सोयाबीन की नई ऊंचाई, 4 शानदार किस्मों ने दस्तक दी, देंगी बम्पर पैदावार, जानिए

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत आने वाले भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का 54वां वार्षिक समूह सम्मेलन मार्च 2024 में कर्नाटक के धारवाड़ स्थित कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में वैरायटी आ identificación समिति ने पूरे भारत के लिए 4 किस्मों की पहचान की है (मध्य क्षेत्र के लिए 3 किस्में और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र के लिए 1 किस्म). आइये जानते हैं वे कौन सी 4 नई उन्नत सोयाबीन की किस्में हैं…

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सोयाबीन JS 2303 किस्म: – इसे जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित किया गया है, जो अखिल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का केंद्र भी है. वर्ष 2021 से 2023 के दौरान मध्य क्षेत्र में किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने मात्र 93 दिनों की अवधि में औसतन 2167 किग्रा/हेक्टेयर की दर से मौजूदा किस्म की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक उत्पादन हासिल किया है. इस किस्म में बैंगनी रंग के फूल, काले रंग की छातेरी और बिना बालों वाली फलियाँ होती हैं.

परीक्षणों के दौरान इसने चारकोल रोट, एन्थ्रेक्नोस, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट और यलो मोज़ेक वायरस जैसी कई बीमारियों के लिए मध्यम प्रतिरोध क्षमता दिखाई है. इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, पत्तियां नुकीली होती हैं और बीज पीले होते हैं जिनमें काले रंग का हिलम होता है. यह किस्म मध्य क्षेत्र (पूरे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र) के लिए उपयुक्त पाई गई है.

सोयाबीन JS 2309 किस्म: JS श्रृंखला की अन्य किस्मों की तरह, इसे भी जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा विकसित किया गया है, जो अखिल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान परियोजना का केंद्र भी है. वर्ष 2021 से 2023 के दौरान मध्य क्षेत्र में किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने मात्र 92 दिनों की अवधि में औसतन 2104 किग्रा/हेक्टेयर की दर से मौजूदा किस्म की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक उत्पादन हासिल किया है.

इस किस्म में बैंगनी रंग के फूल, काले रंग की छातेरी और बिना बालों वाली फलियां होती हैं. परीक्षणों के दौरान इस किस्म ने चारकोल रोट के लिए मध्यम से उच्च प्रतिरोध क्षमता दिखाई है. इसके अलावा, यह एन्थ्रेक्नोस और यलो मोज़ेक रोग के लिए भी मध्यम रूप से प्रतिरोधी पाई गई. राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट और यलो मोज़ेक वायरस जैसी कई बीमारियों के लिए इसने मध्यम प्रतिरोध क्षमता दिखाई है.

इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, पत्तियां नुकीली होती हैं और पीले बीजों में काला हिलम होता है. यह किस्म मध्य क्षेत्र (पूरे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र) के लिए उपयुक्त पाई गई है.

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  1. सोयाबीन आरएससी 1142 किस्म (Soybean RSC 1142 Kisam):

इसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित किया गया है.
वर्ष 2021 से 2023 के दौरान किए गए निरंतर परीक्षणों में इसने मौजूदा किस्मों की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक उत्पादन दिया है. औसतन इसकी पैदावार 2299 किग्रा/हेक्टेयर रही है.
इस किस्म का पौधा मध्यम आकार का होता है और इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं.
यह किस्म भारतीय छत्ते (इंडियन बड) रोग, बैक्टीरिया का रोग (बैक्टीरियल पस्टूल) और राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट जैसी बीमारियों के लिए मध्यम प्रतिरोधक क्षमता रखती है.
इसके अलावा, यह गुंजक कीट (सर्कल बीटल) के लिए भी मध्यम रूप से प्रतिरोधी है.
इसकी औसतन पकने की अवधि 101 दिन है.
यह किस्म पूर्वी क्षेत्र (छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल) के लिए उपयुक्त बताई गई है.

  1. सोयाबीन एनआरसी 197 किस्म (Soybean NRC 197 Kisam):

इसे भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा मार्कर सहायित चयन (Marker Assisted Selection) तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है.
यह उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र की पहली किस्म है, जिसमें पोषक तत्वों को कम करने वाले कुणिट्ज ट्रिप्सिन इनहिबिटर (Kunitz Trypsin Inhibitor) की मात्रा नहीं पाई गई है.
यह किस्म हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के लिए उपयुक्त बताई गई है.
यह कम अवधि वाली किस्म है जो मात्र 113 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. ऐसे में यह पहाड़ी क्षेत्रों के लिए बहुत उपयुक्त विकल्प है.
इसके पत्तों का आकार नुकीला होता है.
परीक्षणों में इसकी औसत उत्पादकता 1624 किग्रा/हेक्टेयर देखी गई है, वहीं अधिकतम पैदावार 2072 किग्रा/हेक्टेयर तक दर्ज की गई है.
ये चारों किस्में भारतीय कृषि वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा हैं. उम्मीद है कि इन नई किस्मों को अपनाकर किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकेंगे.

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