रीवा / चौडियार, मध्यप्रदेश: क्या बात है, रविवार की सुबह चौडियार गाँव का माहौल एकदम बदला हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में यहाँ एक बड़ा पथ संचलन और शारीरिक कार्यक्रम हुआ। मैंने देखा कि सुबह से ही गाँव में कमाल का जोश था, मानो कोई बड़ा त्योहार हो।
स्वयंसेवक अपने पारंपरिक गणवेश—सफ़ेद कमीज़, खाकी पैंट, काली टोपी—में एकदम अनुशासित पंक्तियों में हाथों में दंड लेकर निकले। चारों तरफ़ बस “भारत माता की जय” और “संघे शक्ति कलियुगे” की गूंज थी। मैं खुद गलियों में घूम रहा था, और सच कहूँ तो पूरा गाँव राष्ट्रभक्ति के रंग में डूबा हुआ महसूस हो रहा था। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएँ, बुजुर्ग सब अपने घरों से बाहर आकर खड़े थे, तालियाँ बजा रहे थे और स्वयंसेवकों का अभिनंदन कर रहे थे।
संगठन का उद्देश्य सत्ता नहीं, समाज निर्माण: मुख्य अतिथि अशुतोष द्विवेदी
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अशुतोष द्विवेदी जी (रीवा) उपस्थित रहे। उनका संबोधन सुनने लायक था। उन्होंने साफ़ कहा कि, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य सत्ता पाना नहीं है, बल्कि समाज निर्माण है।”
उन्होंने स्वयंसेवकों को समझाया कि संघ का हर काम समाज की एकता, संस्कार और सेवा की भावना से ही होता है। यह बात मैंने भी नोट की—उनका अनुशासन बताता है कि यह सिर्फ़ एक मार्च नहीं है, यह एक संस्कार है।
इस कार्यक्रम में गाँव के कई गणमान्य लोग भी शामिल हुए, जिनमें राजकुमार मिश्रा, ज्ञानेंद्र मिश्रा, शुभम मिश्रा, ध्रुव मिश्रा, रामकृष्ण सेन, और पुष्पेंद्र मिश्रा प्रमुख थे। सबने मिलकर राष्ट्रगान गाया। मुझे याद है, राष्ट्रगान के समय वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया था—वह भावुक कर देने वाला पल था।

प्रमुख बातें जो ज़मीन पर दिखीं:
- अनुशासन की झलक: स्वयंसेवक एकदम सीधी लाइन में कदमताल करते हुए निकले। एक भी बंदा लाइन से बाहर नहीं हुआ, क्या अनुशासन था!
- ग्रामीणों का उत्साह: जगह-जगह लोगों ने फूलों की बारिश की। बुजुर्ग महिलाएँ और बच्चे भी जोश में “वंदे मातरम” के नारे लगा रहे थे।
- रीवा संभाग में तेज़ी: हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत जी मैहर (निकटवर्ती क्षेत्र) आए थे। उनकी प्रेरणा के बाद से रीवा संभाग में संघ की गतिविधियों में सच में बहुत तेज़ी आई है।
- मुख्य संदेश: कार्यक्रम का मूल उद्देश्य था युवाओं को राष्ट्रसेवा और आत्मनिष्ठा से जोड़ना, और गाँव में सकारात्मकता का प्रसार करना।
“संघे शक्ति कलियुगे” का संदेश क्यों ज़रूरी है?
संघ के वक्ताओं ने एक बहुत ज़रूरी बात कही। उन्होंने कहा, “स्वयंसेवकों का यह अनुशासन, समर्पण और राष्ट्रसेवा का भाव ही समाज को सशक्त प्रेरणा देता है। जब समाज एक होता है, जब सब संगठित होते हैं, तभी हमारा राष्ट्र मजबूत बनता है।”
चौडियार जैसे छोटे गाँव में यह कार्यक्रम करना दिखाता है कि संघ अपनी पहुँच को ज़मीन तक ले जा रहा है। गाँव के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने बताया कि आने वाले महीनों में ऐसे आयोजन आस-पास की तहसीलों और गाँवों में भी खूब होंगे। ये सब शताब्दी वर्ष के बड़े उत्सव की तैयारी है।
मैंने खुद देखा, रैली के आख़िर में जब राष्ट्रगीत गाया गया और ‘संघे शक्ति कलियुगे’ का उद्घोष हुआ, तो ग्रामवासियों के चेहरे पर एक गौरव का भाव था। यह केवल एक संचलन नहीं था, बल्कि चौडियार के लिए राष्ट्रीय गौरव का एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।
रिपोर्टर – अंकित कुमार मिश्रा, रीवा (म.प्र.)

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