इंदौर और उदयपुर: भारत के पहले ‘वेटलैंड सिटी’

By
On:
Follow Us

वेटलैंड सिटी’ का दर्जा उन शहरों को दिया जाता है जो अपने जल संसाधनों, झीलों और वेटलैंड्स के संरक्षण और समग्र प्रबंधन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। यह मान्यता शहरी और ग्रामीण विकास के बीच पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारत के पहले ‘वेटलैंड सिटी’: इंदौर और उदयपुर की उपलब्धि

हाल ही में, भारत के दो शहरों, इंदौर और उदयपुर को ‘वेटलैंड सिटी’ के रूप में मान्यता दी गई है। यह उपलब्धि हासिल करने वाले ये भारत के पहले शहर बन गए हैं। केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक्स पर इसकी जानकारी दी। दुनिया भर में कुल 31 शहरों को ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा प्राप्त है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड सिटी प्रमाणन (डब्ल्यूसीए) हासिल करने के लिए पिछले साल भारत के तीन शहरों – इंदौर (मध्य प्रदेश), भोपाल (मध्य प्रदेश), और उदयपुर (राजस्थान) के नामांकन भेजे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि के लिए इन दोनों शहरों को बधाई देते हुए एक्स पर लिखा, “यह सम्मान सतत विकास और प्रकृति तथा शहरी विकास के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने के प्रति हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

वेटलैंड सिटी मान्यता क्या है?

यह एक तरह का प्रमाण पत्र है जिसे रामसर कन्वेंशन के तहत कॉप-12 सम्मेलन के दौरान उन शहरों के लिए बनाया गया था, जो शहरों में मौजूद वेटलैंड की सुरक्षा, संरक्षण और उसके सतत प्रबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसका उद्देश्य शहरी विकास और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन बनाए रखना है।

वेटलैंड या आर्द्र भूमि का महत्व

वेटलैंड या आर्द्र भूमि से आशय नमी वाले उन इलाकों से है, जहां साल भर या कुछ महीने पानी भरा रहता है। मैंग्रोव, दलदल, बाढ़ के मैदान, तालाब, झील, नदियां, पानी से भरे जंगल, धान के खेत ये सभी वेटलैंड के ही उदाहरण हैं। वेटलैंड दुनिया के हर कोने में पाए जाते हैं। हर साल 2 फरवरी को ‘विश्व वेटलैंड’ दिवस मनाया जाता है।

वेटलैंड क्यों जरूरी हैं?

जैव विविधता और पानी को बचाने के लिए वेटलैंड बेहद जरूरी हैं। धरती की सतह का 70 फीसदी हिस्सा पानी से ढका होने के बाद भी पीने के लिए मात्र 2.7 फीसदी मीठा पानी ही मौजूद है और इसका अधिकांश हिस्सा ग्लेशियरों में कैद है। इंसानों तक पहुंचने वाला अधिकांश मीठा पानी वेटलैंड की बदौलत ही हासिल होता है। वेटलैंड के बिना दुनिया भर में पीने के पानी की समस्या पैदा हो सकती है।

वेटलैंड वातावरण में मौजूद कार्बन सोखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पेड़ों की तुलना में ज्यादा कार्बन जमा कर सकते हैं। इसके अलावा ये तूफानी लहरों को रोक कर हर साल बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचादे हैं। दुनिया भर में मैंग्रोव 1.5 करोड़ से ज्यादा लोगों की रक्षा करते हैं और हर साल बाढ़ से होने वाले करीब 65 अरब डॉलर के नुकसान को बचाते हैं। दलदली जमीन प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती है। बारिश के दौरान ये अपने अंदर पानी जमा करती है और सूखे के समय उसे धीरे-धीरे बाहर निकालती है, जिससे सूखे जैसे संकट के समय मदद मिलती है।

वेटलैंड लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराते हैं। मछली पकड़ने से लेकर मखाने और चावल की खेती तक, वेटलैंड कई अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ हैं। पर्यटन उद्योग भी वेटलैंड से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है।

रामसर कन्वेंशन क्या है?

दुनिया भर के वेटलैंड और उनके संरक्षण के लिए 2 फरवरी 1971 को ईरान के शहर रामसर में एक संधि के तहत रामसर साइट के निर्धारण और उनके बचाव के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। रामसर साइट का दर्जा प्राप्त वेटलैंड अंतरराष्ट्रीय महत्व रखते हैं और उनके संरक्षण और उनके संसाधनों के इस्तेमाल के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त होता है। दुनिया भर में रामसर साइट की संख्या 2,500 से ज्यादा है, जो करीब 25 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के क्षेत्र में फैले हैं।

भारत में फरवरी 1982 में यह समझौता लागू किया गया था। भारत में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त मौजूदा रामसर साइट की संख्या 89 पहुंच चुकी है, जो एशिया में सबसे ज्यादा और यूके और मेक्सिको के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर है। तमिलनाडु (20) भारत में सबसे ज्यादा रामसर स्थल वाला राज्य है। रामसर साइट और वेटलैंड सिटी, दोनों में अंतर है। रामसर साइट देश के किसी भी हिस्से में मौजूद हो सकती हैं जबकि वेटलैंड सिटी का दर्जा सिर्फ शहरी इलाकों में मौजूद साइट को ही हासिल हो सकता है।

For Feedback - newsmpjankranti@gmail.com

Leave a Comment