तकनीक जगत में यूरोप ने शुक्रवार को एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। जूलिश सुपरकंप्यूटिंग सेंटर, जर्मनी में यूरोप का सबसे शक्तिशाली और पहला एक्सास्केल सुपरकंप्यूटर, ‘जुपिटर’ (Jupiter) लॉन्च किया गया। इस मौके पर जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने कहा कि यह सुपरकंप्यूटर यूरोप को AI की वैश्विक दौड़ में अमेरिका और चीन की बराबरी पर पहुंचा सकता है। Government order के तहत यह सुपरकंप्यूटर research, विज्ञान, एवं तकनीकी विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
जर्मनी। तकनीक की दुनिया में एक नया इतिहास रचा गया है। यूरोप ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक बड़ा कदम उठाते हुए जर्मनी के जूलिश सुपरकंप्यूटिंग सेंटर में यूरोप के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर ‘Jupiter’ का लॉन्च किया है। इस सुपरकंप्यूटर को यूरोप का पहला एक्सास्केल सिस्टम बताया जा रहा है, जो अमेरिका और चीन जैसे देशों को AI क्षेत्र में सीधी टक्कर देगा। जर्मन चांसलर ओलाफ़ शोल्ज़ ने इस लॉन्चिंग के दौरान कहा कि यह सुपरकंप्यूटर यूरोप को तकनीकी क्षेत्र में एक नई पहचान देगा।

Jupiter सुपरकंप्यूटर न केवल AI research में क्रांति लाएगा, बल्कि जलवायु पूर्वानुमान (climate forecasting), neuroscience, और clean energy जैसे क्षेत्रों में भी अभूतपूर्व योगदान देगा। इसकी computing power इतनी जबरदस्त है कि यह प्रति सेकंड 1 क्विंटिलियन (1 अरब अरब) गणनाएं कर सकता है, जो किसी भी मौजूदा जर्मन सुपरकंप्यूटर से 20 गुना अधिक है।
क्यों है Jupiter सुपरकंप्यूटर महत्वपूर्ण?
वैश्विक स्तर पर AI technology की होड़ तेज हो रही है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024 में अमेरिका ने 40 प्रमुख AI मॉडल विकसित किए, जबकि चीन ने 15 और यूरोप केवल 3 AI मॉडल ही बना पाया। इस पृष्ठभूमि में, Jupiter सुपरकंप्यूटर का लॉन्च यूरोप के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है। यह परियोजना यूरोपीय संघ और जर्मन सरकार के बीच एक साझेदारी है, जिस पर कुल 500 मिलियन यूरो (लगभग 580 मिलियन डॉलर) खर्च किए गए हैं।
क्या कहता है आधिकारिक सूत्र?
जर्मन सरकार के अनुसार, Jupiter सुपरकंप्यूटर को फ्रांस की कंपनी Atos की सहायक इकाई Eviden और जर्मन कंपनी ParTec ने मिलकर बनाया है। इसमें 24,000 Nvidia चिप्स का इस्तेमाल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि यूरोप अभी भी AI hardware के मामले में अमेरिकी तकनीक पर निर्भर है। हालांकि, इस सुपरकंप्यूटर की खास बात यह है कि यह ऊर्जा की बचत करते हुए अत्यधिक शक्तिशाली performance देता है।
चांसलर शोल्ज़ ने कहा, “यूरोप को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए sovereign computing capacity की आवश्यकता है। Jupiter इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”
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AI की रेस में यूरोप का दांव: क्यों है यह लॉन्च इतना महत्वपूर्ण?
