बाकी मछलियों से दुगुना तेजी से बढ़ती है इस नस्ल की मछली, 1 साल की कमाई से बन जाओगे करोड़पति
देश के कई राज्यों के किसान अब खेती के साथ-साथ बड़े पैमाने पर मछली पालन की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे किसानों को अच्छी कमाई हो रही है। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों ने भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी दी है। लेकिन कई बार किसानों को मछली पालन की जानकारी के अभाव में इसका लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे में जानिए कि मछली पालन में बेहतर कमाई करना चाहते किसान जयन्ती प्रजाति की रोहू की पालन कर सकते हैं। आइए जानते हैं इस प्रजाति की खासियत।
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जयन्ती रोहू प्रजाति की खासियत
जयन्ती रोहू अब मछली किसानों के लिए मुनाफे का जरिया बन जाएगी। जयन्ती रोहू मछली रोहू प्रजाति की एक उन्नत किस्म मानी जाती है। यह प्रजाति अन्य मछलियों की तुलना में डेढ़ गुना तेजी से बढ़ती है। यह आम रोहू मछली की तुलना में तेजी से बढ़ती है। इसकी पालन में 20 प्रतिशत की लागत में कमी आती है। यह एरोमोनास रोग के प्रति प्रतिरोधी है। किसान इस मछली को बाजार में अच्छे रेट पर जल्द बेच सकते हैं। इसलिए जयन्ती रोहू मछली किसानों के लिए पैसा कमाने का एक लाभदायक सौदा है।
जयन्ती रोहू मछली 8 से 10 महीने में तैयार हो जाती है, जबकि अन्य प्रजाति की मछलियों में 16 से 18 महीने का समय लगता है। जयन्ती रोहू का वजन लगभग एक से डेढ़ किलो तक होता है। अच्छी प्रजाति की मछली होने के कारण किसान जयन्ती रोहू को बाजार में 130 से 140 रुपये किलो तक बेच सकते हैं। इस तरह की मछली ओडिशा से लाई गई है।
इन राज्यों में होती है इसकी पालन
जयन्ती प्रजाति की रोहू की पालन आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम राज्यों में की जाती है। अन्य राज्यों में भी इसकी पालन धीरे-धीरे बढ़ रही है। इस प्रजाति को छोटे और बड़े पानी के स्रोतों में आसानी से पाला जा सकता है। जयन्ती रोहू मछली के बीज की पूरे देश में मांग है। यह अन्य मछलियों की तुलना में अधिक पौष्टिक है। मछुआरों को कम समय में ज्यादा मुनाफा मिलता है।
रोहू की अन्य प्रजातियों का पालन
रोहू मछली एक बहुत अच्छी प्रजाति की मछली है। इसकी कई अलग-अलग प्रजातियां भारत में पाली जाती हैं। यह पूरे भारत में अपने स्वाद के लिए मशहूर है। पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और असम में लोग बड़े पैमाने पर रोहू मछली का पालन और सेवन करते हैं। रोहू को पालने के लिए बड़े तालाब की जरूरत नहीं होती है। यह अन्य मछलियों की तुलना में अधिक पौष्टिक है।