DGHS Physiotherapist Directive: क्या फिजियोथेरेपिस्ट नाम के साथ डॉक्टर लिख सकेंगे? नया विवाद और आदेश वापसी

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स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा ‘डॉक्टर’ शब्द के प्रयोग को रोकने वाले अपने हालिया आदेश को 24 घंटे से भी कम समय में वापस ले लिया है। इस फैसले के पीछे क्या वजह है और अब इस मुद्दे पर आगे क्या होगा, जानिए इस रिपोर्ट में।

DGHS ने वापस लिया अपना आदेश: फिजियोथेरेपिस्ट के ‘डॉक्टर’ लिखने पर रोक हटी

DGHS के नए निर्देश के अनुसार, फिजियोथेरेपिस्ट अब अपने नाम के साथ ‘डॉक्टर’ (Dr.) शीर्षक का प्रयोग नहीं कर सकते, लेकिन यह आदेश जारी होने के सिर्फ 24 घंटे बाद ही वापस ले लिया गया है। DGHS ने कहा कि विषय पर और विचार-विमर्श जरूरी है, इसलिए अंतिम फैसला नहीं हुआ है। इस पूरे मामले में कानूनी, तकनीकी और व्यावसायिक पक्ष शामिल हैं, और फिलहाल DGHS द्वारा जारी पुराने आदेश को निरस्त कर दिया गया है ।

भारत में फिजियोथेरेपिस्ट अभी तक अपने नाम के साथ ‘डॉक्टर’ (Dr.) लिखने के लिए आधिकारिक तौर पर अधिकृत नहीं हैं। डीजीएचएस (Directorate General of Health Services) ने इस पर जारी एक सख्त आदेश को विवाद और आपत्तियों के बाद वापस ले लिया है, और अब इस मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा।

पूरी कहानी क्या है?

  1. निर्देश जारी हुआ (9 सितंबर): डीजीएचएस की महानिदेशक डॉ. सुनीता शर्मा ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को एक पत्र लिखा। इसमें कहा गया कि फिजियोथेरेपिस्ट “मेडिकल डॉक्टर” नहीं हैं, इसलिए वे अपने नाम के साथ ‘डॉ.’ का प्रयोग नहीं कर सकते। यह उपाधि केवल MBBS, BDS, BAMS, BHMS आदि जैसी मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री धारकों के लिए आरक्षित है।
  2. निर्देश वापस लिया गया (10 सितंबर): इस पत्र के जारी होने के महज 24 घंटे के भीतर, DGHS ने इसे वापस ले लिया। डॉ. शर्मा ने एक नए पत्र में कहा कि इस मामले पर कई “अभ्यावेदन” (objections/representations) प्राप्त हुए हैं और इसकी गहन जांच और चर्चा की जरूरत है। इसलिए 9 सितंबर वाला पत्र रद्द किया जाता है।

विवाद की शुरुआत कहाँ से हुई?

यह विवाद ‘कम्पिटेंसी बेस्ड करिकुलम फॉर फिजियोथेरेपी’ नामक एक दस्तावेज से शुरू हुआ। इसमें सुझाव दिया गया था कि फिजियोथेरेपिस्ट अपने नाम के पहले ‘Dr.’ और नाम के बाद ‘PT’ (जैसे- Dr. Rajesh Kumar, PT) लिख सकें। IMA और अन्य मेडिकल संगठनों ने इस पर तुरंत आपत्ति जताई, जिसके बाद DGHS ने हस्तक्षेप किया।

DGHS का मुख्य तर्क क्या था?

  • गुमराह करना: DGHS का मानना था कि इससे मरीजों के बीच भ्रम पैदा होगा। कोई यह समझ सकता है कि फिजियोथेरेपिस्ट एक पूर्ण चिकित्सक (medical doctor) हैं, जो दवाएं लिखने या सर्जरी करने जैसे काम कर सकते हैं।
  • कानून का उल्लंघन: DGHS ने Indian Medical Degree Act, 1916 का हवाला दिया। इस कानून के तहत, बिना मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री के ‘डॉक्टर’ की उपाधि का use करना गैर-कानूनी है और इसके लिए दंड का प्रावधान है।
  • पुराने फैसले: DGHS ने पटना हाई कोर्ट के एक पुराने (2003) फैसले और 2007 के एक बिल की एथिक्स कमेटी के निर्देश का भी जिक्र किया, जो ‘डॉक्टर’ शब्द के use को केवल पंजीकृत चिकित्सकों (Allopathy, Ayurveda, Homeopathy, Unani) तक सीमित रखने की बात करते हैं।

अब आगे क्या होगा?

