भारत में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती हिंसा: नवादा लिंचिंग से रायबरेली हत्या तक, एक चिंताजनक प्रवृत्ति
- नवादा लिंचिंग: बिहार के नवादा में 5 दिसंबर को कपड़े बेचने वाले मुहम्मद अतहर हुसैन पर भीड़ ने धर्म की जांच के बाद अमानवीय यातनाएं दीं, जिसमें कान काटना, उंगलियां तोड़ना और गर्म लोहे से दागना शामिल था। 12 दिसंबर को उनकी मौत हो गई; पुलिस ने 4 को गिरफ्तार किया, लेकिन परिवार न्याय की मांग कर रहा है।
- रायबरेली हत्या: 12 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में मदरसे के मौलाना मुर्तजा (45) की बेटी के सामने गोली या धारदार हथियार से हत्या; पुरानी रंजिश बताई जा रही है, लेकिन मुस्लिम समुदाय इसे संदिग्ध मान रहा है। 5 के खिलाफ FIR, पुलिस छापेमारी जारी।
- इंदौर अभियान: सितंबर-अक्टूबर 2025 में बीजेपी विधायक के बेटे ने ‘लव जिहाद’ के बहाने मुस्लिम कर्मचारियों को दुकानों से निकालने का अभियान चलाया; 120 से अधिक नौकरियां गईं, कई दुकानें बंद।
- अखलाक मामला: 2015 की दादरी लिंचिंग में यूपी सरकार ने दिसंबर 2025 में 19 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की याचिका दाखिल की; परिवार और विपक्ष ने इसे राजनीतिक साजिश बताया, सुनवाई 18 दिसंबर को।
- व्यापक चिंता: 2025 में मुसलमानों के खिलाफ नफरत अपराधों में 74% वृद्धि, जिसमें 141 हिंसा और 102 नफरत भरे भाषण शामिल; विशेषज्ञ इसे हिंदुत्ववादी राजनीति से जोड़ते हैं, लेकिन सरकार इसे अस्वीकार करती है।
घटनाओं का संक्षिप्त विवरण ये घटनाएं भारत में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ते पूर्वाग्रह को दर्शाती हैं, जहां धर्म की पहचान हिंसा का आधार बन रही है। नवादा मामले में अतहर की पत्नी शबनम ने कहा, “उन्हें सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वे मुसलमान थे।” रायबरेली में पुरानी रंजिश का दावा है, लेकिन समुदाय इसे सांप्रदायिक मानता है। इंदौर में आर्थिक बहिष्कार ने मुस्लिम व्यापारियों को बर्बाद कर दिया। अखलाक मामले में मुकदमा वापसी न्याय की प्रक्रिया पर सवाल उठाती है।
प्रभाव और मांगें परिवार न्याय, सख्त कानून और नफरत भरे भाषण पर रोक की मांग कर रहे हैं। मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि ये घटनाएं संवैधानिक मूल्यों को चुनौती दे रही हैं, जबकि सरकार इन्हें अलग-अलग बताती है।
भारत में मुसलमानों पर बढ़ते हमले: नफरत की लहर में डूबती एकता की कहानी
परिचय: एक खौफनाक वास्तविकता
भारत, जो सदियों से विविधता का प्रतीक रहा है, आज मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और पूर्वाग्रह की एक ऐसी लहर का सामना कर रहा है जो चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। दिसंबर 2025 में ही बिहार के नवादा में एक साधारण कपड़े बेचने वाले व्यापारी मुहम्मद अतहर हुसैन की बेरहमी से हत्या, उत्तर प्रदेश के रायबरेली में मदरसे के मौलाना मुर्तजा की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या, इंदौर में मुस्लिम कर्मचारियों के खिलाफ संगठित अभियान, और 2015 की दादरी लिंचिंग के बहुचर्चित अखलाक मामले में मुकदमे को वापस लेने का सरकारी फैसला—ये सभी घटनाएं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये न केवल व्यक्तिगत त्रासदियां हैं, बल्कि एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा हैं जहां धर्म की पहचान हिंसा का बहाना बन रही है।
मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट्स के अनुसार, 2025 में भारत में मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ नफरत अपराधों में 74% की वृद्धि हुई है, जिसमें जून से अगस्त के बीच ही 141 हिंसा की घटनाएं और 102 नफरत भरे भाषण दर्ज किए गए। ये आंकड़े बताते हैं कि हिंदुत्ववादी राजनीति के तहत मुसलमानों को ‘बाहरी’ या ‘आक्रांता’ के रूप में चित्रित करने का ट्रोप मजबूत हो रहा है। हालांकि, सरकार इन आरोपों को खारिज करती है और इन्हें ‘अलग-थलग’ घटनाएं बताती है, लेकिन प्रभावित परिवारों की गुहार कुछ और कहानी बयान करती है।
नवादा लिंचिंग: धर्म की जांच और अमानवीय यातनाएं
5 दिसंबर 2025 को बिहार के नवादा जिले के रोह थाना क्षेत्र में एक साधारण घटना ने भयावह रूप धारण कर लिया। 35-50 वर्षीय (रिपोर्ट्स में उम्र में भिन्नता) मुहम्मद अतहर हुसैन, जो साइकिल पर कपड़े बेचकर परिवार चलाते थे, डुमरी गांव से लौट रहे थे। भट्टा गांव के पास 6-7 नशे में धुत युवकों ने उन्हें रोका। पहले नाम पूछा, फिर जब ‘मुहम्मद अतहर हुसैन’ सुनते ही उग्र हो गए। उन्होंने अतहर को साइकिल से उतारा, ₹18,000 लूटे, हाथ-पैर बांधकर एक कमरे में घसीटा।
परिजनों के अनुसार, यातनाओं ने सारी हदें पार कर दीं। पैंट उतारकर निजी अंगों की जांच की गई ताकि ‘धर्म’ की पुष्टि हो सके। उंगलियां ईंटों से तोड़ी गईं, कान चिमटे से काटे गए, गर्म लोहे की रॉड से शरीर पर निशान बनाए गए, पेट्रोल डालकर जलाने की कोशिश की गई, और प्राइवेट पार्ट्स में करंट लगाया गया। अतहर के छोटे भाई मुहम्मद चांद ने सवाल उठाया: “क्या बिहार में मुसलमानों को जीने का हक नहीं?” अतहर ने अस्पताल में कांपती आवाज में अपनी आपबीती सुनाई: “उन्होंने मेरे कान और उंगलियों के सिरे चिमटे से काट दिए।”
7 दिसंबर को नवादा सदर अस्पताल में उनका बयान दर्ज हुआ, लेकिन जख्म इतने गंभीर थे कि 12-13 दिसंबर की रात बिहारशरीफ सदर अस्पताल में उनकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम नालंदा में फॉरेंसिक टीम की निगरानी में हुआ। पत्नी शबनम प्रवीण ने 6 दिसंबर को FIR दर्ज कराई, जिसमें 10 नामजद और 15 अज्ञात पर आरोप। पुलिस ने हत्या जोड़कर चार को गिरफ्तार किया: सोनू कुमार, रंजन कुमार, सचिन कुमार और श्री कुमार। थाना प्रभारी रंजन कुमार के मुताबिक, बाकी की तलाश जारी है। लेकिन परिवार प्रशासन के ‘सहयोग’ पर सवाल उठा रहा है—शबनम ने कहा, “हमें न मदद मिली, न न्याय।” बेटे इस्तेखार ने झुकी नजरों से कहा, “सरकार से सिर्फ न्याय चाहिए।”
यह घटना नवादा में बढ़ती मॉब लिंचिंग की एक कड़ी है, जहां धर्म पहचान का आधार बन रहा है।
रायबरेली: दिनदहाड़े मौलाना की हत्या, पुरानी रंजिश या साजिश?
