आमजन की नजर से बजट को समझें ? कितना अमृत कितना काल ?

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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बीती 1 फ़रवरी को 2023-24 का पूर्ण बजट पेश किया। बजट को लेकर वित्त मंत्री ने कई ऐलान भी किए, जहां टैक्स स्लैब को कम किया गया है और टैक्स में छूट भी दी गई है। सीतारमण के पूरे भाषण को अगर सुना जाए तो उनके भाषण में गरीबी, समानता और बेरोजगारी जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया।

बेरोजगारी को लेकर सरकार ने कहा था कि हर साल 2 करोड़ नौकरी देगी, लेकिन नौकरी को लेकर, वो भी सरकारी नौकरी को लेकर कुछ भी नहीं सुनने को मिला। दूसरी तरफ देखें तो वन-नेशन, वन-टैक्स की बात करने वाली सरकार ने GST की दरों में कोई भी कटौती नहीं की है।

ऐसे में सबसे ज्यादा दवाब देखा जाए तो आम और गरीब जनता पर ही है। साथ ही भारत गांवों का देश है और भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में रहती है। ऐसे में उनके विकास की बात करे या काम को लेकर सरकार की तरफ से कोई जरूरी कदम नहीं उठाए गए। जिस मनरेगा के चलते गांव के लोगों को गारंटी योजना के तहत नौकरी मिल रही थी, उस मनरेगा को लेकर वित्त मंत्री के पिटारे से कुछ भी नहीं निकला। सरकार को बताना चाहिए कि आखिर उन मजदूरों के लिए सरकार क्या करने जा रही है?

 

आम जनता जहां महंगाई से परेशान है, वहां इस पूरे बजट पर वित्त मंत्री के भाषण में कुछ भी सुनने को नहीं मिला। शायद सरकार गरीब और बेरोजगार की तरफ ध्यान देना भूल गई है। बजट में अगर भारत की राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो पिछले साल दिल्ली वालों ने करीब 1.75 लाख करोड़ से ज्यादा इनकम टैक्स भरा है, लेकिन निर्मला जी की नजर सबसे ज्यादा टैक्स भरने वालों पर भी नहीं पड़ी और निर्मला सीतारमण के बजट पिटारे से सिर्फ 325 करोड़ ही दिल्ली के विकास के लिए निकले।

शिक्षा को लेकर बजट जहां पिछले बार 2.64% था उसे घटाकर 2.5% कर दिया गया। ऐसे में सवाल ये उठता है कि कैसे पढ़ेगा भारत और कैसे बढ़ेगा? भारत इसका जवाब तो सिर्फ वित्त मंत्री जी ही बता सकती है! कोरोना की जिस त्रासदी को भारत ने देखा है उसमें स्वास्थ बजट जहां 2.2% था उसे भी घटा कर 1.98% कर दिया गया। यानी कुल मिलाकर जिस दिल्ली में मौजूद सदन में बजट पेश किया जा रहा था, जिस दिल्ली ने सबसे ज़्यादा टैक्स दिया, उसके लिए ये बजट कहे तो “नील बट्टा सन्नाटा रहा।”

बजट आने के बाद से ही गैर भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों ने बजट पर सवाल उठाए है चाहे वो भूपेश बघेल हो या पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश भी सवाल उठा रहे है। बजट में राज्य के अनुसार असमानता वाला बंटवारा केंद्र सरकार को मुश्किल में डाल सकता है।

अगर हम किसानों की बात करे तो MSP को लेकर किसान लगातार धरने पर बैठे रहे और जिस को लेकर तीनों कृषि बिल वापस लिए गए। उन सभी बात को इस बजट में वित्त मंत्री ने पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया और MSP पर कुछ भी ना बोला गया और ना ही कोई उम्मीद भी दिखी है। अब ऐसे में ये बजट आम जनता को कितना रास आ रहा है ये तो जनता अब समझ रही है।

हालात ये है कि ना तो इस बजट को स्वीकार कर पा रही है और ना ही कुछ बोल पा रही है। साफ शब्दों में कहा जाए तो ये बजट आम लोग से कहीं, खास लोगों के लिए रहा है और ऐसा माना जा रहा है।

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