पक्के-केसांग, अरुणाचल प्रदेश (MP जंक्रांति न्यूज़)। अरुणाचल प्रदेश के पक्के-केसांग जिले से सामने आई एक घटना ने पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहाँ के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV) की कम से कम 90 छात्राओं ने अपने स्कूल में शिक्षकों की भारी कमी को उजागर करने के लिए 65 किलोमीटर लंबा पैदल मार्च किया।
छात्राओं का यह संघर्ष तब और चुभता है जब केंद्र और राज्य – दोनों जगह भाजपा की डबल इंजन सरकार है। 2014 से लगातार शिक्षा सुधार और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे देने वाली सरकारों के बावजूद, छात्राओं को अपनी पढ़ाई के लिए यह अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा।

रातभर चला छात्राओं का संघर्ष रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन छात्राओं ने रविवार शाम को अपने गाँव नांगन्यो से यह मार्च शुरू किया। पूरी रात नीली स्कूल यूनिफॉर्म में ये छात्राएँ 65 किलोमीटर पैदल चलती रहीं और सुबह लेम्मी जिला मुख्यालय पहुँच गईं। उनके हाथों में पोस्टर थे, जिन पर लिखा था, “एक स्कूल बिना शिक्षक के सिर्फ एक इमारत है” और “हमें भूगोल और राजनीति विज्ञान पढ़ना है”। कक्षा 11 और 12 की छात्राओं ने इस मार्च का नेतृत्व करते हुए अपने हकों के लिए जोरदार नारे लगाए।
शिक्षक न होने से मजबूर हुई छात्राएँ छात्राओं ने बताया कि उनके विद्यालय में पिछले काफी समय से भूगोल और राजनीति विज्ञान के शिक्षक नहीं हैं। वे कई बार स्कूल प्रशासन और शिक्षा विभाग से इसकी शिकायत कर चुकी थीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार, अपने भविष्य की चिंता में उन्हें यह कठिन रास्ता चुनना पड़ा।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ने भी स्वीकार किया कि विषय-विशेष शिक्षकों की कमी है। वहीं, एक विभागीय अधिकारी ने बताया कि भर्ती प्रक्रिया रुकी हुई थी और उच्च स्तर से अनुमोदन का इंतज़ार था।
वीडियो वायरल होने के बाद सरकार हरकत में जैसे ही छात्राओं के इस संघर्ष की खबर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, सरकार और प्रशासन हरकत में आ गए। स्कूल शिक्षा विभाग ने तुरंत आनन-फानन में भूगोल और राजनीति विज्ञान के शिक्षकों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी।
लेकिन इस घटना से एक बड़ा सवाल उठता है: क्या सरकारें केवल सोशल मीडिया के दबाव में ही जागेंगी? क्या देश की बेटियों को शिक्षा का अधिकार पाने के लिए इस तरह के प्रदर्शन करने पड़ेंगे? यह घटना “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारों की जमीनी हकीकत को दर्शाती है।
देशभर में शिक्षा की राष्ट्रीय तस्वीर यह सिर्फ अरुणाचल प्रदेश की समस्या नहीं है। देशभर में लाखों सरकारी स्कूल या तो बंद हो गए हैं, या वहाँ पर्याप्त सुविधाएं और शिक्षक नहीं हैं। दूसरी ओर, निजी स्कूलों की फीस इतनी अधिक है कि गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना एक सपना बनकर रह गया है।
यह घटना उन सभी सरकारों के लिए एक सबक है जो शिक्षा और स्वास्थ्य पर बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता। जब तक बेटियों को अच्छे स्कूल और योग्य शिक्षक नहीं मिलेंगे, तब तक “न्यू इंडिया” का सपना अधूरा ही रहेगा।
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