Makke Ki Kheti: जून महीने की शुरुआत के साथ ही किसान अपने खेतों में मक्का की बुवाई की तैयारी शुरू कर देते हैं। हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में मक्के की खेती की जाती है, लेकिन उन्नत तकनीक और कम जानकारी के अभाव में कई बार किसानों को उपज में नुकसान उठाना पड़ता है। इस संबंध में हजारीबाग के गोरियाकर्मा स्थित आईसीआर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरके सिंह का कहना है कि अगर वैज्ञानिक तरीके और उन्नत किस्मों की मदद से इसकी खेती की जाए तो किसान मालामाल हो सकते हैं।
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उन्होंने आगे बताया कि हजारीबाग में साल में तीन बार मक्के की फसल ली जा सकती है। पहली फसल नवंबर से फरवरी तक, दूसरी फसल फरवरी से अप्रैल तक और तीसरी फसल जून से सितंबर तक ली जा सकती है। मक्के की फसल 75 से 95 दिनों की होती है।
पहली बारिश के बाद किसानों को अपना खेत तैयार करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनानी चाहिए, ताकि मक्के की जड़ें आसानी से जमीन के अंदर जा सकें। जुताई या बुवाई के समय खेत में किसान गोबर की खाद डाल सकते हैं। मक्के की फसल की बुवाई जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक की जा सकती है।
हालांकि मक्के की खेती के लिए बलुई मिट्टी को अच्छा माना जाता है, लेकिन किसान इसे दूसरी मिट्टी में भी उगा सकते हैं। एचएम1, विवेक, पूसा अर्ली हाइब्रिड, प्रताप, जवाहर, सीडटेक मक्का यहां की मिट्टी के लिए काफी बेहतर हैं। इन बीजों से प्रति एकड़ 50 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है। 1 एकड़ बुवाई में 8 किलो बीज पर्याप्त होता है।
उन्होंने आगे कहा कि किसान अपने खेतों में मक्के की बुवाई कतारों में करें और बुवाई के समय डीएपी फास्फोरस पोटाश का छिड़काव भी करें। जब मक्के की फसल लगभग 15 दिन की हो जाए और बारिश न हो तो सिंचाई की व्यवस्था करें।