मंत्री विजय शाह पर दर्ज हुई FIR: हाईकोर्ट के आदेश के बाद IPC की कई धाराएं लगीं, जानें क्या है सजा — क्या गंभीर धाराएं दबा दी गईं?

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क्या गंभीर धाराएं दबा दी गईं?

वन मंत्री विजय शाह के विवादित बयान पर जबलपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। कोर्ट ने इसे गंभीर मामला करार दिया, लेकिन दर्ज एफआईआर में जो धाराएं लगाई गईं, उन्हें लेकर सवाल उठने लगे हैं। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बयान में महिला अधिकारी का सार्वजनिक अपमान, धार्मिक विद्वेष, और सेना की गरिमा को ठेस जैसे तत्व होने के बावजूद, IPC की कुछ सख्त धाराएं — जैसे 153A (धार्मिक द्वेष फैलाना), 354A (महिला का अपमान), और 505(2) (सांप्रदायिक शत्रुता भड़काना) — एफआईआर में शामिल नहीं की गईं। कई लोगों का मानना है कि यह राजनीतिक दबाव या वोट बैंक की सियासत का नतीजा हो सकता है। क्या ये सिर्फ एक प्रतीकात्मक कार्रवाई थी या असल में कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश? यह सवाल अब तेज़ी से गूंजने लगा है।

वर्तमान में जो धाराएं लगी हैं:

धारानामगंभीरताजमानती / गैर-जमानतीटिप्पणी
152लोक सेवक द्वारा शांति भंग करनागंभीर नहीं, लेकिन अनुशासनात्मक अपराध हैजमानतीयह केवल भड़काऊ भाषण को कवर करता है अगर लोक सेवक ने बोला हो
196(1)(b)धर्म, जाति, समुदाय के खिलाफ बोलनागंभीर है, लेकिन सरकारी अनुमति के बिना मुकदमा नहीं चल सकताजमानतीयह Hate Speech Act जैसा है, पर कोर्ट के संज्ञान से प्रभावी हो सकता है
197(1)(c)किसी वर्ग विशेष के खिलाफ अपमानजनक भाषणगंभीर, पर पहले सरकार की स्वीकृति जरूरीजमानतीबिना अनुमति अभियोजन नहीं चल सकता

भोपाल, 15 मई 2025: मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इंदौर जिले के ग्राम रायकुंडा (थाना मानपुर) में 12 मई को दिए गए एक बयान पर जबलपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। यह बयान सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिया गया था, जिसे कोर्ट ने उकसाने वाला और अपमानजनक माना है।

क्या है पूरा विवाद?

12 मई 2025 को रायकुंडा गांव में आयोजित एक हलमा कार्यक्रम के दौरान मंत्री विजय शाह ने कहा:

“मोदी जी ने आतंकियों की बहन को उनके घर भेजा… हमारे समाज की बहनों का बदला उनके समाज की बहनों को पाकिस्तान भेजकर लिया जाएगा।”

इस कथन को कर्नल सोफिया कुरैशी से जोड़कर देखा जा रहा है, जो “ऑपरेशन सिंदूर” का हिस्सा थीं। बयान के बाद देशभर में विवाद गहरा गया है और मंत्री पर महिला अफसर व सेना का अपमान करने का आरोप है।

बीजेपी को समझ नहीं आ रहा है कि वह देश में उठ रही देशभक्ति के जज्बों को देखते हुए शाह पर कड़ा फैसला ले या फिर आदिवासी वोट बैंक को संभाले।

मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह के विवादित बयान पर हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान। थाना मानपुर में दर्ज हुई FIR, धाराएं 152, 196(1)(b) और 197(1)(c) के तहत केस। जानिए पूरा मामला।

FIR में किन धाराओं का उपयोग हुआ?

हाईकोर्ट के आदेश के बाद थाना मानपुर में मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज की गई है। इसमें भारतीय न्याय संहिता (BNSS) 2023 की निम्न धाराएं लगाई गई हैं:

धाराविवरणसंभावित सजा
152लोक सेवक द्वारा सार्वजनिक शांति भंग करने का प्रयास3 साल तक जेल या जुर्माना
196(1)(b)घृणा या शत्रुता फैलाने वाला वक्तव्यसरकार की अनुमति से मुकदमा
197(1)(c)समुदाय विशेष के विरुद्ध भड़काऊ बयानकेस से पहले सरकारी मंजूरी अनिवार्य

FIR की मुख्य जानकारी

बिंदुविवरण
FIR नंबर0188/2025
थानामानपुर, जिला इंदौर
घटना की तारीख12 मई 2025 (9:30 AM – 12:00 PM)
FIR दर्ज14 मई 2025, रात 11:27 बजे
आदेश देने वाली संस्थाजबलपुर हाईकोर्ट (खंडपीठ)

हाईकोर्ट का सख्त रुख

14 मई को जबलपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने WP No. 17913/2025 पर सुनवाई करते हुए स्वतः संज्ञान लिया और राज्य के DGP को 4 घंटे के भीतर FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने चेताया कि यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो अवमानना की कार्रवाई होगी।

मंत्री विजय शाह पर असमंजस में BJP, देशभक्ति के जज्बे को देखे या आदिवासी वोट बैंक को

