मंत्री के काफिले से कुचले गए बुजुर्ग: कट गए दोनों पैर, इलाज के लिए बेटे ने लिया कर्ज — न मंत्री पहुँचे, न प्रशासन जागा

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छतरपुर। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले से एक ऐसा हादसा सामने आया है जिसने न केवल प्रशासन बल्कि शासन की संवेदनशीलता पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। चंदला विधानसभा के विधायक और राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार के काफिले की गाड़ी से 70 वर्षीय साहब सिंह नामक बुजुर्ग को टक्कर लग गई। हादसा इतना भयावह था कि उनका एक पैर मौके पर ही बुरी तरह कुचल गया और बाद में डॉक्टरों को उसे काटना पड़ा। दूसरा पैर भी गंभीर रूप से घायल है और ग्वालियर के ओम साईं राम अस्पताल में इलाज चल रहा है।

परिवार की व्यथा: “न मंत्री आए, न किसी ने हालचाल पूछा”

पीड़ित बुजुर्ग के बेटे सुरेंद्र सिंह ने बताया कि हादसे के बाद मंत्री के काफिले से केवल एंबुलेंस भेजी गई, लेकिन उसके बाद किसी ने कोई मदद नहीं की। न मंत्री दिलीप अहिरवार स्वयं आए, न उनके किसी प्रतिनिधि ने हालचाल पूछा।
सुरेंद्र ने भावुक होकर कहा,

“अब तक करीब ₹1 लाख 70 हज़ार इलाज में खर्च हो चुके हैं। आयुष्मान कार्ड प्राइवेट अस्पताल में काम नहीं कर रहा। पैसे खत्म हो गए तो गांव से कर्ज लेकर इलाज जारी रखा है। अगर मंत्री जी पिता जी का इलाज करवा दें तो हम रिपोर्ट नहीं करेंगे। हमें बस इंसानियत की उम्मीद है।”

आयुष्मान कार्ड की सच्चाई: ज़मीन पर फेल योजना

केंद्र और राज्य सरकारें आयुष्मान भारत योजना की सफलता के दावे करती हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। साहब सिंह के बेटे ने बताया कि “आयुष्मान कार्ड दिखाने के बावजूद अस्पताल ने इलाज से मना कर दिया क्योंकि वो निजी संस्था है।”
यह स्थिति बताती है कि जिन योजनाओं को लेकर भाजपा सरकार “हर गरीब का इलाज मुफ्त” कहती है, वे जरूरत के वक्त कितनी बेअसर साबित हो रही हैं।

प्रशासन और सत्ता — दोनों की चुप्पी

स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि मामला चूंकि मंत्री के काफिले से जुड़ा है, इसलिए प्रशासन मौन है। न कोई एफआईआर दर्ज हुई, न किसी अधिकारी ने परिवार से मिलने की कोशिश की। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया दर्शाता है कि सत्ता के दबाव में न्याय की उम्मीद करना आम जनता के लिए अब एक विलासिता बन चुका है।

“इंसानियत कहां गई?” — सवालों में भाजपा की संवेदनशीलता

बीजेपी नेता मंचों से “धर्म की रक्षा” और “एकता” की बातें करते हैं, लेकिन यहां एक इंसान सड़क पर तड़पता रहा, उसका परिवार कर्ज में डूब गया, और पूरी सरकार मौन रही। इंसानियत का यही सबसे कड़वा चेहरा है —

“सड़क पर हादसा हो जाए तो आम लोग मदद को दौड़ते हैं,
लेकिन जब हादसा ‘मंत्री के काफिले’ से होता है, तो चारों तरफ सन्नाटा छा जाता है।”

सामाजिक संगठनों की पहल स्थानीय सामाजिक संगठन अब पीड़ित परिवार की मदद के लिए आगे आने की बात कह रहे हैं। कुछ एनजीओ ने परिवार को आर्थिक सहायता देने और सरकारी मुआवज़े की मांग करने की तैयारी शुरू की है।

डॉक्टरों की रिपोर्ट: एक पैर काटना पड़ा, दूसरा बचाने की कोशिश

डॉक्टरों के अनुसार साहब सिंह के शरीर में गहरी चोट और संक्रमण फैल गया था। एक पैर काटना पड़ा और दूसरा पैर अभी गंभीर स्थिति में है। परिवार की आर्थिक हालत खराब होने से इलाज में और कठिनाई आ रही है।

अब सवाल ये है —

क्या मंत्री दिलीप अहिरवार आगे बढ़कर इंसानियत दिखाएंगे?
क्या भाजपा सरकार अपने आयुष्मान कार्ड की हकीकत जनता के सामने मानेगी?
और क्या प्रशासन किसी मंत्री से जुड़े हादसे पर भी वही कार्रवाई करेगा जो किसी आम नागरिक पर करता है?

क्योंकि जब सत्ता, प्रशासन और संवेदनशीलता — तीनों ही एक साथ मौन हो जाएँ,
तो “न्याय” सिर्फ़ शब्द बनकर रह जाता है।

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