देश में बड़े पैमाने पर चने की खेती की जाती है और काबुली चना एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है। उन्नत किस्मों का चयन करने से किसान अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं। आइए कुछ प्रमुख उन्नत किस्मों के बारे में जानते हैं:
काबुली चने की उन्नत किस्मे
पूसा 209 किस्म
यह किस्म तकरीबन 140-165 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है और अधिक पैदावार देती है।
फुले 9425-5 किस्म
फुले 9425-5 चने की एक बेहद लोकप्रिय और उच्च उत्पादन देने वाली किस्म है जिसे महाराष्ट्र के फुले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी ने विकसित किया है। यह किस्म 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता रखती है. और यह किस्म 90 से 105 दिनों में ही पककर तैयार हो जाती है.
जवाहर चना-24 किस्म
जवाहर चना-24 चने की एक और उम्दा किस्म है इस किस्म का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके पौधे अन्य किस्मों की तुलना में काफी लंबे होते हैं। यह किस्म 100 से 115 दिनों में ही पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म का तना बहुत मजबूत होता है जिसकी वजह से तेज आंधी में भी फसल खराब होने का खतरा कम रहता है।
जे.जी-12 किस्म
यह किस्म विशेष रूप से उकठा रोग के प्रतिरोधी होने के लिए तैयार की गई है। उकठा रोग चने की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है, इसलिए इस किस्म का विकास किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस नई किस्म से किसान 22-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक चना प्राप्त कर सकते हैं। यह पारंपरिक किस्मों की तुलना में काफी अधिक उत्पादन है।
यह भी पढ़े- डीजल की कीमते हो सकती है कम, अब बढ़ जायेंगा आपकी गाड़ियों का भी माइलेज, जानिए कैसे
चने की खेती के बारे में
- मिट्टी: काबुली चना बलुई दोमट से लेकर दोमट तथा मटियार मिट्टी में अच्छी तरह से उगता है। मिट्टी का पीएच मान 7 के आसपास होना चाहिए।
- जलवायु: यह फसल ठंडे मौसम में अच्छी तरह से उगती है। इसकी बुवाई सर्दियों के मौसम में की जाती है।
- समय: काबुली चने की बुवाई अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है।
- तरीका: बुवाई की विधि स्थान और किसान की सुविधा के अनुसार भिन्न हो सकती है। आमतौर पर, पंक्ति विधि से बुवाई की जाती है।
- खेत की मिट्टी का रासायनिक परीक्षण करवाकर उर्वरक की मात्रा का निर्धारण किया जाना चाहिए।
- काबुली चना सूखा सहन करने वाली फसल है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर सिंचाई जरूरी है।