भिंड के छोटे से गाँव डोंगरपुरा से शुरू हुई यह कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। यह कहानी है जैनेन्द्र कुमार निगम की—उस युवक की, जो कभी जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया गया था, जिस पर झूठे मुकदमे दर्ज किए गए, जिसका घर जला दिया गया, जिसकी जिंदगी को मिटाने की तमाम कोशिशें की गईं, लेकिन जिसने टूटने के बजाय खुद को और मजबूत किया, और आखिरकार DSP की वर्दी पहनकर बाहर आया।
जैनेन्द्र की आँखें बचपन से ही एक सपना देखती थीं—वही सपना जो उसके पिता की आँखों में भी चमकता था। पिता MPPSC के पांच मुख्य परीक्षाएँ दे चुके थे, समाजशास्त्र और लोक प्रशासन की किताबें डेक पर कैसट लगाकर पढ़ते थे। वही किताबें बाद में जैनेन्द्र के जीवन का मार्गदर्शन बन गईं। पिता DSP बनना चाहते थे, पर झूठे केसों, जिम्मेदारियों और दबावों ने उनकी राह रोक दी। पिता का सपना अधूरा रह गया, लेकिन बेटा उसे पूरा करने के लिए जन्मा था—शायद किस्मत में यही लिखा था।
बारहवीं के बाद जैनेन्द्र की पढ़ाई डगमगा गई थी, B.Sc. जैसे-तैसे पास हुआ। लेकिन MJS कॉलेज भिंड में पढ़ने वाले दोस्तों को देखकर उसमें फिर आग लगी। 2015 में पुलिस आरक्षक की परीक्षा पास की, लेकिन पिता ने कहा—”DSP क्यों नहीं?”
बेटे ने उनकी बात मान ली, और फिजिकल ही नहीं दिया।
2017 में SI का फिजिकल था, पर दो दिन पहले कुछ लोगों ने हमला कर दिया। मौका फिर चला गया।
2019 में वर्ग–1 अधिकारी बन सकता था, परीक्षा पास भी कर ली, लेकिन उसने वह मौका भी ठुकरा दिया। किस्मत उसे कहीं और ले जाना चाहती थी।
और फिर वह तूफ़ान आया जिसने उसकी जिंदगी ही नहीं, उसके पूरे परिवार को हिला दिया।
14 अक्टूबर 2019—गाँव में रंजिश ने आग पकड़ी।
कुछ लोगों ने परिवार से मारपीट कर ली, बहिष्कार करा दिया, घर लूट लिया, जमीन कब्जा कर ली, और पुलिस ने जैनेन्द्र, उसके भाई और पिता पर झूठी FIR दर्ज कर दी।
तीनों को जेल भेज दिया गया।
निर्दोष होकर जेल जाना—दुनिया का सबसे बड़ा आघात होता है।
लेकिन जैनेन्द्र ने टूटना नहीं चुना।
जमानत मिली तो उसने दुनिया को दिखा देने की ठान ली कि वह हार मानने वालों में से नहीं है।
जेल से बाहर आने के पाँच दिन बाद वह पैदल भारत यात्रा पर निकल गया।
न पैसा, न साधन, न कोई ठिकाना।
दो जोड़ी कपड़े, भूख में किसी से खाना मांग लेना, थककर सड़क किनारे सो जाना।
वह पैदल ही जम्मू-कश्मीर तक पहुँच गया था।
लेकिन लॉकडाउन लगा और उसे वापस लौटना पड़ा।
घर लौटा तो हाल और बदतर था।
अप्रैल 2020—परिवार पर जानलेवा हमला हुआ, पूरा घर जला दिया गया।
दूसरी झूठी FIR दर्ज कर उसे और उसके परिवार को फिर जेल भेजा गया।
जेल में अपराधियों ने उसे भड़काने की हर कोशिश की—“हमारे साथ आ जाओ।”
लेकिन वह रास्ता उसकी किस्मत में नहीं था।
8 जनवरी 2021 को वह जमानत पर बाहर आया।
11 जनवरी को इंदौर पहुँचा—PSC की तैयारी करने।
बुआ से पैसे उधार लिए और पढ़ाई में डूब गया।
लेकिन भाग्य फिर परीक्षा ले रहा था—मार्च 2021 में कोरोना लॉकडाउन लग गया।
इसी बीच उसके खिलाफ हत्या के प्रयास (307) की झूठी FIR दर्ज कर दी गई, जबकि वह CCTV में इंदौर के हॉस्टल में मौजूद था।
कुछ ही दिनों बाद उसके परिवार का भीषण एक्सीडेंट हुआ।
मां की कमर टूट गई, भाई का पैर टूट गया।
वह रो पड़ा, टूट गया।
लेकिन पिता ने हाथ पकड़कर कहा—“तुम्हें DSP बनना है, और यही हमारे जीने की वजह है।”
जैनेन्द्र उठ खड़ा हुआ।
उसकी जिद अब किसी तूफान से कम नहीं थी।
2020 में वह नायब तहसीलदार बना,
2022 में सहायक संचालक,
और फिर आया 2023–24।
मुख्य परीक्षा के दिनों में उसे मलेरिया और टाइफाइड हो गया।
डॉक्टर ने आराम की सलाह दी, पर उसने ड्रिप लगवाकर परीक्षा दी।
सुबह-सुबह कलाई में सुई लगी होती, शाम को फिर से ड्रिप—और वह पेपर देने जाता।
उसकी संघर्ष कहानी अब सिर्फ जिंदगी नहीं, इरादे बन चुकी थी।
7 नवंबर 2025, शाम 7:15 बजे—
जब रिज़ल्ट आया और उसने फोन पर कहा—
“पापा… मैं DSP बन गया।”
उस तरफ पिता का गला भर आया,… उधर मां सुबकने लगी,… वर्षों बाद उस घर में सच्चा उजाला लौटा।
आज DSP जैनेन्द्र कुमार निगम सिर्फ एक अधिकारी नहीं,
मध्य प्रदेश के उन हजारों युवाओं की उम्मीद है जो संघर्ष से लड़ रहे हैं।
उनकी कहानी बताती है कि—
“किस्मत आपको गिरा जरूर सकती है,
पर हार तभी होती है,
जब इंसान हार मान ले।”
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