पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन के अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया के आदेश की उड़ाई धज्जियां, पूरे प्रदेश में करीब 80 करोड़ रुपए और जिले में तीन करोड़ का मामला

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अलीराजपुर- मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के समूहों की बड़ी संस्था जिसको संकुल स्तरीय संगठन के नाम से जाना जाता है मे आजीविका विकास के लिए गतिविधियां संचालित की जाना थी। इसके लिए मध्य प्रदेश के सभी जिलों के 159 विकास खंडों में आजीविका भवन बनाने के लिए पंचायत ग्रामीण विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन के अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया ने दिनांक 4/9/ 2017 को पत्र क्रमांक 6114/परा/निर्माण-आमि/2017 द्वारा  मध्य प्रदेश के 159 विकासखंडो में हर आजीविका भवन के निर्माण एवं फर्निशिंग के लिए ₹50, 00,000 पचास लाख की राशि तय कर कुल 79-50 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति जिला पंचायत के जमा वित्त आयोग/ मुद्रांक शुल्क/अन्य राशियां मद से आदेश के रूप में जारी की गई थी।

जिले के 6 विकासखंडो मैं गठित संकुल संगठनों के बैंक खातों में पहली किस्त के रूप में 20,00, 000 रुपए बीस लाख सहित कुल 1 करोड़ 2000000 रुपए भी जारी कर दिए गए थे । विश्वत सूत्रों से पता चला  है कि  राशि जारी होने के कुछ ही महीनों के बाद बिना किसी पत्र के कर्मचारीयों पर दबाव बनाकर मौखिक आदेश देकर जिला पंचायत के खाते में यह रकम वापस जमा करवा दी गई। 

इस तरह जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी और आजीविका मिशन के जिला  अधिकारियों ने मिलकर आईएस के माध्यम से ठेकेदारों को आजीविका भवन बनाने का ठेका दे दिया और अपर मुख्य सचिव पंचायत ग्रामीण विकास विभाग राधेश्याम जुलानिया के आदेश को ताक में रखते हुए उसकी  धज्जियां उड़ा दी ।

अपर मुख्य सचिव के आदेश  में स्पष्ट रूप से स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि आजीविका भवन के निर्माण का  काम गरीब ग्रामीण महिलाओं द्वारा गठित संकुल स्तरीय स्तरीय संगठनों के माध्यम से किया जाएगा परंतु मानना पड़ेगा आजीविका मिशन  और जिला पंचायत के अधिकारियों की सांठगांठ को जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए काम की प्रक्रिया को ही बदल दिया ।

आदेश के अंतर्गत दी गई शर्तों में बिंदु क्रमांक 2.5 पर स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि आजीविका भवन के निर्माण का कार्य संकुल स्तरीय संगठन ही रहेगा और ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के कार्यपालन यंत्री की निगरानी में और उनके मापदंडों के अनुरूप ही कार्य पूरा किया जाएगा। परंतु ठेकेदारों और अधिकारियों की सांठगांठ ने पूरी शर्तों को ही बदल दिया और अपने फायदे के अनुसार नियमों को ताक पर रख दिया।

आदेश के बिंदु क्रमांक 2.1 में भवन निर्माण के लिए 5000 वर्ग फीट जमीन विकासखंड स्तर पर अथवा कस्बे के अंदर उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए गए थे साथ ही महिलाओं के लिए आजीविका भवन ऐसे स्थान पर बनाने के लिए लिखा गया था जहां वह जगह महिलाओं के लिए सुरक्षित सुविधाजनक और कस्बे के अंदर हो। परंतु अलीराजपुर जिले के अंदर कई स्थानों पर आजीविका भवन ऐसे स्थानों पर बना दिए गए जिनकी उपयोगिता ही नहीं है और महिलाओं के लिए सुरक्षित भी नहीं है । इस तरह जनता की टेक्स की राशि का दुरुपयोग कर केवल  औपचारिकता पूरी की गई और सरकार की राशि को चुना लगाया  गया । जोबट विकासखंड का आजीविका  भवन शहर से दूर ग्राम कंदा में ऐसी जगह बनाया गया है जो महिलाओं के लिए सुविधाजनक और सुरक्षित भी नहीं है। इस आधे अधूरे भवन को बने हुए करीब 3 साल होने को है और उसे अभी तक संकुल संगठन को हवाले नहीं किया गया। जिले के दूसरे विकास खंडों में भी कमोवेश यही स्थिति है ।हमारे प्रतिनिधि ने भ्रमण कर भवन का अवलोकन किया तो पाया कि उसकी दरवाजे खिड़कियां गायब हैं, अंदर गंदगी भरी पड़ी है टाइल्से टूटी हुई है और भवन  हैंड औवर होने से पहले ही जर्जर स्थिति में आ गया। 

