नई दिल्ली, भारत: कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को केंद्र की मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने दावा किया है कि बिहार के भागलपुर जिले में एक पावर प्लांट लगाने के लिए उद्योगपति गौतम अदाणी को मात्र 1 रुपए प्रति वर्ष की दर से 1,050 एकड़ जमीन दी गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सौदा बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले किया गया है और यह किसानों से ‘जबरदस्ती’ जमीन छीनने जैसा है। खेड़ा ने इसे सरकार द्वारा ‘राष्ट्र सेठ’ को दिया गया ‘गिफ्ट’ बताया है।
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मामले का विवरण: इंदिरा भवन स्थित कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस वार्ता के दौरान पवन खेड़ा ने कहा कि यह जमीन और इस पर लगे आम, लीची और सागवान के 10 लाख पेड़ 33 साल के लिए अदाणी समूह को सौंपे गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्लांट के शिलान्यास से पहले विरोध कर रहे कुछ किसानों को नजरबंद भी किया गया। खेड़ा ने कहा कि जब भी चुनाव नज़दीक आते हैं और भाजपा को हार का डर सताता है, तब ऐसे बड़े प्रोजेक्ट्स दिए जाते हैं।
‘डबल लूट’ का आरोप: कांग्रेस नेता ने कहा कि यह सौदा भागलपुर के पीरपैंती में 2,400 मेगावाट के पावर प्लांट के लिए है, जिसकी अनुमानित लागत 21,400 करोड़ रुपए है। उन्होंने बताया कि इस प्लांट की घोषणा केंद्रीय बजट में भी हुई थी और तब सरकार ने खुद इसे लगाने की बात कही थी, लेकिन बाद में इसे अदाणी को सौंप दिया गया।

खेड़ा ने इसे ‘डबल लूट’ बताते हुए कहा कि बिहार की जमीन और संसाधनों पर बने इस प्लांट से बिहार के लोगों को महंगी बिजली बेची जाएगी। उन्होंने दावा किया कि इस प्लांट से बिहार के लोगों को 6.075 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी, जबकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में यही दर 3 से 5 रुपए है।
किसानों पर दबाव का दावा: कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि किसानों से जबरन हस्ताक्षर करवाए गए हैं और उनकी जमीनें छीन ली गई हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ बीजेपी ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसे अभियान चलाती है, और दूसरी तरफ उसी जमीन की कीमत सिर्फ 1 रुपए लगाती है, जिसे किसान अपनी मां की तरह मानते हैं।
कांग्रेस द्वारा लगाए गए ये आरोप सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हैं। कांग्रेस ने इस सौदे को चुनाव से पहले ‘गिफ्ट’ बताते हुए इसमें पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। यह मामला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, क्योंकि यह सीधे तौर पर किसानों और आम उपभोक्ताओं से जुड़ा हुआ है।