12 दिसंबर 2025 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के डीह थाना क्षेत्र में दोपहर 3:30 बजे एक और सनसनीखेज घटना घटी। मदरसे के मौलाना मुर्तजा (45), जो पूरे पाठक मजरे बिन्नावां (नसीराबाद थाना) के निवासी थे, अपनी बेटी को ससुराल से लेकर लौट रहे थे। सीएचसी के पास बदमाशों ने उन्हें घेरा, हमला किया और गोली मार दी—या जैसा पोस्टमॉर्टम में सामने आया, धारदार हथियार से वार किया। मौके पर ही उनकी मौत हो गई। बेटी इशरत जहां ने आंखों देखा सबकुछ।
तहरीर में बेटी ने 5 लोगों पर हत्या का आरोप लगाया, जिसमें दो नामजद: अजूब पुत्र सलमान और नईम पुत्र अजूब (दोनों बिन्नावां निवासी)। पुलिस ने FIR दर्ज कर टीमें गठित कीं। एसपी यशवीर सिंह ने जल्द गिरफ्तारी का भरोसा दिया, इलाके में फोर्स तैनात की। गांववालों का कहना है कि पुरानी रंजिश थी—मृतक ने पहले आरोपियों के खिलाफ शिकायत की थी, जिसके बाद वे जेल गए थे। जेल से छूटने पर दोबारा विवाद हुआ। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने चौंका दिया: गोली की बजाय धारदार हथियार से हत्या। अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, यह खुलासा जांच को नया मोड़ दे सकता है।
मुस्लिम समुदाय इसे सांप्रदायिक मान रहा है, खासकर हाल की घटनाओं के मद्देनजर। यूपी में मदरसे शिक्षकों पर हमले बढ़ रहे हैं, और यह घटना उस चक्रव्यूह का हिस्सा लगती है।
इंदौर: आर्थिक बहिष्कार का ‘जिहादी-मुक्त बाजार’ अभियान
मध्य प्रदेश के इंदौर में सितंबर 2025 से चला आर्थिक बहिष्कार का अभियान मुसलमानों के लिए नया खतरा बन गया। बीजेपी विधायक मालिनी गौर के बेटे अकलव्या सिंह गौर (बीजेपी इंदौर उपाध्यक्ष और हिंदू रक्षक संगठन प्रमुख) ने शीतला माता बाजार (महिलाओं के कपड़ों का प्रमुख केंद्र) में 501 दुकानों के मालिकों को अल्टीमेटम दिया: 25 सितंबर तक सभी मुस्लिम सेल्समैन निकालो, और दो महीने में मुस्लिम किरायेदारों को खाली कराओ। बहाना? ‘लव जिहाद’।
अभियान को ‘बाजार का शुद्धिकरण’ नाम दिया गया। बाजार संघों ने बैनर लगाए: ‘जिहादी-मुक्त बाजार’। नतीजा? 120 से अधिक मुस्लिम कर्मचारी बेरोजगार, 4-5 दुकानें बंद। हिंदू-मुस्लिम पार्टनरशिप टूटीं—जैसे बालवंत राठौर और मुहम्मद हारून की दुकान। मुस्लिम व्यापारियों ने कर्ज चुकाने के लिए स्टॉक फोन पर बेचा। विरोध प्रदर्शन हुए, कांग्रेस ने बीजेपी पर इस्लामोफोबिया का आरोप लगाया। लेकिन गौर ने कहा, “यह बाजार को साफ करने का प्रयास है।”
यह अभियान जिम ट्रेनर्स को निकालने और दुकानों से कर्मचारियों को हटाने तक फैला, आर्थिक रूप से मुसलमानों को अलग-थलग करने का प्रयास।
अखलाक मामला: 10 साल बाद न्याय पर सवाल
2015 की दादरी (बिसाहड़ा) लिंचिंग, जहां गोमांस के शक में मुहम्मद अखलाक की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी, अब फिर सुर्खियों में है। दिसंबर 2025 में यूपी सरकार ने 19 आरोपियों (जिनमें बीजेपी नेता के बेटे विशाल राणा शामिल) के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की याचिका दाखिल की। बहाना: ‘झूठे आरोप, लाठियां इस्तेमाल हुईं न कि बंदूकें, सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा।’ गवर्नर आनंदीबेन पटेल ने अनुमति दी।
