पोल्ट्री फार्मिंग एक अच्छा बिजनेस है. अगर आप इसमें ज्यादा मुनाफा चाहते हैं, तो देसी मुर्गियों की जगह खास और हाई ब्रीड चिकन पालना फायदेमंद होगा.पशुपालन वैज्ञानिकों का कहना है कि पश्चिम चंपारण और बिहार के सभी जिलों में खास नस्ल के मुर्गे (चिकन) पाले जा सकते हैं. इनमें सोनाली, वनाराज और कड़कनाथ शामिल हैं. हालांकि, इन नस्लों के मुर्गियों का विकास ब्रॉयलर की तुलना में थोड़ा देर से होता है. लेकिन लम्बे समय के लिए मुर्गी पालन का बिजनेस चलाने के लिए किसानों को ब्रॉयलर की जगह सोनाली, कड़कनाथ और वनाराज जैसी नस्लों के मुर्गे पालने चाहिए.
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मुनाफे से ज्यादा नुकसान का डर!
किसान पोल्ट्री फार्मिंग के लिए ब्रॉयलर मुर्गे पालते हैं. इसकी वजह ये है कि ब्रॉयलर मुर्गे दूसरी नस्लों के मुर्गियों की तुलना में तेजी से बढ़ते हैं. ये जल्दी व्यापार के लिए तैयार हो जाते हैं. जल्दी मुनाफा देने लगते हैं, लेकिन जल्दी ही इनमें बीमारी लगने का खतरा भी ज्यादा होता है.
ब्रॉयलर मुर्गों में बीमारी का ज्यादा खतरा रहता है. अगर मुर्गियों में जरा सी भी बीमारी शुरू होती है, तो उसका असर सबसे पहले ब्रॉयलर मुर्गों पर ही देखने को मिलता है. साथ ही, ये मुर्गे सोनाली, कड़कनाथ और वनाराज नस्ल के मुर्गों की तरह पौष्टिक और महंगे नहीं होते हैं. इसलिए ब्रॉयलर फार्मिंग में किसानों को हमेशा घाटे का डर बना रहता है.
फायदे में है देसी नस्ल!
डॉ. जगपाल ने बताया कि व्यावसायिक रूप से देखा जाए तो सोनाली, कड़कनाथ और वनाराज नस्ल के मुर्गियों का विकास ब्रॉयलर की तुलना में थोड़ा देर से होता है. सोनाली नस्ल के मुर्गे लगभग 3 महीने में तैयार हो जाते हैं, जबकि कड़कनाथ और वनाराज नस्ल के मुर्गों को तैयार होने में 4 से 5 महीने का समय लगता है.
लेकिन अच्छी बात ये है कि इनमें कभी कोई बीमारी नहीं होती है. साथ ही, बाजार में इन्हें लागत के हिसाब से काफी अच्छा दाम मिल जाता है. इसलिए इनके पालन में किसानों को कभी भी घाटे का सामना नहीं करना पड़ता है.