जनक्रांति न्यूज़ डेस्क | 17 सितम्बर 2025
भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और कॉर्पोरेट ताक़त के टकराव का विवाद और गहराता जा रहा है। अदाणी समूह द्वारा दायर मानहानि मामले में अदालत के एकतरफ़ा (Ex Parte) आदेश का हवाला देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 16 सितम्बर को बड़ा कदम उठाया। मंत्रालय ने दो मीडिया संस्थानों और कई स्वतंत्र पत्रकारों/यूट्यूब चैनलों को नोटिस जारी कर कुल 138 यूट्यूब वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने का आदेश दिया है।
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अदालत का आदेश और सरकार की कार्रवाई
06 सितम्बर 2025 को दिल्ली के उत्तर-पश्चिम ज़िला न्यायालय (रोहिणी कोर्ट) ने एक Ex Parte (एकतरफ़ा) आदेश जारी किया था। इसमें वरिष्ठ पत्रकार परांजय गुहा ठाकुरता, रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयुषकांत दास और अयुष जोशी सहित कई पत्रकारों और संगठनों को निर्देश दिया गया था कि वे अदाणी समूह के खिलाफ “मानहानिकारक और अप्रमाणित” लेख तथा पोस्ट हटाएँ।
इसी आदेश का हवाला देते हुए I&B मंत्रालय ने कहा कि संबंधित प्रकाशन और पत्रकार अदालत की तय समयसीमा में अनुपालन करने में विफल रहे हैं। इसलिए अब उन्हें 36 घंटे की डेडलाइन दी गई है, जिसमें कंटेंट हटाकर रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपनी होगी।

किन पर कार्रवाई हुई?
इस नोटिस की सूची में शामिल हैं:
- The Wire (एक इंस्टाग्राम पोस्ट को लेकर)
- Newslaundry
- रवीश कुमार
- अजीत अंजुम
- ध्रुव राठी
- आकाश बनर्जी (The Deshbhakt)
- और कई अन्य स्वतंत्र पत्रकार व डिजिटल प्लेटफॉर्म।
नोटिस की प्रतियां गूगल और मेटा को भी भेजी गई हैं।
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विवादास्पद पहलू
- इस कार्रवाई में सूचीबद्ध कुछ वीडियो/पोस्ट वास्तविक रिपोर्ट नहीं थे, बल्कि सदस्यता अपील या स्क्रीनशॉट जैसे सामान्य कंटेंट थे।
- आलोचकों का मानना है कि यह कदम आलोचनात्मक पत्रकारिता को दबाने की कोशिश है।
- साथ ही, यह सवाल भी उठ रहा है कि अदालत ने एकतरफ़ा आदेश क्यों पारित किया, जिसमें पत्रकारों का पक्ष सुना ही नहीं गया।
ठाकुरता का बयान
पत्रकार परांजय गुहा ठाकुरता ने इसे लेकर बयान दिया था:
- यह उनके खिलाफ अदाणी समूह का सातवाँ मानहानि केस है।
- उन्होंने कहा कि उनके सभी लेख तथ्य आधारित और जनहित में हैं।
- उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा है और वे अदालत में मजबूती से अपनी दलीलें पेश करेंगे।
बड़ा सवाल
यह पूरा घटनाक्रम एक बार फिर कई सवाल सामने लाता है:
- क्या सरकार और अदालतें कॉर्पोरेट समूहों के पक्ष में खड़ी नज़र आ रही हैं?
- क्या यह आदेश प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित करने वाला है?
- या फिर इसे सचमुच “मानहानि और झूठी रिपोर्टिंग रोकने का आवश्यक कदम” कहा जा सकता है?
फिलहाल, 138 वीडियो और 83 इंस्टा पोस्ट हटाने के आदेश ने इस विवाद को और गहरा दिया है। अब सबकी नज़र आने वाली अदालत की सुनवाई पर है—क्या प्रेस की स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी या कॉर्पोरेट प्रतिष्ठा को प्राथमिकता मिलेगी?