अखलाक के परिवार ने दुख जताया: “यह न्याय का अपमान है।” सीपीआई(एम) नेता ब्रिंदा करात ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा, इसे ‘राजनीतिक साजिश’ बताया। फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने 12 दिसंबर को सुनवाई टाली, अगली 18 दिसंबर को। ओपइंडिया जैसी साइट्स इसे ‘हिंदू पीड़ितों’ के लिए न्याय बता रही हैं, लेकिन वायर और हिंदुस्तान टाइम्स इसे संवैधानिक उल्लंघन मानते हैं।
व्यापक संदर्भ: नफरत अपराधों का आंकड़ों में चित्रण
2025 में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में उछाल आया है। नीचे दी गई तालिका प्रमुख रिपोर्ट्स से संकलित आंकड़ों पर आधारित है:
| अवधि | नफरत अपराध घटनाएं | नफरत भरे भाषण | मुख्य लक्ष्य | स्रोत |
|---|---|---|---|---|
| जून-अगस्त 2025 | 141 | 102 | मुसलमान (98%) | APCR रिपोर्ट |
| पूरे 2024 | 1,165 | – | मुसलमान (98.5%) | CSOH रिपोर्ट |
| 2023-2024 | 74% वृद्धि | – | अल्पसंख्यक | India Hate Lab |
ये आंकड़े दिखाते हैं कि यूपी, बिहार, एमपी जैसे राज्यों में हिंसा चरम पर है। एआई-जनरेटेड कंटेंट से नफरत फैलाने के 1,326 मामले दर्ज। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, “बीजेपी नेताओं का भाषण हिंसा भड़का रहा है।”
प्रभावित परिवारों की आवाजें और विशेषज्ञ विश्लेषण
शबनम प्रवीण: “मेरे पति को पैंट खोलकर धर्म देखा गया। क्या यह न्याय है?” इशरत जहां: “पापा को बेटी के सामने मार डाला।” अखलाक के बेटे: “10 साल बाद यह फैसला हमें तोड़ देगा।” इंदौर के हारून: “हमारा कारोबार बर्बाद हो गया।”
विशेषज्ञ कहते हैं, यह ‘बुलडोजर जस्टिस’ और ‘लव जिहाद’ जैसे नैरेटिव्स का नतीजा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा, “इन अपराधों के लिए दंडहीनता अस्वीकार्य।” अल जजीरा ने इसे ‘हेट का दैनिक मनोरंजन’ बताया।
निष्कर्ष: न्याय की राह पर कदम
ये घटनाएं भारत की एकता को चुनौती दे रही हैं। सरकार को सख्त कानून, नफरत भाषण पर रोक और पीड़ितों को सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। परिवारों की मांग है: “हमें न्याय दो, न कि भय।” यदि ये प्रवृत्तियां रुकीं नहीं, तो संवैधानिक मूल्य खतरे में पड़ जाएंगे।
कुंजी उद्धरण (Key Citations):
- The Wire: Muslim Man Assaulted By Mob in Bihar Succumbs To Injuries
- Indian Express: Cut ear with pliers, broke hand
- UNI India: Madarsa teacher killed in Raebareli
- Amar Ujala: धारदार हथियार से हत्या
- NDTV: BJP Leader’s Order Against Muslim Salesmen
- Times of India: Akhlaq lynching case
- CNN: Hate speech on ‘staggering’ rise
- HindutvaWatch X Post on Nawada
- IAMCouncil X Post on Nawada





