अत्यधिक पैदावार के लिए ऐसे करे धान की खेती, एक्सपर्ट ने दी सलाह से बन जाओगे सेठ जी

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जून से जुलाई का महीना खरीफ की फसल के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस महीने में किसान खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली फसलों की बुवाई शुरू कर देते हैं। जिनमें से मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है। पूरे देश में, उत्तर भारत सहित विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है।

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किसानों ने भी धान की रोपाई की तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में आज हम धान की खेती करने वाले किसानों के लिए एक नई विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। इस विधि से खेती करने पर कम लागत में किसानों को अच्छी पैदावार मिल सकती है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं सनरा विधि की। बता दें कि यह विधि किसानों के लिए सुरक्षित और बहुत फायदेमंद मानी जाती है। तो आइए कृषि विशेषज्ञों से जानें धान की खेती के इस खास तरीके के बारे में। अत्यधिक पैदावार के लिए ऐसे करे धान की खेती, एक्सपर्ट ने दी सलाह से बन जाओगे सेठ जी

सनरा विधि से धान की खेती कैसे करें?

रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा, जिनको कृषि के क्षेत्र में 10 साल का अनुभव है, का कहना है कि खरीफ सीजन में धान की खेती करने वाले किसान सनरा विधि से खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यह तरीका किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। क्योंकि इसमें लागत कम और पैदावार ज्यादा होती है। वो बताते हैं कि यह तकनीक काफी पुरानी है। जो बदलते मौसम के साथ किसानों के लिए बहुत लाभदायक साबित हो रही है। सनरा विधि में धान की दो बार रोपाई करनी होती है। जिसे डबल ट्रांसप्लांटिंग (double transplanting) भी कहते हैं। जलवायु परिवर्तन, ज्यादा बारिश का इस तरीके पर कोई असर नहीं पड़ता है।

सनरा विधि में सबसे पहले किसान धान की नर्सरी तैयार करते हैं। इसके बाद जब नर्सरी तैयार हो जाती है, तो खेत में पौधे लगाए जाते हैं। वो ये भी बताते हैं कि इस विधि से धान की पहली रोपाई के लिए एक जगह पर 8 से 10 पौधे 8×8 सेमी की दूरी पर लगाए जाते हैं। वहीं, दूसरी रोपाई में पौधे के बीच 15×15 सेमी का फासला होना चाहिए। इस तरीके से खेती मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में की जाती है।

सनरा विधि के फायदे

मीडिया से बात करते हुए प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा ने बताया कि इस तकनीक से खेती करने पर बीज की मात्रा भी कम लगती है, सूखा और बाढ़ के प्रभाव में भी फसल प्रभावित नहीं होती है। सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है। साथ ही कीट-पतंगों और बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है। खरपतवार का भी कोई खतरा नहीं रहता है। उन्होंने आगे जानकारी देते हुए बताया कि जुलाई की शुरुआत से अक्टूबर के मध्य तक खेत को नम रखना जरूरी होता है।

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