बीजेपी शासित राज्य और केंद्र की नीतियों के बीच किसान इतना मजबूर कि ज़मीन, ट्रैक्टर के बाद, किसान ने किडनी बेच दी

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महाराष्ट्र का यह मामला केवल एक किसान की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि भाजपा शासित राज्य और केंद्र सरकार की किसान-विरोधी नीतियों का आईना है। जिस देश में किसानों को आय दोगुनी करने के वादे किए गए थे, वहीं एक किसान को 50 हजार रुपये के कर्ज के बोझ से निकलने के लिए अपनी जमीन, ट्रैक्टर और अंततः अपनी किडनी तक बेचनी पड़ी। यह सवाल उठाता है कि आखिर सरकारी बैंकिंग व्यवस्था, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और साहूकारी नियंत्रण कानून ज़मीन पर क्यों विफल हो रहे हैं।

सरकारें बार-बार आत्मनिर्भर किसान और विकसित भारत की बात करती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि किसान आज भी अवैध साहूकारों के रहमो-करम पर जीने को मजबूर है। यदि समय रहते राज्य और केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया होता, तो शायद एक किसान को अपने शरीर के अंग तक बेचने की नौबत नहीं आती। यह घटना ‘अच्छे दिनों’ के दावों पर गंभीर सवाल खड़े करती है और यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या किसान वास्तव में सरकार की प्राथमिकता में है।

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले से सामने आया एक मामला राज्य में गहराते कृषि संकट, अवैध साहूकारी और किसानों की बदहाल आर्थिक स्थिति की भयावह तस्वीर पेश करता है। जिले के नागभीड़ तहसील के मिंथुर गांव निवासी 29 वर्षीय किसान रोशन कुदे ने मात्र 50 हजार रुपये के कर्ज से शुरू हुई देनदारी के बोझ से बाहर निकलने की कोशिश में अपनी जमीन, ट्रैक्टर और घरेलू सामान बेच दिया, लेकिन अंततः उन्हें अपनी एक किडनी बेचने तक का कदम उठाना पड़ा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, रोशन कुदे चार एकड़ कृषि भूमि के मालिक हैं। बीते कुछ वर्षों में लगातार फसल खराब होने, प्राकृतिक आपदाओं और घटती आय के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली गई। वर्ष 2021 में खेती से होने वाले नुकसान की भरपाई और डेयरी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से उन्होंने स्थानीय साहूकार से 50 हजार रुपये उधार लिए। शुरुआत में लिया गया यह कर्ज अत्यधिक ब्याज दरों के कारण जल्द ही बढ़ने लगा।

कुदे का आरोप है कि पहले साहूकार ने उनसे अत्यधिक ब्याज वसूला और रकम लौटाने के बावजूद मूलधन बकाया होने का दावा किया। इसके बाद उन्हें दूसरे साहूकार के पास भेज दिया गया, जहां और अधिक ब्याज दर पर नया कर्ज लेने के लिए मजबूर किया गया। धीरे-धीरे वह छह साहूकारों के एक गिरोह के जाल में फंस गए, जिन्होंने कथित तौर पर 40 प्रतिशत मासिक ब्याज वसूलना शुरू कर दिया।

लगातार बढ़ते कर्ज और उत्पीड़न के चलते कुदे की स्थिति और खराब होती गई। पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार, साहूकारों ने उनसे पैसे वसूलने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। कई बार उन्हें बंधक बनाकर रखने और मारपीट करने के आरोप भी लगाए गए हैं। बढ़ती देनदारी से परेशान होकर किसान ने अपनी दो एकड़ जमीन, ट्रैक्टर और घरेलू सामान तक बेच दिया, इसके बावजूद कर्ज कम होने के बजाय बढ़कर कथित तौर पर 74 लाख रुपये तक पहुंच गया।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्ज के जाल से निकलने की हताशा में एक साहूकार ने कुदे को अपनी किडनी बेचने का सुझाव दिया। इसके बाद कुदे एक एजेंट के संपर्क में आए, जो उन्हें पहले कोलकाता और फिर कंबोडिया ले गया। वहां मेडिकल प्रक्रिया के दौरान उनकी एक किडनी निकाली गई, जिसके बदले उन्हें करीब 8 लाख रुपये मिले।

मंगलवार को रोशन कुदे ने ब्रह्मपुरी थाने में साहूकारों के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की। जांच के दौरान चंद्रपुर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में उनकी स्वास्थ्य जांच कराई गई, जहां डॉक्टरों ने पुष्टि की कि उनके शरीर में केवल एक ही किडनी शेष है। पुलिस ने इस मामले में छह साहूकारों के खिलाफ केस दर्ज कर अब तक छह आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से पांच को न्यायालय ने 20 दिसंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

चंद्रपुर के पुलिस अधीक्षक सुदर्शन मुम्माका ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी वित्तीय लेन-देन की गहन जांच की जा रही है। यह भी जांच का विषय है कि किडनी ट्रांसप्लांट जैसी अवैध प्रक्रिया में कौन-कौन लोग और नेटवर्क शामिल थे।

यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं के आंकड़े लगातार चिंता बढ़ा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में ही राज्य में 781 किसानों ने कर्ज, फसल नुकसान और अत्यधिक बारिश के कारण आत्महत्या की। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, देश में होने वाली कुल किसान आत्महत्याओं में से लगभग आधी महाराष्ट्र में दर्ज की जाती हैं।

चंद्रपुर का यह प्रकरण केवल एक किसान की त्रासदी नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, अवैध साहूकारी और सरकारी संरक्षण तंत्र की कमजोरियों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

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