AMU Sir Syed Day पर मीडिया की शर्मनाक कवरेज — बिरयानी दिखाकर नफरत फैलाने का खेल

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जब मीडिया ने सर सैयद डे को “बिरयानी फेस्ट” बना दिया — पत्रकारिता का पतन और नफ़रत फैलाने की रणनीति

यह लेख भारतीय मीडिया की उस प्रवृत्ति पर केंद्रित है जहाँ शिक्षा, समाज-सुधार और बौद्धिक उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ कर भावनात्मक, धार्मिक और ‘क्लिकबेट’ ख़बरों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

एक ऐतिहासिक दिन, जिसे मीडिया ने “बिरयानी दिवस” बना दिया

17 अक्टूबर — अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का सर सैयद डे। वह दिन जब भारत के महान समाज सुधारक, शिक्षाविद और विचारक सर सैयद अहमद ख़ान को श्रद्धांजलि दी जाती है। वह व्यक्ति जिसने उस दौर में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा, विज्ञान और सामाजिक सुधार के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी।

लेकिन आज के तथाकथित “राष्ट्रीय मीडिया” ने इस दिन को “890 बकरे”, “90 क्विंटल शाही टुकड़ा” और “बड़ा खाना” तक सीमित कर दिया। क्योंकि यह बिकता है। क्योंकि “बिरयानी” शब्द सुनकर जनता क्लिक करती है, “शिक्षा” शब्द सुनकर नहीं।

कैसे फैलाई गई खबर — मीडिया के उदाहरण देखें

1. ABP News Facebook Post

ABP News ने अपनी पोस्ट में लिखा — “मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के सर सैयद डे पर 37 हजार छात्र-छात्राओं और आठ हजार स्टाफ के लिए दो क्विंटल गोश्त की बिरयानी, चार क्विंटल कोरमा और 4.5 क्विंटल शाही टुकड़े की दावत की गई।” (देखें पोस्ट)
परिणाम? नीचे सैकड़ों नफरत भरे कमेंट:

“जीव को मारकर कैसी दावत?” “इनका बिना मांस के कोई शुभ काम नहीं होता।” “यह यूनिवर्सिटी नहीं, क़त्लख़ाना है।” “शव को खाना बोलते हैं।”

यह नफ़रत ABP ने नहीं लिखी, लेकिन उसी ने बोई है। शब्द बदले गए, पर संदेश वही रहा — “मुस्लिम मतलब मांस और हिंसा।”

2. Amar Ujala

हेडलाइन — “890 बकरों से बनी बिरयानी, 45,000 लोगों का भोज” (ट्विटर लिंक)
पूरा लेख बिरयानी और मांस की मात्रा बताने में बीता, लेकिन एक पंक्ति भी नहीं कि उसी दिन AMU को NIRF रैंकिंग में शीर्ष 10 में जगह मिली थी। (Amar Ujala रिपोर्ट)

3. Bharat Express और Dainik Dehat

दोनों पोर्टल्स ने भी यही आंकड़े दोहराए — “890 बकरे, 90 क्विंटल शाही टुकड़ा, 111 साल पुरानी परंपरा”। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि उसी दिन AMU में ISRO के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अब्दुल शाहिद जैसे वक्ताओं ने शिक्षा, नैतिकता और भाईचारे पर ऐतिहासिक भाषण दिए। (Bharat Express रिपोर्ट) (Dainik Dehat रिपोर्ट)

असलियत — जो जनता से छिपाई गई

उसी दिन AMU ने इतिहास रचा — विश्वविद्यालय NIRF रैंकिंग में शीर्ष-10 में शामिल हुआ। ISRO प्रमुख डॉ. सोमनाथ ने कहा, “सर सैयद ने विज्ञान, नैतिकता और विश्वास को जोड़ा — यही आधुनिक भारत की पहचान है।” जस्टिस अब्दुल शाहिद ने कहा, “अज्ञानता गरीबी की जननी है, और शिक्षा उसका एकमात्र समाधान।” कुलपति प्रो. नइमा खातून ने कहा, “AMU आज भी सर सैयद के विचारों पर खड़ा है — जहाँ मन कठोर हो, हृदय दयालु और आत्मा शांत हो।”

