रिपोर्ट: राकेश अचल
मध्य प्रदेश। देश में जहाँ केरल 100% साक्षरता की ओर बढ़ रहा है, वहीं मध्य प्रदेश की तस्वीर इसके बिल्कुल उलट है। यहाँ स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों की लगातार गिरती संख्या न केवल चिंताजनक है, बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के भविष्य पर बड़ा सवाल भी खड़ा कर रही है। दुर्भाग्य यह है कि यह गंभीर संकट सुर्खियों में स्थान ही नहीं पाता, क्योंकि प्रदेश का राजनीतिक विमर्श शिक्षा से दूर, अन्य विषयों में उलझा हुआ है।
एक दशक में 54 लाख छात्र कम — शिक्षा का भविष्य अंधकार में
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 2010–11 में प्रदेश के स्कूलों में 133.66 लाख छात्र दर्ज थे।
अब यह संख्या घटकर 79.39 लाख रह गई है।
यानी 54.27 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों से गायब हो गए।
यह आंकड़ा किसी भी राज्य के लिए चिंता का संकेत है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह गिरावट सिर्फ स्कूलों की गुणवत्ता के कारण नहीं, बल्कि भरोसे की कमी और अव्यवस्था की देन है।
32,844 सरकारी स्कूल बंद — 61,175 शिक्षक भी कम हुए
एक दशक पहले मध्य प्रदेश में 1,14,972 स्कूल थे।
आज सिर्फ 82,128 स्कूल बचे हैं।
यानि 32,844 स्कूल बंद या विलय कर दिए गए।
इसी अवधि में
- 61,175 शिक्षक कम हो गए
- 2014–15 में जहां 2.91 लाख शिक्षक थे, अब सिर्फ 2.33 लाख बचे हैं।
प्रदेश में बड़ी संख्या में शिक्षक सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उनकी जगह नियुक्तियाँ नहीं हुईं — जिससे स्कूलों की स्थिति और बदतर हो गई।
जहाँ स्कूल खुले हैं, वे भी मरनासन्न — हजारों स्कूल बिना शिक्षकों के
प्रदेश के सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद दयनीय है:
- 21,193 स्कूलों में 20 से कम छात्र
- 29,486 स्कूलों में सिर्फ 40 छात्र
- 8,533 स्कूलों में एक ही शिक्षक
- 28,716 स्कूलों में सिर्फ दो शिक्षक, जिन्हें पूरे स्कूल की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है — पढ़ाना भी, और दफ्तर का काम भी
शिक्षा विशेषज्ञ इसे “जीवित–मृत स्कूल” कहते हैं — जहाँ इमारत है, लेकिन शिक्षा नहीं।
छात्रवृत्ति में तीव्र गिरावट — सरकार की प्राथमिकता बदल गई?
10 साल पहले प्रदेश में 82 लाख छात्रों को छात्रवृत्ति मिलती थी।
अब यह संख्या 58 लाख रह गई है।
सरकार की योजनाओं — जैसे मुफ्त गणवेश, साइकिल, किताबें — ने भी स्थिति नहीं सुधारी।
विशेषज्ञों का मानना है कि “योजनाएँ बढ़ी हैं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता घट गई है।”
विधायक प्रताप ग्रेवाल ने उजागर किए आंकड़े
कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल ने विधानसभा में जब यह सवाल उठाया, तभी जाकर शिक्षा विभाग ने स्वीकार किया कि:
- छात्र कम हो रहे हैं
- शिक्षक कम हो रहे हैं
- स्कूल बंद हो रहे हैं
यदि यह सवाल नहीं पूछा जाता, तो यह गिरावट शायद दर्ज भी नहीं होती।
निजी स्कूल फल-फूल रहे — सरकारी स्कूल वीरान
विडंबना यह है कि जहाँ सरकारी स्कूल खाली हो रहे हैं, वहीं निजी स्कूल गाँव–गाँव तक पहुँच चुके हैं।
लोग अपनी आय का बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों में खर्च कर रहे हैं।
कई विशेषज्ञ इसे “शिक्षा के निजीकरण को मौन समर्थन” बताते हैं।
क्या सरकार की प्राथमिकता बदल गई है?
बीते वर्षों में मध्य प्रदेश सरकार की प्राथमिकताएँ
— शिक्षा, शिक्षक भर्ती, स्कूल सुधार —
से हटकर
- पर्यटन,
- धार्मिक स्थलों का विकास,
- और सांस्कृतिक आयोजनों
की ओर अधिक दिखाई देती है।
आलोचकों का कहना है कि प्रदेश की नई शिक्षा नीति सिर्फ “पाठ” पर केंद्रित है, “पाठशाला” पर नहीं।
मध्य प्रदेश की शिक्षा को बचाने का समय अब भी है — पर तेजी से कदम चाहिए
दस साल में 54 लाख बच्चों का गायब होना और 60 हजार शिक्षक कम होना केवल आंकड़ा नहीं — यह आने वाली पीढ़ी का भविष्य है।
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि:
- त्वरित शिक्षक भर्ती
- स्कूलों का पुनरुद्धार
- गुणवत्ता सुधार
- और पारदर्शी निगरानी व्यवस्था
जरूरी है, नहीं तो आने वाले वर्षों में सरकारी स्कूलों का अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है।

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