MP Jankranti News एक्सक्लूसिव: छिंदवाड़ा कफ सिरप त्रासदी — तारीखवार घटनाक्रम (टाइमलाइन इन्फोग्राफिक रिपोर्ट) रिपोर्ट: विशेष खोजी टीम | एमपी जनक्रांति न्यूज़ स्थान: छिंदवाड़ा / भोपाल / नागपुर | अक्टूबर 2025
एक नज़र में: 34 दिन की चुप्पी, 20 मासूमों की मौत
छिंदवाड़ा में जहरीले कोल्ड्रिफ कफ सिरप से बच्चों की मौतें कोई एक दिन की घटना नहीं थी, बल्कि सितंबर की शुरुआत से अक्टूबर तक फैला एक लंबा और दर्दनाक सिलसिला था। इस टाइमलाइन में देखिए, कब क्या हुआ, सरकार ने क्या कहा, और कब जाकर सच्चाई सामने आई।

छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड: 5 सितंबर से 9 अक्टूबर तक का पूरा घटनाक्रम
05 सितंबर 2025 – शुरुआत:
- छिंदवाड़ा के रिधोरा, परासिया, चौरई जैसे इलाकों में बच्चों को सर्दी-खांसी के लिए “कोल्ड्रिफ कफ सिरप” दी जाने लगी।
- कुछ बच्चों में पेशाब बंद होने, उल्टी-दस्त और सुस्ती जैसे लक्षण दिखने शुरू हुए।
10 सितंबर 2025 – पहली मौत और सरकारी चुप्पी:
- कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से पहले बच्चे की मौत हुई।
- शुरुआत में स्थानीय डॉक्टरों ने इसे “वायरल” बताया। प्रशासन ने मौतों को गंभीरता से नहीं लिया, पोस्टमार्टम नहीं हुए।
- सवाल: इतनी गंभीर स्थिति में पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराए गए?
14 सितंबर 2025 – मौतें बढ़ीं, पर इनकार जारी:
- मौतों का आंकड़ा बढ़कर 10 हो गया, पर सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
- कई बच्चों को गंभीर हालत में नागपुर के अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जहाँ किडनी फेलियर जैसे लक्षण दिखे।
09 सितंबर 2025 – स्वास्थ्य मंत्री का पहला बयान (भ्रम की स्थिति):
- राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने वीडियो बयान में कहा: “कोल्ड्रिफ कफ सिरप से किसी की मौत होना निराधार है। रिपोर्ट में कोई विषाक्त तत्व नहीं मिला है।”
- इस बयान ने स्थानीय प्रशासन और जनता को गुमराह किया, सिरप की बिक्री पर रोक नहीं लगी।
- सवाल: क्या यह बयान तथ्यों के बजाय बचाव के लिए था?
10 सितंबर – 03 अक्टूबर 2025 – मौत का तांडव जारी:
- स्वास्थ्य मंत्री के बयान के बाद भी मौतों का सिलसिला नहीं रुका। इस दौरान कम से कम 10 और बच्चों ने दम तोड़ दिया।
- पीड़ित परिवारों ने नागपुर के अस्पतालों में 10-12 लाख रुपये खर्च किए, पर सरकार से कोई मदद नहीं मिली।
- जुनैद यदुवंशी (7 साल), वेदांश पवार (2.5 साल), भाव्या अडसरे (15 माह) जैसे मासूमों की जान गई।
04 अक्टूबर 2025 – सच्चाई का खुलासा (तमिलनाडु लैब रिपोर्ट):
- तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल लैब की रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) की मात्रा मानक सीमा से 486 गुना अधिक थी। यह वही जहरीला केमिकल है जो 2022 में गैंबिया और उज्बेकिस्तान में सैकड़ों बच्चों की मौत का कारण बना था।
- यह रिपोर्ट सरकार के शुरुआती दावों को पूरी तरह खारिज कर देती है।
05 अक्टूबर 2025 – सरकार की ‘जांच जारी’ का नैरेटिव:
- तमिलनाडु रिपोर्ट आने के बाद स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने बयान बदला: “यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।”
- परासिया के डॉ. प्रवीन सोनी को गिरफ्तार किया गया, उन पर बिना जांच सिरप लिखने और निजी प्रैक्टिस करने का आरोप लगा।
- राज्य सरकार ने दो ड्रग इंस्पेक्टर और एक डिप्टी डायरेक्टर को सस्पेंड किया। SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित की गई।
- मीडिया कवरेज का रुख बदला: सोशल मीडिया पर #ColdrifTragedy ट्रेंड होने के बाद बड़े मीडिया हाउस सक्रिय हुए और “सरकार सक्रिय है, कार्रवाई जारी है” का नैरेटिव बनाने लगे।
07 अक्टूबर 2025 – 20 मौतें दर्ज, फैक्ट्री में खुलासे:
- कुल मौतों का आंकड़ा 20 तक पहुंच गया (छिंदवाड़ा-14, बैतूल-2, पंधुर्ना-1, चौरई-2, परासिया-1)।
- डीसीजीआई (DCGI) और तमिलनाडु एफडीए की टीम ने श्रीसन फार्मास्युटिकल फैक्ट्री में छापा मारा। वहां फंगस वाला पानी, गंदगी, बदबू और 364 गंभीर नियम उल्लंघन मिले। कई केमिकल ड्रम पर “केवल औद्योगिक उपयोग के लिए” लिखा था।
- इंदौर की सप्लाई करने वाली कंपनी में भी कच्चा रसायन (प्रोपलीन ग्लाइकॉल) बनाने में गंदगी पाई गई।
- सवाल: इतनी गंभीर अनियमितताएं पहले क्यों नहीं पकड़ी गईं?
08 अक्टूबर 2025 – मुआवजे की घोषणा, पर अधूरे वादे:
- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मृतक बच्चों के परिवारों को ₹4 लाख मुआवजा देने की घोषणा की।
- लेकिन कई परिवारों का कहना है कि उन्हें अब तक मुआवजा नहीं मिला है, और अधिकारियों ने उन्हें सीएम से मिलने भी नहीं दिया।
- राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने विवादास्पद बयान दिया: “सिरप सुरक्षित है, कुछ बच्चे पहले से बीमार थे, माता-पिता जिम्मेदार हैं।” इस बयान से जनता का गुस्सा और भड़का।
09 अक्टूबर 2025 – सुप्रीम कोर्ट निगरानी में जांच की मांग:
- मानवाधिकार संगठनों और जनहित याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूरे मामले की CBI या न्यायिक आयोग से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की।
- कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘हत्या के समान अपराध’ (धारा 304 IPC) के अंतर्गत आता है।
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यह त्रासदी नहीं, प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है
यह टाइमलाइन साफ दिखाती है कि 34 दिनों तक मौतें होती रहीं, पर सरकार और सिस्टम ने पहले इनकार किया, फिर जांच दबाने की कोशिश की, और अंत में जब सच्चाई सामने आई, तब जाकर “कार्रवाई” का दिखावा किया। मासूमों की मौतें सिर्फ दवा की नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, जवाबदेही की कमी और सच्चाई पर पर्दा डालने की कोशिश से हुई हैं।

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