DGHS ने अपने नए पत्र में कहा है कि अब फिजियोथेरेपिस्टों के लिए एक “उपयुक्त और सम्मानजनक शीर्षक” पर विचार किया जाएगा, ताकि जनता में कोई भ्रम न फैले। इसका मतलब है कि यह मामला अभी खुला है और भविष्य में कोई नया निर्देश आ सकता है।

निष्कर्ष: DGHS का सख्त आदेश अभी लागू नहीं है, लेकिन वापस ले लिया गया है। फिलहाल, स्थिति वैसी ही है जैसी पहले थी। फिजियोथेरेपिस्टों के लिए ‘डॉ.’ लिखने की कानूनी अनुमति नहीं है, लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय और हितधारक इस पर फिर से बातचीत करेंगे।

कानूनी पहलू और पुराने आदेशों का हवाला

DGHS ने अपने पिछले पत्र में इस मुद्दे के कानूनी पहलुओं का भी जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि अगर कोई फिजियोथेरेपिस्ट अपने नाम के साथ ‘डॉ.’ का इस्तेमाल करता है, तो इसे

इंडियन मेडिकल डिग्री अधिनियम, 1916 का उल्लंघन माना जाता है, जिसके तहत दंडात्मक कार्रवाई भी हो सकती है। इसके अलावा, महानिदेशक ने पटना हाई कोर्ट के 2003 के एक निर्णय का भी हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि अगर फिजियोथेरेपिस्ट राज्य मेडिकल रजिस्टर में पंजीकृत नहीं हैं, तो वे न तो आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास कर सकते हैं और न ही नाम के साथ ‘डॉक्टर’ का इस्तेमाल कर सकते हैं।

पैरामेडिकल और फिजियोथेरेपी सेंट्रल काउंसिल बिल, 2007 की एथिक्स कमेटी ने भी यह साफ किया था कि ‘डॉ.’ की उपाधि केवल आधुनिक चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी के पंजीकृत चिकित्सकों को ही जोड़नी चाहिए।

आदेश वापस लेने का कारण

DGHS ने 24 घंटे से भी कम समय में अपना आदेश वापस ले लिया। महानिदेशक डॉ. सुनीता शर्मा ने अपने पत्र में इस फैसले का कारण बताते हुए कहा कि इस विषय पर उन्हें कई अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं। इस मुद्दे की संवेदनशीलता और जटिलता को देखते हुए, उन्हें लगा कि इस पर और अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। अब यह मुद्दा फिर से समीक्षा के दायरे में आ गया है। DGHS ने कहा है कि फिजियोथेरेपिस्टों के लिए एक उपयुक्त और सम्मानजनक उपाधि पर विचार किया जाएगा, जिससे जनता में भ्रम न फैले।

अब आगे क्या?

DGHS द्वारा आदेश वापस लिए जाने के बाद, यह देखना बाकी है कि इस मुद्दे पर क्या नया फैसला लिया जाता है। फिजियोथेरेपिस्ट समुदाय को उम्मीद है कि उन्हें एक सम्मानजनक उपाधि दी जाएगी, जिससे उनकी वर्षों की पढ़ाई और मेहनत को उचित पहचान मिल सके। वहीं, मेडिकल जगत का मानना है कि ‘डॉक्टर’ शब्द का इस्तेमाल केवल चिकित्सकों तक ही सीमित रहना चाहिए, ताकि मरीजों को किसी भी तरह का भ्रम न हो। यह एक ऐसा मामला है जिस पर केंद्र सरकार और संबंधित सभी हितधारकों के बीच व्यापक चर्चा की जरूरत है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. क्या फिजियोथेरेपिस्ट अब अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ लिख सकते हैं?
    फिलहाल, इस पर स्पष्टता नहीं है। DGHS ने अपने उस आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें उन्हें ‘डॉक्टर’ लिखने से रोका गया था। अब इस पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा।
  2. DGHS ने आदेश क्यों वापस लिया?
    DGHS ने कहा है कि इस मुद्दे पर उन्हें कई अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं और इस पर गहन जांच की आवश्यकता है।
  3. इस विवाद का मुख्य कारण क्या है?
    यह विवाद ‘कम्पिटेंसी बेस्ड करिकुलम फॉर फिजियोथेरेपी’ दस्तावेज में ‘डॉ.’ और ‘PT’ उपसर्ग के इस्तेमाल के उल्लेख से शुरू हुआ।
  4. क्या फिजियोथेरेपिस्ट के लिए कोई वैकल्पिक उपाधि का प्रस्ताव है?
    हाँ, DGHS ने कहा है कि फिजियोथेरेपिस्टों के लिए एक अधिक उपयुक्त और सम्मानजनक उपाधि पर विचार किया जाएगा, जो जनता में भ्रम न फैलाए।
  5. क्या ‘डॉक्टर’ शब्द का इस्तेमाल करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है?
    इंडियन मेडिकल डिग्री अधिनियम, 1916 के तहत, बिना मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री के ‘डॉक्टर’ का इस्तेमाल अवैध माना जाता है।
  6. यह फैसला किस तारीख को लिया गया?
    DGHS ने 9 सितंबर को जारी किए गए अपने आदेश को 10 सितंबर को वापस ले लिया।

DGHS द्वारा अपने आदेश को वापस लेना यह दर्शाता है कि यह मुद्दा जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा जटिल है। यह केवल एक उपाधि का मामला नहीं है, बल्कि यह दो अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों के बीच की रेखा को स्पष्ट करने का सवाल है। अब गेंद सरकार के पाले में है। सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा। यह घटना भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में विभिन्न पेशेवरों की भूमिका और पहचान पर एक बड़ी बहस को फिर से शुरू कर सकती है।

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