आदिवासियों के अधिकारों के लिए कसरावद में सौंपा गया ज्ञापन: संवैधानिक सुरक्षा और प्रभावी कानून लागू करने की मांग

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आदिवासी समन्वयक परिषद भारत (ACC India) ने 13 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस के मौके पर पूरे देश में ज्ञापन सौंपे। इसी क्रम में, कसरावद में भी जयस (JAYS) और आदिवासी छात्र संगठन के नेतृत्व में तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा गया। इस ज्ञापन में आदिवासियों के लिए संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण, फर्जी प्रमाण पत्रों की जांच और बैलेट पेपर से चुनाव कराने सहित कई महत्वपूर्ण माँगें शामिल हैं।

कसरावद में आदिवासी समाज की हुंकार: सरकार से अधिकार और न्याय की मांग

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में आदिवासी समाज अपनी मांगों को लेकर मुखर हो गया है। शुक्रवार, 12 सितंबर 2025 को आदिवासी समन्वयक परिषद भारत (ACC India) के आह्वान पर कसरावद तहसील में एक महत्वपूर्ण ज्ञापन सौंपा गया। यह ज्ञापन 13 सितंबर को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस के मद्देनजर महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार श्री कैलाश डामर को दिया गया। इस ज्ञापन का उद्देश्य भारत के आदिवासियों की ज्वलंत समस्याओं और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान आकर्षित करना है। इस ज्ञापन में विभिन्न संगठनों जैसे जयस कसरावद, आदिवासी छात्र संगठन कसरावद और सर्व आदिवासी समाज कसरावद ने नेतृत्व किया।

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आदिवासी समाज लंबे समय से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। उनकी प्रमुख समस्याएं जमीन के अधिकार, विस्थापन, फर्जी जाति प्रमाण पत्र और संवैधानिक कानूनों का प्रभावी ढंग से लागू न होना है। 13 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने “आदिवासी लोगों के अधिकारों पर घोषणापत्र” (Declaration on the Rights of Indigenous Peoples) को अपनाया था। भारत में आदिवासी अधिकार आंदोलनों ने समय-समय पर अपनी मांगों को उठाया है। इसी कड़ी में, आज पूरे भारत देश के सभी राज्यों, जिलों और ब्लॉकों में एक साथ यह ज्ञापन सौंपा गया है।

संगठन द्वारा तहसीलदार को सौंपे गए ज्ञापन में कई महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे, जो आदिवासी समाज की सामूहिक आवाज को दर्शाते हैं। ज्ञापन में निम्नलिखित प्रमुख मांगें उठाई गईं हैं:

  • संवैधानिक संरक्षण: भारत भूमि के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण और अनुपालन को सुनिश्चित किया जाए।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले: सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों, जैसे कैलाश बनाम महाराष्ट्र सरकार (5 जनवरी 2011) को लागू किया जाए। इस फैसले में आदिवासियों को ‘देश का मूल निवासी’ बताया गया था।
  • धर्म कोड की मांग: जनगणना में आदिवासियों के लिए एक अलग ‘सेपरेट धर्म कोड कॉलम’ की व्यवस्था की जाए।
  • भाषाओं को मान्यता: आदिवासी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
  • विस्थापन और भील प्रदेश: आदिवासियों के विस्थापन पर रोक लगे और भील प्रदेश के गठन की मांग पर विचार किया जाए।
  • कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन: अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 1989, पेसा कानून 1996, और वन अधिकार कानून 2006 को प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
  • जाति प्रमाण पत्र: फर्जी अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्रों की जांच कर उन्हें निरस्त किया जाए।
  • अन्य महत्वपूर्ण मांगें:
    • आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेजी शराब पर प्रतिबंध लगाया जाए।
    • विश्व आदिवासी दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए। (यहां यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाया जाता है।)
    • ट्राइबल सब-प्लान बजट का सही उपयोग सुनिश्चित हो।
    • दिल्ली और अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्यों में आदिवासी भवन का निर्माण हो।
    • वन नेशन वन एजुकेशन सिस्टम पॉलिसी लागू की जाए।
    • आदिवासियों पर लगाए गए फर्जी नक्सलवाद के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच हो।
    • राष्ट्रीय चुनाव आयोग से ईवीएम मशीनों को बंद कर बैलेट पेपर पर चुनाव कराने की मांग की गई, ताकि लोकतंत्र को बचाया जा सके।

संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार इन मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं करती है, तो पूरे भारत में आदिवासी समाज आंदोलन के लिए बाध्य होगा।

ज्ञापन सौंपने के दौरान जयस अध्यक्ष कपिल खराड़े, आदिवासी छात्र संगठन अध्यक्ष अमित मेवाड़े, सर्व आदिवासी समाज अध्यक्ष रणजीत सिंह मंडलोई, एसीएस जिलाध्यक्ष मोहन भूरिया सहित कई प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और सदस्य मौजूद थे। इसमें सोमल चौहान, राजकुमार वास्कले, निहाल सिंह चौहान, अनिल धारवे, राजकुमार मोहरे, कृष्ण निगवाल, गब्बर सिंह, रणवीर माथुर, विशाल गुंडिया, मोहित चौहान, जितेन मोरे, प्रवीण मोहने, बंटी सिसोदिया, देवेंद्र मंडलोई और राहुल भूरिया शामिल थे। इन सभी नेताओं ने एकजुटता दिखाते हुए कहा कि यह आदिवासियों के लिए एक सामूहिक लड़ाई है। इस तरह की पहल से समाज में जागरूकता बढ़ रही है और वे अपने अधिकारों के प्रति अधिक सशक्त हो रहे हैं।

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