रिपोर्ट — आयुष गुप्ता (मुंबई) दिल्ली ब्लास्ट की जांच में एक ऐसा चौंकाने वाला मोड़ सामने आया है जिसने पूरे देश को हिला दिया है। जांच एजेंसियों के मुताबिक, इस साजिश के केंद्र में कई डॉक्टर शामिल पाए गए—वे लोग जो जिंदगियां बचाने की शपथ लेते हैं, वही अब विनाश की पटकथा लिखते दिख रहे हैं।
यह खौफनाक सच नंदिता रॉय और शिबोप्रसाद मुखर्जी द्वारा निर्देशित, जिनिया सेन की लिखी फिल्म ‘रक्तबीज-2’ की कहानी से आश्चर्यजनक रूप से मिलता-जुलता है।
फिल्म में डॉक्टर साहिल चौधरी—जो कभी डॉक्टर रवि शुक्ला, कभी मुनीर आलम की पहचान अपनाते हैं—एक ऐसे “हीलर-टर्न्ड-डिस्ट्रॉयर” का चेहरा दिखाते हैं जो सफेद कोट की आड़ में अपना असली चेहरा छिपाकर तबाही की साजिश रचता है।
दिल्ली ब्लास्ट केस की जांच में जिस तरह डॉक्टरों की भूमिका सामने आ रही है, उससे फिल्म और हकीकत के बीच तुलना और भी भयावह हो जाती है। सवाल यह है—
जब समाज का सबसे भरोसेमंद पेशा ही आतंक का औजार बन जाए, तब भरोसा किस पर किया जाए?
जांच टीम का कहना है कि इस पूरे मामले में डॉक्टरों की भूमिका सिर्फ सीमित सहयोग तक नहीं थी—वे साजिश की प्लानिंग, लॉजिस्टिक और फंडिंग में भी शामिल थे।
रक्तबीज-2 की कहानी और मौजूदा घटनाओं की यह समानता एक खतरनाक संकेत देती है—
कई बार सबसे खतरनाक विलेन वही होते हैं, जिन पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, दिल्ली ब्लास्ट केस और रक्तबीज-2 की कहानी का यह मेल देश की सुरक्षा, सिस्टम और भरोसे की परतों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
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