बुरहानपुर (मध्य प्रदेश): मध्य प्रदेश के बुरहानपुर ज़िले के देवरी गाँव स्थित शासकीय प्राथमिक शाला में बच्चों को सूर्य नमस्कार कराने को लेकर उठे एक विवाद ने शिक्षक जबूर अहमद तड़वी को निलंबित करवा दिया है। यह घटना योगासन की एक मुद्रा और धार्मिक क्रिया के बीच की समानता को लेकर उपजे भ्रम या जानबूझकर की गई गलती के आरोपों के इर्द-गिर्द घूम रही है। यह मामला एक बार फिर शिक्षा और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच की रेखा पर बहस छेड़ गया है।

आरोपों की शुरुआत: घर में बच्चों की ‘नमाज’
विवाद तब सामने आया जब स्कूल के छात्रों के अभिभावकों ने शिकायत की कि उनके बच्चे घर आकर नमाज़ जैसी मुद्राएं दोहरा रहे थे। पूछने पर बच्चों ने बताया कि यह उन्हें “तड़वी सर ने सिखाया है।” अभिभावकों ने इस गतिविधि पर कड़ा एतराज जताया, जिसके बाद स्कूल प्राचार्य ने ज़िला शिक्षा अधिकारी को मामले की शिकायत की।
हिंदू जागरण मंच जैसे संगठनों ने भी इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए शिक्षक पर सख्त कार्रवाई की मांग की। मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात को प्रमुखता से उठाया गया कि एक मुस्लिम शिक्षक द्वारा हिंदू छात्रों को कथित तौर पर सूर्य नमस्कार के बहाने नमाज की मुद्राएं सिखाई जा रही थीं।
शिक्षक का स्पष्टीकरण: ‘शशांकासन’ था, आरोप बेबुनियाद
आरोपों और मीडिया कवरेज के बाद, शिक्षक जबूर अहमद तड़वी ने स्वयं एक वीडियो बयान जारी किया। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को “बेबुनियाद” बताते हुए कहा कि वह बच्चों को योग की किताब से देखकर “शशांकासन” नामक एक मुद्रा करा रहे थे।
शिक्षक के अनुसार, यह मुद्रा सूर्य नमस्कार के क्रम में शामिल है और इसमें बच्चे को खरगोश के समान घुटनों के बल बैठकर आगे की ओर झुकना होता है, जिसमें माथा ज़मीन को छूता है। तड़वी ने दावा किया कि इसी मुद्रा को गलतफहमी में नमाज़ का स्टेप समझ लिया गया, जबकि उनका इरादा कोई धार्मिक शिक्षा देने का नहीं था। उन्होंने निष्पक्ष जाँच की मांग की।
पक्ष सुने बिना निलंबन और जाँच का महत्वपूर्ण मोड़
आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, ज़िला शिक्षा अधिकारी संतोष सिंह सोलंकी ने शिक्षक जबूर अहमद तड़वी को तत्काल निलंबित कर दिया। इस त्वरित कार्रवाई पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या शिक्षक को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त और समान अवसर मिला था, खासकर तब जब उन्होंने स्वयं अपना स्पष्टीकरण जारी किया था। मीडिया के एक बड़े हिस्से ने आरोपों को प्रमुखता दी, लेकिन शिक्षक के स्पष्टीकरण को उतनी कवरेज नहीं मिली।

मामले की जाँच के दौरान, एक महत्वपूर्ण विकास में, जाँच कमेटी ने स्कूल के छात्रों से विवादित मुद्राओं को करवा कर देखा। छात्रों द्वारा किया गया यह प्रदर्शन अब जाँच के निष्कर्षों के लिए एक अहम साक्ष्य माना जा रहा है।
समानता और भ्रम: योगासन और नमाज की शारीरिक मुद्राएं
इस विवाद का मूल कारण योग और नमाज़ की कुछ शारीरिक मुद्राओं के बीच की समानता भी है। उदाहरण के लिए:
- बालासन (Child’s Pose), शशांकासन (Rabbit Pose) और अधो मुख वीरासन (Downward Facing Hero Pose) जैसी योगासन मुद्राएं, जिसमें घुटनों के बल बैठकर धड़ को आगे झुकाकर माथे को ज़मीन पर टिकाया जाता है, इस्लामी प्रार्थना नमाज़ के ‘सजदा’ (Prostration) से काफी मिलती-जुलती हैं।
- इसी तरह, खड़े होकर कमर से झुकने की कुछ योग मुद्राएं नमाज़ के ‘रुकु’ से मिलती-जुलती दिख सकती हैं।

यह शारीरिक समानता कई बार अनजाने में भ्रम पैदा कर सकती है, खासकर यदि बच्चों को इन मुद्राओं का संदर्भ या उद्देश्य स्पष्ट रूप से न समझाया गया हो।
निष्कर्ष: पारदर्शिता और न्याय की अपेक्षा
बुरहानपुर का यह मामला शिक्षा व्यवस्था में धार्मिक संवेदनशीलता, मीडिया कवरेज के प्रभाव और निष्पक्ष जाँच के महत्व को रेखांकित करता है। शिक्षक जबूर अहमद तड़वी का निलंबन एक प्रशासनिक कार्रवाई है, लेकिन अंतिम सत्य जाँच के निष्कर्षों पर निर्भर करेगा।

जनता और प्रभावित शिक्षक दोनों की निगाहें अब जाँच कमेटी की रिपोर्ट पर टिकी हैं। प्रशासन से यह उम्मीद की जाती है कि वह पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ अपनी रिपोर्ट जारी करेगा, ताकि सच सामने आ सके और बिना किसी धार्मिक पूर्वाग्रह के न्याय सुनिश्चित हो सके।
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