राजनीतिक दबाव और धाराओं की गंभीरता पर सवाल

हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानते हुए स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन जो धाराएं लगाई गई हैं, वे अधिकतर जमानती और सरकार की अनुमति पर आधारित हैं। कई विधि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि महिला अधिकारी के अपमान और सामाजिक वैमनस्य फैलाने जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद आईपीसी की सख्त धाराएं जैसे 153A, 354A और 505 को एफआईआर में शामिल नहीं किया गया। यह सवाल उठता है कि कहीं राजनीतिक दबाव या आदिवासी वोट बैंक की राजनीति के चलते जानबूझकर हल्की धाराएं तो नहीं लगाई गईं? अब यह देखना अहम होगा कि आगे की जांच और न्यायिक प्रक्रिया इस मामले को कितनी गंभीरता से लेती है।

क्या मंत्री के खिलाफ और गंभीर धाराएं लगनी चाहिए थीं?

वर्तमान धाराएं जमानती और सरकारी मंजूरी पर निर्भर हैं। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि:

  • महिला अफसर के अपमान के लिए धारा 354A
  • जातीय वैमनस्य के लिए धारा 153A
  • समाज में तनाव फैलाने पर धारा 505

जोड़ना उचित होता। इससे केस की कानूनी मजबूती और गंभीरता अधिक होती।

विजय शाह के विवादों की लंबी फेहरिस्त और बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी

मंत्री विजय शाह सिर्फ हाल ही के विवादित बयान से नहीं, बल्कि लंबे समय से विवादों में घिरे हुए हैं। उनकी कार्यशैली और वक्तव्य शुरू से ही अक्सर सवालों के घेरे में रहे हैं। फिर भी, बीजेपी पार्टी उन्हें मालवा-निमाड़ क्षेत्र के सबसे बड़े आदिवासी नेता के तौर पर देखती है और इसी वजह से उन्हें लगातार अपनी सरकारों में शामिल रखा है।

विजय शाह 2003 से हर बीजेपी सरकार में मंत्री रहे हैं, लेकिन उनके विवादित बयानों की वजह से उन्हें पहले भी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के तौर पर, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में शाह को उनके विवादित बयानों के कारण मंत्री पद से हटाया गया था। लेकिन आदिवासी वोट बैंक की मजबूती के कारण वह फिर अगले चुनाव में कैबिनेट में वापसी कर गए। इसी दौरान शिवराज सिंह चौहान ने उनके विवादित बयान को ‘हंसी-मजाक’ कहकर टाल दिया था।

विवादित बयानों और घटनाओं की पूरी सूची:

इंदौर नगर निगम के करोड़ों रुपये संपत्तिकर बकाया: विजय शाह पर नगर निगम के पास करोड़ों रुपये संपत्तिकर बकाया था, जिस पर उनकी जमीन पर नोटिस भी जारी किया गया।

2013 में शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह पर बेहूदा टिप्पणी: इस बयान के बाद विजय शाह को इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन आदिवासी वोट बैंक के दबाव में वह फिर वापसी कर गए।

लड़कियों को टी-शर्ट बांटने का आपत्तिजनक बयान: एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, “इन्हें दो-दो टी-शर्ट दे दो, मुझे नहीं पता ये नीचे क्या पहनती हैं।” यह बयान सोशल मीडिया और जनता के बीच काफी विवादित रहा।

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (नर्मदापुरम) में चिकन पार्टी का आरोप: पूर्व वन मंत्री विजय शाह पर आरोप लगे कि उन्होंने रिजर्व के कोर एरिया में चिकन पार्टी की। विवाद बढ़ने पर उन्होंने सफाई दी कि वह वहां वॉच टावर की स्थिति देखने गए थे और स्वयं चिकन नहीं खाया।

इसी बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर #RemoveVijayShah ट्रेंड कर रहा है, जो पार्टी पर दबाव बढ़ा रहा है कि वह इस मामले में सख्त कदम उठाए। देशभर में इस विवाद ने राजनीतिक माहौल को और गर्मा दिया है, जहां बीजेपी के लिए अब संतुलन बनाए रखना और भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।

बीजेपी की मजबूरी और राजनीतिक समीकरण

बीजेपी के लिए विजय शाह एक राजनीतिक पहेली बने हुए हैं। एक तरफ पार्टी को उनकी मजबूत आदिवासी पकड़ की वजह से उन्हें खोना मुमकिन नहीं लगता। दूसरी ओर, उनके विवादित बयानों से पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंच रहा है। इस वजह से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के लिए संतुलन बनाना बेहद मुश्किल हो गया है।

विजय शाह जैसे नेता पार्टी के लिए आदिवासी वोट बैंक का बड़ा आधार हैं, जिसे वह किसी भी हालत में खोना नहीं चाहती। लेकिन इन विवादों की वजह से पार्टी की छवि और देशभक्ति की भावना पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। यही वजह है कि कई बार पार्टी ने उनके विवादों को नजरअंदाज करते हुए राजनीतिक रणनीति के तहत उनका समर्थन किया है।

इस राजनीतिक दुविधा ने बीजेपी को एक जटिल स्थिति में डाल दिया है, जहां उसे देशभक्ति और संवेदनशीलता के मुद्दे पर कठोरता दिखानी है, लेकिन वोट बैंक के राजनीतिक फायदे को भी नुकसान नहीं पहुंचाना है।

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