलित कवरेज” में। मासूम बच्चों की मौत सिर्फ दवा की वजह से नहीं हुई, बल्कि सरकार की लापरवाही, सिस्टम की बेरुखी और सत्ता की चुप्पी की वजह से हुई। यह सिर्फ “दुर्घटना” नहीं, बल्कि एक संगठित प्रशासनिक अपराध है।

रिपोर्ट: एमपी जनक्रांति न्यूज़ इन्वेस्टिगेशन टीम स्थान: छिंदवाड़ा / नागपुर / भोपाल / चेन्नई | अक्टूबर 2025

👉 ताज़ा अपडेट और स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहें MP Jankranti News के साथ।

Arshad Khan

Arshad Khan is a digital marketing expert and journalist with over 11 years of freelance experience in the media industry. Before joining MP Jankranti News, he worked with SR Madhya Pradesh News as a freelancer, focusing on digital growth and audience engagement. For the past 6 years, he has been contributing to MP Jankranti News through news coverage, content strategy, and digital outreach. His expertise lies in combining journalism with digital marketing techniques to maximize organic reach and reader engagement.

For Feedback - newsmpjankranti@gmail.com

Related News

Leave a Comment