बीजेपी द्वारा बिहार बंद के दौरान एक गर्भवती महिला को अस्पताल जाने से रोकने की घटना पर गहरा विरोध और चर्चा हो रही है। पार्टी “मातृशक्ति” का अपमान बताकर बंद बुला रही है, पर खुद एक मां की मेडिकल इमरजेंसी में संवेदनहीन रवैया दिखाती है — यह उसका असली दोगलापन और राजनीतिक ढोंग उजागर करता है।
भोपाल, मध्य प्रदेश। देश में राजनीति का स्तर लगातार गिर रहा है। माँ और बहन के सम्मान की दुहाई देने वाली पार्टियों के नेता खुद ही अपनी कथनी और करनी में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में बिहार में पीएम मोदी की मां को गाली देने के विरोध में बीजेपी ने बिहार बंद का आह्वान किया। लेकिन इस ‘बंद’ के दौरान जो कुछ हुआ, उसने बीजेपी के ढोंग और दोगलेपन को पूरी तरह उजागर कर दिया।
जब राजनीति इंसानियत पर भारी पड़ गई
सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने इस घटना का सच सामने ला दिया। इस वीडियो में बीजेपी का एक नेता एक गर्भवती महिला को अस्पताल जाने से रोक रहा है, जो अपनी डिलीवरी के लिए जा रही थी। जब महिला और उसके परिजन गिड़गिड़ा रहे थे, तो उस नेता ने बेहूदगी की हद पार करते हुए कहा, “जब पता था बिहार बंद है, तो डिलीवरी आज ही क्यों जा रहे हो?”
यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि बीजेपी की संवेदनहीनता और पाखंड का जीता-जागता सबूत है। बीजेपी जो खुद को माँ और बहन के सम्मान का सबसे बड़ा पैरोकार बताती है, उसी के नेता ने एक गर्भवती महिला को, जो खुद एक माँ बनने वाली थी, सड़क पर रोक दिया। क्या वह महिला किसी की माँ या बहन नहीं थी?
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जहानाबाद में बिहार बंद के दौरान एक महिला शिक्षिका को स्कूल जाते वक्त बंद का विरोध करने पर BJP महिला मोर्चा की कार्यकर्ताओं ने घेरकर शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। जो किसी ‘लिंचिंग’ से कम नहीं (सामूहिक हत्या या जानलेवा पिटाई) नहीं हुई, पर उसके साथ बदसलूकी, धक्का–मुक्की और अभद्रता जरूर की गई। यह घटना बंद के नाम पर महिलाओं के सम्मान की पैरोकारी करने वाली पार्टी के व्यवहार पर सवाल खड़े करती है, खासकर जब आंदोलन के केंद्र में ‘मां’ और महिला अस्मिता का नैरेटिव खड़ा किया गया है।
जहानाबाद की घटना लिंचिंग जैसी घातक नहीं, मगर बेहद शर्मनाक है, जिसमें एक महिला शिक्षक को उसके नागरिक अधिकार और शिक्षा के प्रति कर्तव्य निर्वहन में रोका गया और सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया गया। पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया के चलते बड़ी अनहोनी टल गई, लेकिन यह सवाल बना रहता है कि महिला सुरक्षा और अधिकारों के नाम पर उठाए जाने वाले बंद-आंदोलन खुद महिलाओं के लिए कितने सुरक्षित हैं।
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गाली की राजनीति और एक सेट किया गया नैरेटिव
बीजेपी इस पूरे मामले में एक नैरेटिव सेट कर रही है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी की मां को गाली दी है। जबकि सच्चाई यह है कि गाली देने वाला व्यक्ति कोई और था, और यह भी साबित नहीं हुआ है कि वह कांग्रेस का कोई पदाधिकारी है या नहीं।
- जिम्मेदारी का सवाल: बीजेपी आरोप लगा रही है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन, राहुल और तेजस्वी दोनों उस मंच पर नहीं थे जब यह हुआ। अगर किसी सार्वजनिक कार्यक्रम के अंत में कोई व्यक्ति अचानक आकर कुछ भी बोल दे, तो उसकी जिम्मेदारी कार्यक्रम में मौजूद नेताओं की कैसे हो सकती है?
- दोगलापन: बीजेपी देश भर में कांग्रेस कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन कर रही है और अपने बंद से आम जनता को परेशान कर रही है। लेकिन जब उनके खुद के नेता इंसानियत की हदें पार करते हैं, तो वे चुप हो जाते हैं। यह दिखाता है कि बीजेपी के लिए माँ और बहन का सम्मान सिर्फ एक राजनीतिक हथियार है, जिसका इस्तेमाल वे सिर्फ अपने फायदे के लिए करते हैं।
बीजेपी का पाखंड: बंद का मकसद या बहाना?
यह घटना साबित करती है कि बीजेपी के लिए यह ‘बंद’ पीएम मोदी की माँ के सम्मान के लिए नहीं, बल्कि एक राजनीतिक ड्रामा था। अगर सम्मान इतना ही जरूरी था, तो एक गर्भवती महिला को अस्पताल जाने से क्यों रोका गया? उसके जीवन को खतरे में क्यों डाला गया?
यह बीजेपी का दोगलापन और ढोंग है कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों पर तो नैतिकता का पाठ पढ़ाती है, लेकिन जब बात उनके खुद के नेताओं की आती है तो सारे नियम ताक पर रख दिए जाते हैं। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी राजनीति इतनी गिर गई है कि वह इंसानियत को भी भूल जाए?

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