भोपाल। मध्य प्रदेश 01 नवंबर को मानाने जा रहा है अपना 66वां स्थापना दिवस, इस मौके पर पूरे राज्य में हर एक सरकारी इमारतों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। मध्य प्रदेश की स्थापना के पीछे कई सारी कहानियां हैं, भोपाल को इसकी राजधानी का दर्जा मिलने से पहले कई और राज्य भी इस रेस में शामिल थे पर आखिर में ताज भोपाल के सर सजा। देश के कुछ हिस्सों को छोड़ कर सभी जगह 26 जनवरी 1950 में भारत का संविधान लागू किया गया था। साल 1951- 1952 में देश भर में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरु की गई थी। 1956 में राज्यों के पुर्नगठन का सिलसिला चल रहा था, जिसके अंतर्गत 01 नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश का गठन किया गया। नक्शे के बीच में होने से इसे मध्य भारत के नाम से जाना जाता था, इसका गठन इसके भाषा के आधार पर किया गया था।
1972 में भोपाल को किया जिला घोषित
01 नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के दौरान ही इसकी राजधानी चुनने के लिए एक होड़ सी लग गई थी, पर आखिर में भोपाल को राजधानी को दर्जा दिया गया। इसे राजधानी का दर्जा तो मिल गया लेकिन एक जिले का दर्जा सन् 1972 में दिया गया था। मध्य प्रदेश का दिल कहलाने वाला भोपाल पहले सीहोर जिले में आता था। गठन के समय मध्य प्रदेश में कुल 43 जिले बनाए गए थे अभी यह संख्या बढ़ कर 53 हो गई है।
राजधानी के लिए इन शहरों में हुई थी टक्कर
इस राज्य के गठन के दौरान राजधानी चुनने को लेकर एक कशमकश सी खड़ी हो गई थी, राजधानी की रेस में भोपाल, जबलपुर, इंदौर, और ग्वालियर सभी अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। जबलपुर में उस समय हाई कोर्ट की स्थापना भी कर दी गई थी, पर कई दिक्कतों की वजह से भोपाल को यह ताज नसीब हुआ। उस समय भोपाल में भवनों की संख्या जबलपुर से ज्यादा थी इसलिए भी यह पहली पसंद बन गया।
ऐसे बनी भोपाल राजधानी
भोपाल को राजधानी बनाने के पीछे कई कारण थे, यहां सरकारी कार्यों के लिए भवनों की संख्या उपयुक्त थी, इस जगह पर ना ज्यादा गर्मी और ना ही ज्यादा सर्दी होती थी, यहां ज्यादा बारिश होने के बाद बाढ़ जैसे हालात भी नहीं आते थे वहीं अन्य राज्यों में यह दिक्कत देखने को मिलती रहती थी। जिस तरह मध्य प्रदेश देश के बीचों बीच स्थित है उसी तरह भोपाल भी मध्य प्रदेश के मध्य स्थित है।