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, AI की दौड़ में यूरोप अन्य बड़ी शक्तियों से काफी पीछे था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका ने 40 प्रमुख AI मॉडल विकसित किए, चीन ने 15, जबकि यूरोप केवल 3 पर सिमट गया। ऐसे में, जुपिटर का लॉन्च यूरोप के लिए एक निर्णायक कदम है। जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने कहा, “प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए यूरोप को सॉवरेन कंप्यूटिंग कैपेसिटी (स्वतंत्र कंप्यूटिंग क्षमता) हासिल करना बेहद जरूरी है।” जुपिटर इस दिशा में एक बड़ा कदम है, जो यूरोप को अपनी खुद की AI तकनीक विकसित करने में मदद करेगा, जिससे वह बाहरी निर्भरता कम कर सकेगा।
इस लॉन्च का प्रभाव केवल AI तक सीमित नहीं होगा। जुपिटर का इस्तेमाल:
- जलवायु परिवर्तन: यह 30 से 100 साल तक की सटीक जलवायु भविष्यवाणी (climate forecast) कर सकता है, जबकि मौजूदा सिस्टम केवल 10 साल तक की ही जानकारी देते हैं। इससे पर्यावरण नीति-निर्माण में मदद मिलेगी।
- न्यूरोसाइंस: इसका उपयोग दिमाग की प्रक्रियाओं के सिमुलेशन के लिए होगा, जिससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियों पर रिसर्च तेज होगी।
- क्लीन एनर्जी: यह पवन ऊर्जा (wind energy) और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) स्रोतों को और बेहतर बनाने में मदद करेगा।

ऊर्जा खपत और सस्टेनेबिलिटी पर फोकस
एक सुपरकंप्यूटर की सबसे बड़ी चुनौती उसकी ऊर्जा खपत होती है। जुपिटर को औसतन 11 मेगावाट बिजली की जरूरत होगी, जो हजारों घरों या एक छोटे औद्योगिक संयंत्र की खपत के बराबर है। हालाँकि, इसके ऑपरेटरों का दावा है कि यह दुनिया के सबसे ऊर्जा-कुशल (energy efficient) सुपरकंप्यूटर्स में से एक है। इसमें अत्याधुनिक हार्डवेयर और वॉटर-कूलिंग सिस्टम लगाए गए हैं। एक दिलचस्प government update यह भी है कि जुपिटर से निकलने वाली वेस्ट हीट (waste heat) को पास के भवनों को गर्म करने में भी इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे ऊर्जा का सदुपयोग होगा। यह सस्टेनेबिलिटी पर यूरोप के फोकस को दर्शाता है।
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भारत पर संभावित प्रभाव और भविष्य की राह
AI की वैश्विक दौड़ में भारत भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की कोशिश कर रहा है। जुपिटर के लॉन्च से भारत पर सीधा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह एक संकेत है कि विकसित देश इस तकनीक में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। भारत को भी अपनी AI क्षमता और सुपरकंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए इसी तरह के बड़े प्रोजेक्ट्स की ओर देखना होगा। भारत में भी परम सिद्धि (Param Siddhi) और पृथ्वी (Prithvi) जैसे सुपरकंप्यूटर हैं, लेकिन एक्सास्केल कंप्यूटिंग की दिशा में अभी लंबा सफर तय करना है।
जुपिटर का लॉन्च भारत के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है कि कैसे सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर एक शक्तिशाली तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर सकते हैं। यह भारत को अपने अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है ताकि हम भी भविष्य में AI-powered solutions और वैज्ञानिक खोजों में अग्रणी बन सकें।
FAQs: जुपिटर सुपरकंप्यूटर से जुड़े आपके सवाल
Q1: जुपिटर सुपरकंप्यूटर क्या है? A: Jupiter supercomputer यूरोप का सबसे शक्तिशाली और पहला एक्सास्केल सुपरकंप्यूटर है, जो AI और वैज्ञानिक रिसर्च के लिए इस्तेमाल होगा।
Q2: इसे कहाँ लॉन्च किया गया है? A: यह जर्मनी के जूलिश सुपरकंप्यूटिंग सेंटर में लॉन्च किया गया है।
Q3: यह कितना शक्तिशाली है? A: यह हर सेकंड एक क्विंटिलियन (10^18) कैलकुलेशन करने में सक्षम है, जो मौजूदा सुपरकंप्यूटरों से कई गुना अधिक है।
Q4: जुपिटर का इस्तेमाल किन क्षेत्रों में होगा? A: Jupiter का इस्तेमाल AI model training, climate forecast, न्यूरोसाइंस और क्लीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में होगा।
Q5: इसे बनाने में कितना खर्च आया है? A: इसके निर्माण और संचालन पर लगभग 500 मिलियन यूरो का खर्च आएगा, जिसे यूरोपीय संघ और जर्मनी मिलकर वहन करेंगे।
Q6: क्या यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर है? A: यह यूरोप का सबसे शक्तिशाली है, लेकिन वैश्विक रैंकिंग में यह अमेरिका और चीन के कुछ सुपरकंप्यूटरों से प्रतिस्पर्धा करेगा।
Q7: भारत में क्या कोई ऐसा सुपरकंप्यूटर है? A: भारत में Param Siddhi और Prithvi जैसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर हैं, लेकिन एक्सास्केल कंप्यूटिंग की क्षमता अभी हासिल नहीं हुई है।
जर्मनी द्वारा जुपिटर का लॉन्च AI की वैश्विक दौड़ में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह दिखाता है कि सॉवरेन कंप्यूटिंग कैपेसिटी भविष्य में आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण निर्धारक होगी। यह केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह यूरोप की वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता और नवाचार की दिशा में एक स्पष्ट संदेश है। आने वाले समय में, यह सुपरकंप्यूटर न केवल AI के क्षेत्र में बल्कि जलवायु परिवर्तन और चिकित्सा विज्ञान जैसे मानवता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान खोजने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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