परंतु यह सब मुख्यधारा मीडिया में नहीं दिखा। क्योंकि वहाँ विचार नहीं बिकते, विवाद और बिरयानी बिकती है।

जनता को कैसे गुमराह किया जा रहा है

मीडिया अब खबर नहीं, भावना बेचता है। वह सच्चाई नहीं दिखाता, बस संकेत देता है। जब “AMU” लिखा जाता है, तो उसके साथ जोड़ दिए जाते हैं शब्द — “मुस्लिम”, “बिरयानी”, “कटलख़ाना” — ताकि दर्शकों के मन में एक नकारात्मक छवि बन जाए।

इसे कहते हैं Silent Poison Journalism — जहाँ बिना झूठ बोले भी, सच्चाई को आधा दिखाकर जनता को गुमराह किया जाता है।

ये पत्रकारिता नहीं, सांप्रदायिक मार्केटिंग है

जब देश का एक प्रगतिशील विश्वविद्यालय, जो विज्ञान, तकनीक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में योगदान दे रहा है, उसे केवल “बिरयानी सेंटर” के रूप में दिखाया जाए — तो यह पत्रकारिता नहीं, धार्मिक ध्रुवीकरण की व्यापारिक रणनीति है।

आम नागरिक को क्या समझना चाहिए

  • हर खबर के पीछे छिपे इरादे को पहचानिए — क्या यह सूचना है या भावना उकसाने का प्रयास?
  • तथ्यों की जांच कीजिए — क्या वही मीडिया आपको बताता है जब ISRO या Oxford जैसी संस्थाएँ किसी मुस्लिम यूनिवर्सिटी की सराहना करती हैं?
  • सोशल मीडिया पर नफरत भरे कमेंट शेयर न करें — वे किसी और के एजेंडे को मज़बूत करते हैं।
  • शिक्षा और एकता की खबरों को प्राथमिकता दें — यही सर सैयद की असली भावना है।

पत्रकारिता की आत्मा के लिए सवाल

क्या भारतीय मीडिया इतना गरीब हो गया है कि उसे शिक्षा, विज्ञान और एकता के बजाय बिरयानी और बकरे से ही TRP चाहिए? क्या हमारे न्यूज़रूम अब समाचार नहीं, नफ़रत का नैरेटिव तैयार कर रहे हैं?

“यह पत्रकारिता नहीं, ज़हर की वह खुराक है जो रोज़ थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दी जा रही है — ताकि जनता सोचे नहीं, बस किसी से नफ़रत करे।”

सर सैयद डे हमें याद दिलाता है — कि शिक्षा और तर्क ही राष्ट्र की रीढ़ हैं। मीडिया अगर उस रीढ़ को कमजोर करेगा, तो आने वाली पीढ़ियाँ सिर्फ़ “बिरयानी की हेडलाइन” पढ़ेंगी, विज्ञान और भाईचारे की किताबें नहीं।

रविश कुमार की चेतावनी — “टीवी न्यूज़ से दूरी ही देश को बचा सकती है”

पत्रकार रविश कुमार बार-बार कहते हैं कि आज का मीडिया जनता का प्रहरी नहीं रहा, बल्कि सत्ता और कंपनियों का “प्रचार विभाग” बन गया है। उन्होंने अपने भाषणों में कहा था —

“अब टीवी न्यूज़ चैनल आपको जानकारी नहीं देते, वे आपकी सोच चुरा लेते हैं।”
“अगर देश को बचाना है तो टीवी न्यूज़ से दूरी बनाइए, क्योंकि यही वह ज़हर है जो हर शाम आपके घर में घुसकर आपके विवेक को मारता है।”

यह कथन आज की मीडिया कवरेज पर बिल्कुल सटीक बैठता है — जहाँ शिक्षा, विज्ञान और भाईचारे का संदेश दिखाने के बजाय टीवी चैनलों ने सिर्फ़ “बिरयानी और बकरे” दिखाए। यह वही पत्रकारिता है जिससे रविश कुमार ने चेताया था — “मीडिया अब सत्ता की भाषा बोलता है, जनता की नहीं।”

📚 References / स्रोत

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Arshad Khan

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