उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई 186 पदों की भर्ती प्रक्रिया एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस भर्ती में कथित अनियमितताओं के बाद केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) से जाँच कराने का आदेश दिया था, लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से जहाँ योगी सरकार को फौरी राहत मिली है, वहीं विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे “भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने” की कोशिश बताते हुए सरकार पर तीखा हमला बोला है।
मुख्य बातें (Quick Highlights)
- भर्ती विवाद: 2022–23 में UP सचिवालय में 186 पदों पर हुई भर्तियों में वीवीआईपी (VVIP) रिश्तेदारों के चयन का आरोप।
- हाईकोर्ट का आदेश: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपों की गंभीरता को देखते हुए CBI जाँच का निर्देश दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: शीर्ष अदालत ने कहा कि CBI जाँच असाधारण और अंतिम उपाय है, और हर प्रशासनिक विवाद में इसकी ज़रूरत नहीं।
- आँकड़ों में असंतोष: मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चयनित उम्मीदवारों में ‘हर पाँचवां व्यक्ति’ किसी मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी का रिश्तेदार था।
- विपक्ष का हमला: समाजवादी पार्टी ने इस भर्ती को “अच्छे दिन का घोटाला” बताते हुए पारदर्शिता पर सवाल उठाए।
भर्ती प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल
वर्ष 2022-23 में उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय और विधान परिषद सचिवालय में विभिन्न संवर्गों के 186 पदों पर नियुक्तियाँ की गई थीं। इन भर्तियों को लेकर शुरुआत से ही आरोप थे कि चयनित उम्मीदवारों में मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के परिजनों की संख्या असामान्य रूप से अधिक थी। नेशनल ब्यूरो ऑफ टाइम्स (NBT) समेत कई मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे “चौंकाने वाला घोटाला” बताते हुए चयन की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। इन आरोपों को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरी भर्ती प्रक्रिया की विस्तृत CBI जाँच का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने CBI जाँच पर लगाई रोक
योगी सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार का तर्क था कि CBI जाँच एक असाधारण कदम है और ठोस आपराधिक साक्ष्य के अभाव में हर प्रशासनिक विवाद के लिए इसका इस्तेमाल उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की पीठ ने सरकार की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया:
“CBI जाँच असाधारण उपाय है और केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही उचित है। यदि राज्य की जाँच एजेंसियाँ या प्रक्रियाएँ विफल हों, तभी केंद्र की एजेंसी को शामिल किया जाना चाहिए।”
शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि हर प्रशासनिक विवाद में CBI को शामिल करने से देश के संघीय ढाँचे (Federal Structure) पर असर पड़ सकता है।

विपक्ष का तीखा हमला: ‘घोटाले पर पर्दा डालना’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य के विपक्षी दलों ने सरकार पर आक्रामक रुख अपनाया है। कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता ने इसे “भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने” की कोशिश बताया।
सपा प्रवक्ता ने कहा, “यह ‘अच्छे दिन का घोटाला’ है। एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करती है, और दूसरी तरफ अपने ही मंत्रालय की भर्तियों पर CBI जाँच से भाग रही है। अगर सब कुछ पारदर्शी है, तो जाँच से डर कैसा?” विपक्ष ने आरोप लगाया कि सत्ता के दबाव पर न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फिलहाल इस भर्ती की CBI जाँच रुक गई है और भर्ती प्रक्रिया बरकरार रहेगी। राज्य सरकार ने दावा किया है कि सभी चयन मेरिट के आधार पर हुए हैं। हालांकि, विपक्ष ने अब इस मामले की जाँच के लिए लोकायुक्त और विधानसभा समिति के गठन की मांग शुरू कर दी है, जिससे यह विवाद राजनीतिक और कानूनी गलियारों में बना रहेगा।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र.1: यूपी सचिवालय भर्ती विवाद क्या है? उत्तर: यह विवाद 2022-23 में उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में 186 पदों पर हुई भर्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि चयनित उम्मीदवारों में मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के रिश्तेदार बड़ी संख्या में शामिल थे।
प्र.2: सुप्रीम कोर्ट ने CBI जाँच का आदेश क्यों रद्द किया? उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए CBI जाँच का आदेश रद्द कर दिया कि CBI जाँच केवल असाधारण और दुर्लभ परिस्थितियों में ही उचित होती है। न्यायालय ने माना कि हर प्रशासनिक या भर्ती विवाद में केंद्रीय एजेंसी को शामिल नहीं किया जा सकता है।
प्र.3: विपक्ष इस फैसले पर क्या कह रहा है? उत्तर: विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार पर तीखा हमला बोला है। उनका आरोप है कि सरकार भ्रष्टाचार पर पर्दा डालना चाहती है, इसलिए उसने सीबीआई जांच को रुकवाने के लिए अपील की।
यह मामला प्रशासनिक पारदर्शिता और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा के बीच फंसा हुआ प्रतीत होता है। जहाँ एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने CBI जाँच को अंतिम उपाय बताकर संवैधानिक संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया है, वहीं जनता और विपक्ष सत्ता की जवाबदेही पर सवाल उठा रहे हैं। यह विवाद अब शासन प्रणाली पर भरोसे की परीक्षा बन गया है।
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