पूरे जिले में हर आजीविका भवनो के आसपास बाउंड्री वॉल बनाने और रंगाई पुताई के लिए ₹4,00,000 का बजट प्रावधान किया गया था परंतु हमारी जानकारी के अनुसार किसी भी आजीविका भवन के आसपास बाउंड्री वाल नहीं बनाई गई है कई स्थानों पर रोड एप्रोच भी नहीं है। रंगाई पुताई के नाम पर चूने का उपयोग किया गया है। 

भवन के दरवाजे और खिड़कियां हल्की गुणवत्ता वाली है जिसकी कोई गारंटी नहीं है। 

कार्य की प्रगति के आधार पर जिसमें प्लिथ लेवल पर कार्य हो जाने पर 8 लाख,  छत स्तर पर आने पर 8,00,000  छत भरने पर 12,00,000 भवन निर्माण होने पर 8,00,000 और बाउंड्री वॉल और रंगाई पुताई के लिए ₹4,00,000 सहित कुल 40,00,000 रुपयो का आजीविका भवन अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। 

जिला प्रशासन और राज्य सरकार के नुमाइंदे, मुख्यमंत्री सहित कई बड़े नेता इस रोड से कई बार इसके सामने से निकल चुके हैं, क्या उनकी इस पर नजर नहीं पड़ी। 

कुछ ऐसे प्रश्न है जिन पर जांच की जाना चाहिए–

जब प्रदेश के अपर मुख्य सचिव महिलाओं की संस्थाओं पर भरोसा करते हैं और उन्हें भवन निर्माण करने की जिम्मेदारी देते हैं तो फिर उनको काम करने का अवसर क्यों नहीं दिया गया,  ऐसा क्यों किया गया।

किसके आदेश और निर्देश पर संकुल संगठनों के खाते से जिला पंचायत के खाते में राशि की वापसी करवाई गई।

ठेकेदारों के माध्यम से काम करने के लिए क्या प्रक्रिया की गई ।

आजीविका भवन के निर्माण का काम कितने समय  होना चाहिए था। क्या हुआ समय से पूरा हुआ।

कार्य का पूर्णता प्रमाण पत्र किसने जारी किया और किस आधार पर जारी किया  ।

क्या ठेकेदारों को पूरा भुगतान कर दिया गया यदि हां तो बाउंड्री वॉल और दूसरे काम समय पर क्यों नहीं करवाऐ गये ।

ठेकेदारों  को भुगतान कार्य शुरू  करने से लेकर पूरा होने तक कितने किस्तों में और कब कब किया है ।

क्या दोषी अधिकारीयो पर कार्रवाई होगी ।

यह तो खैर मनाओ की आजीविका भवन की फर्निशिंग जिसमें भवन के अंदर बैठक हाल में फर्नीचर, टेबले कुर्सियां और अन्य सामग्री जिसका बजट ₹10,00,000 दस लाख हर आजीविका भवन के लिए तय किया गया था पर शुक्र है भगवान का कि आजीविका मिशन के अधिकारियों और ठेकेदारों की नजर इस पर नहीं पड़ी वरना भवन के साथ सामग्री के नाम पर भी भ्रष्टाचार को अंजाम दे दिया जाता। आसपास के जिलों में सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि वहां पर भी ऐसे ही तरीके अपनाकर आजीविका भवन के निर्माण के साथ  साथ फर्निशिंग के नाम पर आए राशि को भी ठेकेदारों के साथ सांठगांठ कर डकार लिया गया है। यदि 

पूरे प्रदेश में मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के आजीविका भवनो के निर्माण एवं फर्निशिंग के कामों की बारीकी से जांच की जाए तो करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार उजागर होने की संभावना है। क्योंकि महिलाओं की आजीविका बढ़ाने के नाम पर बनवाऐ गए इस भवन में महिलाओं के संगठनों की भूमिका और भागीदारी कहीं पर भी नजर नहीं आई है। ऐसे में भगवान के प्रति उनका लगाव कितना रहेगा क्या वे उसका सही रखरखाव करेगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

अब देखना है कि जिला कलेक्टर  और जिला प्रशासन क्या कार्रवाई करते हैं।

खलील मंसूरी अलीराजपुर

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