बधाई GST में बड़ी राहत! अब रोटी पर कोई टैक्स नहीं, दिवाली से पहले मिलेगा फायदा?

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नई दिल्ली, 4 सितंबर 2025, सुबह 12:30 बजे IST: देश में एक नई ‘खुशखबरी’ का ऐलान हुआ है। सरकार ने ‘नेक्स्ट-जनरेशन GST रिफॉर्म्स’ को एक ‘ऐतिहासिक दिवाली तोहफा’ बताते हुए घोषणा की है कि अब सभी भारतीय रोटियों पर GST शून्य होगा। सरकार ने ढिंढोरा पीट-पीट कर ऐलान किया है कि अब रोटी, पराठे और नान पर जीएसटी नहीं लगेगा। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब चुनावी हवाएं चलनी शुरू हो चुकी हैं। लेकिन एक कड़वा सवाल हर उस आम आदमी के मन में है, जो महंगाई से बेहाल है: जिस सरकार का दावा है कि वह करोडो लोगों को मुफ्त राशन देकर उनका पेट भर रही है, वही सरकार आखिर उन्हीं की रोटी, उनके स्वास्थ्य और उनके बच्चों की पढ़ाई पर टैक्स क्यों वसूल रही थी?

यह सवाल सिर्फ रोटी तक सीमित नहीं है। यह उस व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है जो गरीब के पेट भरने का दावा करती है, लेकिन उसी के पैसे से उसकी थाली महंगी कर देती है। यह एक हाथ से रोटी देने और दूसरे हाथ से उसी रोटी पर टैक्स लगाने का खेल खत्म करने जैसा लगता है, लेकिन क्या सच में ऐसा है?

सरकार अब रोटी पर टैक्स छोड़ रही, सवाल तो बनता है! कैसे? 12% और 18% स्लैब हटाकर NIL रेट का तमाशा। ये खबर GST काउंसिल की ब्रीफिंग और सरकारी बयानों पर आधारित है, भरोसा कर लो!

ज़ीरो GST! उस रोटी पर, जो 80 करोड़ लोगों को सरकार मुफ्त में देती है?

देश में एक नई ‘खुशखबरी’ का ऐलान हुआ है। सरकार ने ‘नेक्स्ट-जनरेशन GST रिफॉर्म्स’ को एक ‘ऐतिहासिक दिवाली तोहफा’ बताते हुए घोषणा की है कि अब सभी भारतीय रोटियों पर GST शून्य होगा। वाह! क्या महान फैसला है, खासकर उस देश में जहाँ आज भी 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त राशन दिया जाता है, ताकि वे भूखे न सोएँ। यह एक हाथ से रोटी देने और दूसरे हाथ से उसी रोटी पर टैक्स लगाने का खेल खत्म करने जैसा लगता है, लेकिन क्या सच में ऐसा है?

Also Read: GST में ऐतिहासिक बदलाव: सरकार का बड़ा तोहफा या चुनावी दांव? हेल्थ और एजुकेशन पर जीरो GST की माँग क्यों रह गई अधूरी?

एक हाथ से मुफ्त राशन, दूसरे हाथ से टैक्स का ढोंग

सरकार कहती है कि उसने आम आदमी को राहत दी है, लेकिन यह राहत उन लोगों के लिए कितनी मायने रखती है, जो खाने के लिए सरकारी राशन पर निर्भर हैं? सरकार जिस रोटी पर GST शून्य होने का जश्न मना रही है, वह अक्सर पैकेट में बिकने वाली होती है, जिसे गरीब परिवार शायद ही खरीद पाते हैं।

  • मुफ्त राशन का हिसाब: सरकार ने खुद बताया है कि 80 करोड़ से ज्यादा लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) के तहत मुफ्त राशन पाते हैं। इसका मतलब है कि देश की एक बड़ी आबादी आज भी इतनी सक्षम नहीं है कि वह अपने खाने का इंतजाम खुद कर सके।
  • टैक्स की विडंबना: ऐसे में उस रोटी पर GST हटाना, जिसे लोग सीधे दुकान से खरीदते हैं, क्या यह सिर्फ दिखावा नहीं है? अगर सरकार सच में गरीब और आम आदमी के बारे में सोच रही होती, तो क्या उसने ये कदम बहुत पहले नहीं उठाए होते?

