इंदौर। इंदौर स्थित शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. इनामुर रहमान को लगभग तीन वर्षों बाद धार्मिक कट्टरता और पक्षपात फैलाने के आरोपों से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने विभागीय जांच पूरी होने के बाद 8 दिसंबर 2025 को आदेश जारी कर उन्हें क्लीनचिट प्रदान की है और निलंबन अवधि को ड्यूटी पीरियड मानते हुए सभी वैधानिक लाभ देने के निर्देश दिए हैं।
डॉ. इनामुर रहमान दिसंबर 2022 में कॉलेज के प्राचार्य पद पर कार्यरत थे। उसी दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े कुछ छात्रों ने उन पर कॉलेज परिसर में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने और मुस्लिम शिक्षकों के पक्ष में भेदभाव करने जैसे आरोप लगाए थे। इन आरोपों के बाद कॉलेज परिसर में तनाव की स्थिति बन गई थी और विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।


विरोध के बाद दर्ज हुई थी एफआईआर
एबीवीपी के विरोध के बाद भंवरकुआं थाना पुलिस ने डॉ. रहमान सहित अन्य प्रोफेसरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। आरोपों में कहा गया था कि कॉलेज की लाइब्रेरी में उपलब्ध कुछ पुस्तकों के माध्यम से छात्रों के बीच सांप्रदायिक विद्वेष फैलाया जा रहा है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद डॉ. रहमान को निलंबित कर दिया गया और उनके विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश भी जारी किए गए।
Dr. Inamur Rahman vs The State Of Madhya Pradesh on 21 December, 2022
मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
इस प्रकरण ने उस समय राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया था। डॉ. रहमान और अन्य शिक्षकों ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख किया। मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां 14 मई 2024 को शीर्ष अदालत ने एफआईआर को निरस्त कर दिया। अदालत ने राज्य सरकार के रवैये पर टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया कि आरोपों के समर्थन में ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं।

विभागीय जांच में भी आरोप साबित नहीं
हालांकि एफआईआर रद्द होने के बावजूद विभागीय जांच जारी रही। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा गठित जांच समिति ने मार्च 2025 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कहा गया कि डॉ. रहमान के खिलाफ लगाए गए आरोपों को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। न तो धार्मिक कट्टरता फैलाने का कोई ठोस प्रमाण मिला और न ही किसी प्रकार के प्रशासनिक पक्षपात की पुष्टि हो सकी।
सेवानिवृत्ति के बाद मिला अंतिम निर्णय
डॉ. इनामुर रहमान मई 2024 में अपनी सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके थे। विभागीय जांच लंबित रहने के कारण उनके सेवा संबंधी लाभ प्रभावित हो रहे थे। अब 8 दिसंबर 2025 को जारी आदेश में शासन ने उन्हें पूर्ण रूप से दोषमुक्त करते हुए निलंबन अवधि को सेवा अवधि मानने और नियमानुसार सभी आर्थिक लाभ देने का निर्णय लिया है।
शिक्षा जगत में हुई व्यापक चर्चा
यह मामला शिक्षा जगत और प्रशासनिक हलकों में लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहा। शिक्षाविदों का कहना है कि इस प्रकरण ने अकादमिक स्वतंत्रता, प्रशासनिक प्रक्रिया और जांच की निष्पक्षता जैसे महत्वपूर्ण सवालों को सामने रखा है। वहीं, डॉ. रहमान के समर्थकों का कहना है कि तीन वर्षों तक चले इस प्रकरण ने एक वरिष्ठ शिक्षाविद के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

अदालत ने निर्दोष कहा, लेकिन क्या एक शिक्षक की छीनी गई इज़्ज़त लौटाई जा सकती है?
डॉ. इनामुर रहमान आज क़ानून की नज़र में निर्दोष हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी।
विभागीय जांच ने सारे आरोप झूठे बता दिए।
सरकार ने क्लीन चिट दे दी।
लेकिन सवाल यह है —
क्या कोई आदेश उस अपमान को मिटा सकता है जो तीन साल तक सार्वजनिक रूप से किया गया?
दिसंबर 2022 में इंदौर के शासकीय लॉ कॉलेज के प्राचार्य डॉ. इनामुर रहमान को “लव जिहाद”, “इस्लामी कट्टरवाद” और “तुष्टिकरण” जैसे शब्दों से नंगा किया गया।
बिना सबूत।
बिना जांच।
बिना सुने।
यह आरोप नहीं थे —
यह एक तयशुदा सजा थी।
कैंपस में नारे लगे।
टीवी स्टूडियो में ट्रायल चला।
हेडलाइन में फैसला सुना दिया गया।
कोई यह पूछने को तैयार नहीं था कि
- सबूत कहाँ हैं?
- आरोप लगाने वाले कौन हैं?
- और क्या एक शिक्षक को भी सुने जाने का अधिकार है?
एक 58 साल का व्यक्ति, जिसने पूरी ज़िंदगी संविधान और क़ानून पढ़ाया,
उसे उसी संविधान के नाम पर रौंद दिया गया।
डॉ. रहमान टूट गए।
उन्होंने इस्तीफा दिया।
कैमरे के सामने रो पड़े।
उस दिन सिर्फ़ एक इंसान नहीं टूटा था —
एक संस्था हारी थी।
उनके साथ पाँच और मुस्लिम प्रोफेसर भी निशाने पर आए।
एफआईआर दर्ज हुई।
निलंबन हुआ।
जांच बैठी।
तीन साल तक एक शिक्षक यह साबित करता रहा कि
वह अपराधी नहीं है।
जबकि सवाल यह होना चाहिए था कि
उसे अपराधी किसने और क्यों बनाया?
अब अदालत ने कह दिया —
आरोप झूठे थे।
विभाग ने कह दिया —
कोई साक्ष्य नहीं मिला।
सरकार ने आदेश जारी कर दिया —
क्लीन चिट।
लेकिन जिन मीडिया चैनलों ने
दिन–रात ज़हर फैलाया,
जिन नेताओं ने बयानबाज़ी कर तालियाँ बटोरीं,
जिन संगठनों ने नैरेटिव गढ़ा —
वे आज कहाँ हैं?
क्या किसी ने माफ़ी माँगी?
क्या किसी चैनल ने कहा — हम ग़लत थे?
क्या किसी नेता ने स्वीकार किया कि
उन्होंने एक शिक्षक का जीवन तबाह किया?
नहीं।
क्योंकि इस देश में
मुसलमान को आरोपी बनाना खबर होती है,
और उसके निर्दोष साबित होने पर चुप्पी।
डॉ. रहमान रिटायर हो चुके हैं।
उनका करियर वापस नहीं आएगा।
उनके छात्रों की नज़रों में जो शक बोया गया,
वह कोई कोर्ट ऑर्डर नहीं मिटा सकता।
यह मामला सिर्फ़ डॉ. रहमान का नहीं है।
यह चेतावनी है हर शिक्षक, हर प्रोफेसर, हर विचारशील नागरिक के लिए —
कि अगर आप सवाल करेंगे,
अगर आप सत्ता के लिए असुविधाजनक होंगे,
तो एक नैरेटिव तैयार है।
और जब आप टूट जाएंगे,
तो वही सिस्टम कहेगा —
अब सब ठीक है, आप बरी हैं।
लेकिन कोई यह नहीं पूछेगा कि
जो इज़्ज़त चली गई, उसका हिसाब कौन देगा?
आज वही मीडिया
किसी और शिकार की तलाश में है।
किसी और चेहरे पर वही आरोप चिपकाने को तैयार है।
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