देश में कई तरह के फसलों की खेती की जाती है और सतावर एक बहुवर्षीय औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। इसकी बढ़ती मांग के कारण, इसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प बन गई है। तो आइये जानते है इसके बारे में. ..
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सतावर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
सतावर गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से उगता है। यह हल्की रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा होता है। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सतावर की जड़ें अच्छी तरह से विकसित होती हैं।
सतावर की खेती की प्रक्रिया
- बीज या कंद का चयन: सतावर की खेती बीज या कंद से की जा सकती है। बीज से उगाने में अधिक समय लगता है, इसलिए कंद से लगाना अधिक लोकप्रिय है।
- मिट्टी की तैयारी: खेती से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई और खाद डालकर तैयार किया जाता है।
- रोपण: कंदों को 2-3 फीट की दूरी पर रोपा जाता है।
- सिंचाई: सतावर को नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है, खासकर गर्मी के मौसम में।
- खाद: समय-समय पर खाद डालने से पौधे का विकास अच्छा होता है।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों को नियमित रूप से हटाना चाहिए।
- कटाई: सतावर की जड़ों को 2-3 साल बाद काटा जा सकता है।
सतावर की खेती के फायदे
- उच्च मांग: सतावर की मांग आयुर्वेदिक उद्योग में लगातार बढ़ रही है।
- अच्छी आय: सतावर की खेती से किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।
- सूखा प्रतिरोधी: सतावर सूखे की स्थिति में भी जीवित रह सकता है।
- रोग प्रतिरोधी: यह कई रोगों के प्रतिरोधी होता है।
सतावर की खेती से कमाई
सतावर की खेती से कमाई की अगर हम बात करे तो बाज़ार में क़रीब 1000 रूपए प्रति किलो के भाव से बिकने वाले सतावर की रोपाई इन्हीं महीनों में की जाती है. सतावर की खेती की सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसकी डिमांड राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक होती है.