सरकार की मुफ्त राशन योजना दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजनाओं में से एक है। इसमें 80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त गेहूं और चावल बांटे जाते हैं। यह एक सराहनीय कदम है।

लेकिन यहीं पर विरोधाभास शुरू होता है:

  • सरकार एक तरफ मुफ्त में आटा देती है।
  • लेकिन दूसरी तरफ, जब कोई गरीब परिवार उस आटे की रोटी बनाने के लिए गैस सिलेंडर खरीदता है, तो उस पर 18% का भारी जीएसटी लगता है।
  • अगर वह बाजार से बनी हुई रोटी खरीदता है, तो अब तक उस पर 5% टैक्स देना पड़ता था।
  • अगर वह अपने बच्चे को पढ़ने के लिए कॉपी-किताब खरीदता है, तो उस पर 12% टैक्स लगता है।
  • अगर घर में कोई बीमार पड़ जाए और दवाई खरीदनी पड़े, तो जीवनरक्षक दवाओं के अलावा ज्यादातर पर 5% से 12% तक टैक्स लग जाता है।

स्वास्थ्य और शिक्षा: जो रोटी से भी ज़्यादा ज़रूरी हैं, उन पर टैक्स क्यों?

सरकार ने ‘नेक्स्ट-जनरेशन’ रिफॉर्म्स के तहत स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ बदलाव किए हैं। लेकिन क्या वे पर्याप्त हैं?

  • सेहत पर टैक्स: हेल्थ इंश्योरेंस पर GST 18% से घटाकर भले ही शून्य कर दिया गया है, लेकिन थर्मामीटर और मेडिकल ऑक्सीजन जैसी ज़रूरी चीजों पर अब भी 5% GST लग रहा है। एक तरफ महामारी में ऑक्सीजन की कमी हुई, दूसरी तरफ उस पर भी टैक्स! क्या जान बचाने वाली चीजों पर भी मुनाफाखोरी जरूरी है?
  • शिक्षा पर टैक्स: पेंसिल और नोटबुक पर भले ही GST हटाकर शून्य कर दिया गया हो, लेकिन क्या सिर्फ इन्हीं से शिक्षा पूरी हो जाती है? आज भी ट्यूशन फीस, किताबें और कई अन्य शैक्षणिक सेवाओं पर भारी टैक्स लगता है।

जब देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य और शिक्षा के अभाव में जी रहा है, तब रोटी पर जीरो GST का नारा कितना मायने रखता है, यह सोचने वाली बात है।

GST का ‘लॉलीपॉप’ और चुनावी मौसम

यह कोई रहस्य नहीं है कि सरकार के बड़े फैसले अक्सर चुनावी मौसम में ही आते हैं। बिहार चुनाव सामने हैं, और ऐसे में GST में ऐतिहासिक बदलाव की घोषणा होना कोई इत्तेफाक नहीं लगता। ऐसा लगता है कि यह एक चुनावी ‘लॉलीपॉप’ है, जिसकी मिठास दिखाने के लिए रोटी पर टैक्स हटा दिया गया, लेकिन असली मुद्दों पर कोई बात नहीं हुई।

आम जनता को यह समझना होगा कि एक हाथ से मिली राहत, दूसरे हाथ से लिए गए टैक्स के सामने कितनी बड़ी है। रोटी पर ज़ीरो GST का जश्न मनाने से पहले, यह देखना होगा कि क्या स्वास्थ्य, शिक्षा और महंगाई जैसे असली मुद्दों पर भी कोई ठोस कदम उठाया गया है या नहीं।

रोटी पर टैक्स हटना एक सही कदम है, लेकिन यह एक छोटी जीत है। यह फैसला समाज के सामने एक बड़ा सबक छोड़ गया है: यह दिखा दिया है कि जनता का दबाव और सवाल उठाना कितना जरूरी है।

अब नागरिकों को सिर्फ रोटी पर टैक्स माफ होने से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उन्हें उन सभी बुनियादी जरूरतों पर टैक्स को चुनौती देनी चाहिए जो एक इंसान की गरिमापूर्ण जिंदगी जीने के लिए जरूरी हैं। सवाल सिर्फ रोटी का नहीं, इंसाफ का है।

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