भारत में देखा जाए तो रोज लाखों लोग खा रहे अमानक स्तर की ब्रेड.।।

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इन ब्रेडों में एक्सपायरी डेट का जिक्र तक नहीं किया जा रहा


क्या यह पुरानी फंगस लगी हुई खराब ब्रेड को बेचने का भी एक तरीका हो सकता है?

फूड विभाग के अधिकारी आखिर क्यों मूकदर्शक बने हुए हैं?

आखिर किस आधार पर दिया जाता है बेकरी वालों को ब्रेड बनाने का एफएसएसआई लाइसेंस?

क्या किसी बड़े नुकसान का इंतजार कर रहे हैं?
(एच एल विश्वकर्मा) रीवा/मध्य प्रदेश:–आपको बता दें कि अधिकांश घरों में सुबह सुबह ब्रेड खाने का ही चलन प्रचलित है ज्यादातर लोग सुबह के नाश्ते में ब्रेड लेना पसंद करते हैं यहां तक की अस्पतालों मे भी ब्रेड और दूध मरीजों को दिया जाता है एक तो बेचारा बीमार मरीज दूसरा खराब ब्रेड को खाकर और भी बीमार हो सकता है आखिर इस बड़े मुद्दे पर किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा.
फूड विभाग आखिर कर क्या रहा?
     मैं मानता हूं की जनता अभी इन मामलों को लेकर बहुत जागरूक नहीं है लेकिन स्वास्थ्य जैसे गंभीर विषय को लेकर क्या जनता को उनके हाल पर छोड़ देना ठीक होगा. आपको बता दें कि जब हम रीवा शहर में बिक रही ब्रेड जिस में मुख्यतः पसंद ब्रेड, पापुलर ब्रेड, ‌ आहार ब्रेड, की मालिकों से चर्चा करनी चाही तो उनकी जनता के प्रति संवेदनहीनता देखकर मैं खुद सोच में पड़ गया, उनके रवैया से ऐसा लगा की व्यापारियों का काम होना चाहिए चाहे लोगों की जान भले चली जाए, बस उनका व्यापार फलता फूलता रहे, आज रीवा शहर में बेड फैक्ट्री के मालिकों के शहर में कई बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई है व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन जनता के स्वास्थ्य के प्रति उन पर जरा भी संवेदनशीलता नहीं दिखती, हालांकि वह व्यापारी हैं वह तो अपना हित ही देखेंगे। । लेकिन सरकार के नुमाइंदे फूड विभाग के अधिकारियों की संवेदनशीलता क्यों खत्म हो रही है। ना तो ब्रेड के पैकेट में एक्सपायरी डेट या यूज बेस्ट बिफोर डेट का विवरण दिया जाता है।  
  फूड विभाग के अधिकारियों से जब पत्रकार बात करते हैं वह मुस्कुरा कर जवाब देते हैं ऐसा लगता है जैसे इस गंभीर स्वास्थ्य के विषय पर उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। ऐसे में ब्रेड उपभोक्ताओं को चाहिए की बिना एक्सपायरी डेट वाली ब्रेडों को खरीदना छोड़ दे ताकि हम और अपने परिवार को फूड प्वाइजनिंग जैसी गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रख सकें।
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